लेखक-निर्देशक - भानु प्रताप सिंह
कलाकार - विकी कौशल, भूमि पेडनेकर, आशुतोष राणा, माही विज, आकाश धर
रेटिंग - 2.5/5
11 जून, 2011 को मुंबई के जुहू बीच पर जाने कहां से एक विशालकाय जहाज आकर खड़ा हो गया था. एमवी विज्डम नाम के इस 25 साल पुराने जहाज को बीच से हटाने में कई हफ्तों का समय लग गया था. इस दौरान मीडिया की सुर्खियों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंताओं के साथ-साथ यह आम लोगों की अटकलों की वजह भी बना रहा. कोई बता रहा था कि इस जहाज का नाम 14 बार बदला गया. किसी का कहना था कि इसका वजन नौ हजार टन के करीब है तो किसी के मुताबिक यह मानवहीन जहाज भुतहा था. जितने लोग, उतनी अफवाहें. ‘भूत पार्ट वन – द हॉन्टेड शिप’ का मूल विचार एमवी विज्डम के जुहू बीच पर आकर ठहर जाने की इसी घटना से प्रेरित है.
‘भूत पार्ट वन - द हॉन्टेड शिप’ धर्मा प्रोडक्शन्स की हॉरर सीरीज की पहली कड़ी है जिसका लेखन और निर्देशन भानु प्रताप सिंह ने किया है. इसकी कहानी पर आएं तो ऊपर बताए गए किस्से की तरह फिल्म में भी सी-बर्ड नाम का एक जहाज जुहू बीच पर आकर ठहर जाता है. इसे हटाने के अभियान पर लगा मरीन ऑफिसर पृथ्वी ‘भूत...’ का नायक है. पृथ्वी की अपनी एक दुखद कहानी है जिसके चलते वह हैलुसिनेशन (काल्पनिक चीजों को घटते देखना) सहित कई तरह की मानसिक समस्याओं से भी जूझ रहा है. पहले हिस्से में फिल्म पृथ्वी की त्रासदी और हॉन्टेड शिप के किस्से को आपस में मिलाने की चतुराई करती है. इसके जरिए वह भ्रम और भूत के बीच का फर्क मिटाकर कुछ अलग तरह का डर रचने की कामयाब कोशिश करती है. यह प्रयोग आपको भाता भी है.
लेकिन हिंदुस्तान में बनने वाली हॉरर फिल्मों का एक तयशुदा फॉरमेट होता है. इस फॉरमेट में एक अतृप्त आत्मा होती है जो किसी इंसान को अपनी गिरफ्त में ले लेती है. एक नायक होता है और केवल वही आत्मा को मुक्ति दिला सकता है. और एक पंडित-पादरी सरीखा व्यक्ति होता है, जो भूत के दिखाई देने पर धार्मिक मंत्र बोलकर नायक को बचाता है. इंटरवल के बाद अपनी सारी खूबियों को किनारे कर ‘भूत...’ इसी राह पर चल निकलती है और बुरी तरह निराश करती है. यहां पर फिल्म का रवैया देखकर आप खीझते हुए कहते हैं कि चलो, भूत के पास तो शायद अक्ल नहीं होती कि वह डराने की कोई वाजिब वजह ढूंढ सके, लेकिन पटकथा लेखक के पास तो होती है! लेकिन क्या कर सकते हैं, द डैमेज इज डन!
इसका नतीजा यह होता है कि पहले हिस्से में ‘भूत पार्ट वन - द हॉन्टेड शिप’ हॉरर जॉनर में गुणवत्ता की जितनी ऊंचाई पर पहुंचती है, दूसरे में उतनी ही गहराई में भी गिरती है. इसके बावजूद जो चीज आपको थिएटर छोड़ने से रोके रहती है, वह विकी कौशल का बांध लेने वाला अभिनय है. ‘भूत...’ में ऐसे बहुत कम मौके हैं जब वे हंसते-मुस्कुराते दिखे हैं. लेकिन अपने निजी दुख को खुद तक सीमित रखने वाले इंसान के तौर पर जब वे फीकी हंसी हंसते नज़र आते हैं तो अपने बेहतरीन संतुलन से मोह लेते हैं. इसके साथ ही फिल्म में लगातार डरने, दुखी होने या चौंकने के दृश्यों में हर बार वे कुछ न कुछ जोड़-घटाव भी करते रहते हैं जिसके चलते उनसे नज़रें हटाने का मन नहीं करता. इसके अलावा, कई दृश्य ऐसे भी हैं जिनमें विकी कौशल गिरते-लटकते-रेंगते नज़र आते हैं तो कुछ में आसपास का सामान उन पर गिरता-बरसता दिखता है. और उनकी तरफ से यहां पर एक्शन में भी कोई कमी नहीं की गई है.
विकी कौशल के अलावा भूमि पेडनेकर और आशुतोष राणा भी फिल्म में छोटी लेकिन ज़रूरी भूमिकाओं में है. डराने वाले दृश्यों में भूमि के भाव कमाल के हैं, लेकिन ऐसे दृश्य इक्का-दुक्का ही हैं, इसलिए उन्हें और देखने की चाह बनी रहती है. आशुतोष राणा की बात करें तो वे विक्रम भट्ट की ‘राज़’ की तरह यहां भी भूतों के जानकार बने हैं. वे नायक को कुछ निर्देश देने और भूत को पकड़ने से ज्यादा कुछ नहीं करते, लेकिन इतने से भी डर का माहौल बनाने में अपना सहयोग दे जाते हैं.
फिल्म की कुछ और खासियतों पर आएं तो शिप के भीतर का जो माहौल तैयार किया गया है, वह प्रभावित करता है. हॉरर रचने के लिए इस्तेमाल किए गए विजुअल इफेक्ट्स, लाइट्स और बैकग्राउंड म्यूजिक इसके असर को दोगुना करते हैं. इसके अलावा, इसकी बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी सामान्य दृश्यों में भी डर को नुमाया करने में अपनी ज़रूरी भूमिका निभाती है. निर्देशक भानु प्रताप सिंह अगर बतौर लेखक थोड़ी चुस्ती और दिखाते और इंटरवल के बाद भी बॉलीवुड के घिसे-पिटे तरीके को अपनाने से परहेज करते तो शायद यह फिल्म ट्रॉमा और ट्रैजेडी के मेल से बनी अपनी तरह की इकलौती हॉरर फिल्म होती.
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