कुछ साल पहले टीवी पर एक विज्ञापन आया था, एयरटेल का, जिसमें अभिनेत्री अदिति राव हैदरी एक सैनिक की बीवी या प्रेमिका होती हैं और सरहद पर उसके साथ खड़ी होकर बातें कर रही होती हैं.

विज्ञापन असल में इंटरनेट का था और दर्शाया यह जा रहा था कि इतना दूर होकर भी वीडियो कॉल्स के जरिये सैनिक अपने परिवारों के साथ होते हैं.

और शायद सैनिकों के लिए चीज़ें इतनी ही आसान हो भी गयी थीं. कश्मीर जैसी जगह पर, जहां सैनिकों के लिए ड्यूटी करना सबसे ज़्यादा कठिन है, इंटरनेट के आने से इन लोगों की ज़िंदगी बदल गयी थी.

अपने प्रियजनों को तब देख पाना जब आप चाहते हो ज़िंदगी आसान होना है ही.

लेकिन पिछले छह महीने से कश्मीर घाटी में तैनात सैनिक फिर से वैसे ही ड्यूटी कर रहे हैं जैसे वे स्मार्टफोन्स और इंटरनेट आने से पहले किया करते थे. महीने बीत जाते हैं बीवी-बच्चों का चेहरा देखे हुए.

और सबसे दुख की बात यह है कि वे किसी से अपने दिल की बात कह नहीं सकते, पत्रकारों से तो बिलकुल भी नहीं.

कश्मीर घाटी में, जहां पिछले छह महीने से इंटरनेट बंद पड़ा है, सत्याग्रह ने सड़क पर ड्यूटी कर रहे तमाम सैनिकों से बात करने की कोशिश की. ऐसा कर पाना आसान नहीं था. वे बड़ी मुश्किल से बात करते हैं और जब करते हैं तो यह जरुर कहते हैं कि उनका नाम न लिखा जाए.

तो पहले दो दिन के बाद हमने उनसे उनका नाम पूछना ही बंद कर दिया.

दक्षिण कश्मीर के एक बाज़ार में खड़े एक सीआरपीएफ़ के जवान ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा कि उन्हें तीन महीने हो गए हैं घर से आए हुए और इस दौरान वे अपने बीवी-बच्चों की सिर्फ आवाज़ ही सुन पाये हैं.

“हाल फिलहाल में ही मेरी बेटी हुई है और में उसको देखने के लिए मरा जा रहा हूं. लेकिन कोई साधन नहीं है. इंटरनेट बंद है और वो इतनी छोटी है कि फोन पर बात तो कर नहीं पाएगी. अब सिर्फ उसके रोने या हंसने की आवाज़ सुनकर ही तसल्ली करनी पड़ती है” इस जवान ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

कश्मीर में लगभग पांच महीने इंटरनेट पूरी तरह बंद रहने के बाद अब 2-जी सेवाएं खोल दी गयी हैं. लेकिन सरकार की तरफ से केवल 150 वेबसाइट्स की लिस्ट ही दी गयी है जिन्हें लोग खोल सकते हैं.

बाकी सारी सेवाएं, खास तौर पर फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया सेवाओं पर प्रतिबंध है.

“अगर कम से कम से कम व्हाट्सएप ही चल रहा होता तो हम अपने बीवी-बच्चों की तस्वीरें देख पाते” श्रीनगर में तैनात एक और सैनिक सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं. कोलकाता के रहने वाले इस सैनिक ने बताया कि वे अब मोबाइल में इटरनेट सेवाओं वाला रीचार्ज ही नहीं कराते, “कम से कम पैसे ही बच जाते हैं,”

यह सैनिक कहते हैं कि अब वे अपने परिवार को तभी देख पाते हैं जब वे छुट्टी पर घर जाते हैं.

ऐसी बातें बताने के साथ-साथ ये सभी सैनिक इस बात का भी पूरा खयाल रखते हैं कि कोई ऐसी बात मुंह से न निकले जो उन्हें परेशानी में डाल दे. लेकिन इनमें से कई यह भी कहते सुनाई देते हैं कि कश्मीर में रह रहे लोग भी अपने बाहर रह रहे परिजनों को न देख पाने से इतने ही परेशान होंगे.

हालांकि कश्मीर में लोगों ने इस परेशानी का समाधान वीपीएन (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) के रूप में निकाल लिया है. वीपीएन उन मोबाइल एप्लीकेशन्स को कहते हैं जो आपके इंटरनेट का सर्वर बदलकर आपको किसी अन्य देश के सर्वर पर डाल देता है.

इससे यह होता है कि स्थानीय प्रतिबंध आपके इंटरनेट कनैक्शन पर लागू नहीं होते.

कश्मीर में लोग इन वीपीएन एप्लीकेशन्स के द्वारा अब फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी सेवाएं धीमी इंटरनेट स्पीड पर चला लेते हैं.

अब सैनिकों के लिए दुविधा यह है कि उनको उनके अधिकारियों ने वीपीएन चलाने से मना किया है और अपुष्ट खबरों के मुताबिक कहीं-कहीं सैनिकों से यह भी कहा गया है कि लोगों के मोबाइल चेक करके देखें कि कहीं वे वीपीएन तो नहीं चला रहे हैं.

इस सबके बीच एक दिलचस्प चीज़ यह भी हो रही है कि सड़क पर ड्यूटी कर रहे कुछ फौजी आम लोगों से ही वीपीएन एप्लीकेशन्स ले लेते हैं, लेकिन अधिकारियों से नज़र बचाकर.

पुलवामा जिले के पंपोर में सत्याग्रह ने एक सैनिक से बात की जो कहते हैं कि उनका वीपीएन (जो पहले से उनके मोबाइल में था) कुछ दिन चला और फिर बंद हो गया.

“मेरी नयी नयी शादी हुई है और दो महीने से अपनी बीवी को नहीं देखा था मैंने. तो कुछ दिन पहले मैंने कुछ लड़कों को हाथ में मोबाइल लिए देखा तो उनसे पूछ लिया वीपीएन है कि नहीं” वे हंसते हुए बताते हैं कि वे लड़के पहले तो मना करने लगे.

“उन्हें लगा कि मैं उनके फोन में से वीपीएन डिलीट कर दूंगा. थोड़ा आश्वासन दिया और कहा कि मुझे अपनी बीवी से बात करनी है तो उन्होने शेअर कर दिया मेरे फोन में” किसी बच्चे की तरह खुश होते हुए इस सैनिक ने सत्याग्रह को बताया. उनके पास खड़े एक दूसरे सैनिक बताते हैं कि दिन भर सर्दी में खड़े रहते हुए अगर बीवी की शक्ल देखने को मिल जाये तो ड्यूटी थोड़ी आसान हो जाती है.

ऐसे ही अनंतनाग जिले में सीआरपीएफ़ के एक 22 साल के जवान बताते हैं कि वे वीपीएन पर कभी-कभी वीडियो कॉल भी कर लेते हैं. “बहुत साफ तो नहीं दिखता है लेकिन माता-पिता की थोड़ी शक्ल दिख जाती है तो दिल को सुकून मिल जाता है.”

उन्होने भी वीपीएन एक स्थानीय युवक से ही अपने फोन में डलवाया था.

लेकिन सैनिकों और कश्मीर के लोगों के लिए परेशानी की बात यह है कि प्रशासन इस चलन से जरा भी खुश नहीं है.

कश्मीर के डाइरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, दिलबाग सिंह, ने अभी हाल ही में कहा था कि नगरोटा में मारे गए मिलिटेंट्स वीपीएन के इस्तेमाल से ही पाकिस्तान में अपने आकाओं से बात कर पा रहे थे.

उन्होने श्रीनगर में हाल ही में हुए ग्रेनेड हमलों में भी वीपीएन के इस्तेमाल को दोष दिया है.

ऐसे में प्रशासन पूरी कोशिश कर रहा है कि वीपीएन किसी तरीके से बंद हो जाएं. सूत्रों से पता चला है कि प्रशासन ने इस मामले में अपनी मदद करने के लिए बेंगलुरु और पुणे से विशेषज्ञ बुलाये हैं.

“फिलहाल तो विशेषज्ञ हाथ खड़े किए हुए हैं क्योंकि वीपीएन बंद करना लगभग नामुमकिन है. लेकिन क्या पता कर भी दिये जाएं बंद. या फिर इंटरनेट ही बंद करने को कह दें” एक टेलीकॉम कंपनी में काम कर रहे सूत्र ने सत्याग्रह को बताते हैं.

पूरी तरह से इंटरनेट कश्मीर घाटी में कब बहाल होगा इसका अभी कोई अता-पता नहीं है. तो फिलहाल कश्मीर के लोग और यहां ड्यूटी कर रहे सैनिक यही दुआ कर रहे हैं कि कम से कम 2-जी चलता रहे और वीपीएन बंद न हो.