लेखक-निर्देशक - हितेश केवल्य
कलाकार - आयुष्मान खुराना, जीतू, नीना गुप्ता, गजराज राव, मानवी गागरू
रेटिंग - 3/5

‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ को अपना रेफरेंस पॉइंट बनाने वाली ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ अगर एक लड़के और लड़की की प्रेम कथा होती तो यह एक औसततरीन बॉलीवुड मसाला फिल्म कही जाती. लेकिन समलैंगिक संबंधों को अपना ट्विस्ट बनाने के चलते यह न सिर्फ भीड़ से अलग होकर खड़ी हो जाती है बल्कि अपने सारे सामान्य लक्षणों को विशिष्ट भी बना लेती है. दिलचस्प है कि यहां पर सिनेमा की जीत ही, गे-लव को उतना सामान्य बनाकर दिखाने में है, जितना कि वह असल में है. खुशी की बात है कि ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ इसमें सफल कही जा सकती है.

कहानी पर आएं तो यहां पर डीडीएलजे के किरदारों से मिलता-जुलता एक प्रेमी जोड़ा है. इनमें से पहला - अमन - ऐसा है जो सिमरन की तरह ‘बाऊजी नहीं मानेंगे’ के अर्थों वाले संवाद बोलता दिखाई देता है, तो दूसरा – कार्तिक - एकदम राज की तरह किसी भी पल रूमानी हो जाने वाला आशिक़ है. किसी भी आम भारतीय परिवार की तरह अमन के घरवाले उसकी शादी अपनी पसंद की लड़की से करवाना चाहते हैं. आगे के कथानक में ठीक डीडीएलजे की तरह एक प्रेमी दूसरे के घर-परिवार में शामिल होकर उनके दिल में जगह बनाने की कोशिश करता है.

यह दिलचस्प है ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में बॉलीवुड फिल्मों में मौजूद रहने वाली हर घिसी-पिटी चीज को जगह दी गई है. फिर चाहे वह किसी और की शादी में लीड कपल का डांस/रोमांस करना हो, एक हीरो का पिटना और उस पर दूसरे हीरो का रोना-पीटना हो या फिर क्लाइमैक्स में मचने वाला कन्फ्यूजन हो. यह सबकुछ इतने इतने आराम से सामने रखा जाता है कि कई बार फिल्म का वजन कम होता लगने लगता है. लेकिन फिर यह समझदारी वाली कोई बात बेहद रोचक तरीके से कहकर ट्रैक पर वापस आ जाती है. बस, यहां पर बुरा यह है कि यह भटकना और लौटना पूरी फिल्म के दौरान कई बार होता है.

फिल्म में कुछ ध्यान खींचने वाले सीक्वेंसेज का जिक्र करें तो पूरी फिल्म के दौरान काली गोभी को प्रकृति और उसके व्यवहार के प्रतीक की तरह इस्तेमाल किया गया है जो मज़ेदार तो है लेकिन बार-बार आने के चलते कुछ समय बाद खटकता भी है. (काली गोभी क्या बला है, यह बताना स्पॉइलर होगा इसलिए यह फिल्म देखकर ही जानिए!) इसी तरह, अमन के पिता और चाचा में होने वाली झड़पें भी फिल्म में ढेर सारे हास्य की वजह बनती हैं लेकिन ये तब बोझिल लगने लगती हैं जब केवल इनके सहारे ही मनोरंजन बनाए रखने की कोशिश की जाती है. इसके अलावा, डीडीएलजे के आइकॉनिक ट्रेन सीन का इस्तेमाल भी फिल्म जमकर करती है लेकिन इतनी बार करती है कि अंत तक आते-आते यह अपना असर खो देता है.

‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ की खासियत यह है कि एक समलैंगिक जोड़े की कहानी दिखाते हुए यह तमाम तरह के स्टीरियोटाइप से दूरी बनाकर रखी है. आयुष्मान खुराना की नोजरिंग के अलावा फिल्म में कोई ऐसी बात नज़र नहीं आती है जिसे एलजीबीटीक्यू समूह से जोड़कर देखा जा सके. मज़ेदार यह भी है कि गे-कपल के प्यार के बहाने फिल्म के बाकी किरदार भी अपनी प्रेम कहानियों को टटोलते हैं और जो पाते हैं, वह उन्हें चौंकाता है. यह सब देखते हुए अचानक आपको एहसास होता है कि बीते साल आई ‘इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ के बाद शायद यह दूसरा मौका है जब समलैंगिकता पर बात करने वाली कोई बॉलीवुड फिल्म साफ-सुथरा फैमिली एंटरटेनमेंट भी है.

‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ के नायक आयुष्मान खुराना हमेशा की तरह बढ़िया काम करते हैं लेकिन ऐसा नहीं जिसे उनकी पिछली तीन-चार फिल्मों से अलग करके देखा जा सके. हां, जिस सहजता और स्वैग के साथ नोजरिंग पहनकर वे अपने किरदार को उसकी ज़रूरी फिजिकल डिटेल देने का काम करते हैं वह उनके टैलेंटेड होने के साथ-साथ हिम्मती होने का पता भी दे जाती है. उनके बॉयफ्रेंड की भूमिका में जितेंद्र कुमार यानी जीतू बढ़िया अभिनय करते हैं. उनकी चाल, चेहरा, डील-डौल सब इस किरदार के लिए एकदम फिट लगते हैं. इन सबके अलावा जीतू अपने एक्सप्रेशंस से भी एक बेहद आम से दिखने वाले आदमी के समलैंगिक होने की बात, चुपचाप से कह जाते हैं. इनके अलावा, फिल्म में नीना गुप्ता और गजराज राव की जोड़ी भी अपनी केमिस्ट्री से आपको खुश करती है. यह जोड़ा समलैंगिकता पर समाज की प्रतिक्रियाओं का सबसे सटीक चेहरा सामने लाता है.

फिल्म के बाकी पक्षों की बात करें तो इसकी पटकथा में समझ और संवेदनशीलता की झलक तो मिलती है लेकिन कई बार यह अपने शीर्षक की तरह कुछ ज्यादा ही सावधान भी लगती है. यह अति सावधानी इसलिए बरती गई है कि फिल्म गलती से भी कोई होमोफोबिक (समलैंगिकता को विचित्र मानना) लगने वाली बात न कह दे. इसके संवादों के बारे में भी यह बात दोहराई जा सकती है जो कई मौकों पर इतने पॉलिटिकली करेक्ट हैं कि उनकी धार कम हो जाती है.

संगीत का जिक्र करें तो ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ का बैकग्राउंड म्यूजिक थोड़ा लाउड और खटकने वाला लगता है जबकि इसके गाने सही टोन और प्लेसिंग के साथ आते हैं और याद रह जाते हैं. इन सब खूबियों-खामियों के साथ हितेश केवल्य के लेखन और निर्देशन वाली ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ परिवार के साथ बैठकर ज़रूर देखी जाने वाली एक फिल्म बन जाती है. तो जाइए, देखकर आइए!