सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर घुमा-फिराकर यह लिखा कि वे अगले रविवार को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स छोड़ने की सोच रहे हैं. लोगों ने इसका मतलब यह निकाला कि प्रधानमंत्री अब शायद ट्विटर, फेसबुक और इन्स्टाग्राम पर जाना छोड़ देंगे. लेकिन मोदी जी बड़े वो हैं. वे फिर एक बार कुछ ऐसा कर रहे थे जो केवल वे ही कर सकते हैं. वे सिर्फ एक दिन के लिए अपना सोशल मीडिया अकाउंट देश की कुछ चुनी हुई महिलाओं के हवाले करने वाले हैं. इन महिलाओं को लोग नामित करेंगे. फिर उनमें से कुछ अतिभाग्यशाली महिलाएं अगले रविवार को, महिला दिवस के मौके पर, प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया अकाउंट्स चलाने जैसा महत्वपूर्ण कार्य करेंगीं.
कई लोगों को ऊपर लिखा आखिरी वाक्य तंज लगा होगा जोकि यह है भी. कहने वाले कह सकते हैं कि अगर महिलाओं को आप वाकई इतना महत्वपूर्ण मानते हैं और आप बड़े वो भी हैं तो उन्हें कोई असली काम करने का मौका दें. मसलन अपनी जगह एक दिन देश चलाने का मौका दे दें. क्या सोशल मीडिया जैसे फालतू के काम करवाएंगे! मिताली राज, पीवी संधू या मैरी कॉम जैसी महिलाएं एक दिन उनका सोशल मीडिया अकाउंट चलाकर ऐसा क्या साबित कर देंगी जो अब तक उनसे छूट गया है. और ऊपर से यह काम भी वे अपनी मर्जी से कर सकेंगीं ऐसा सोचने की उम्मीद अगर वे हमसे रखते हैं तो वे भी उतने ही नादान हैं जितने ऐसा सोचने पर हम होते. उस दिन तो कमाल ही हो जाएगा जब प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर खुद प्रधानमंत्री के अलावा कोई और कोई ऐसी-वैसी चीज लिख सकेगा.
पूछने वाले पूछ सकते हैं कि अगर ऐसा करना था तो सीधे भी तो किया जा सकता था. एक या ज्यादा महिलाओं को चुना जाता. उनसे यह काम करवाया जाता और जय श्री राम. लेकिन पहले उरी फिल्म मार्का खतरनाक वाला टीजर आया. अगले दिन ट्रेलर आया. अब संडे को पिक्चर आयेगी.
वैसे जरूरी नहीं कि महिलाओं को एक दिन का प्रधानमंत्री बनाकर ही उनके लिए कुछ किया जाए. उनके लिए कुछ और भी किया जा सकता है. वैसे ही जैसे मुस्लिम महिलाओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी कुप्रथा से आजादी दिलाई है. वे ट्वीट करने जितनी ही आसानी से महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण दिलवा सकते हैं. राज्यसभा इस बिल को पहले ही पास कर चुकी है. अब बस इसे लोकसभा में पास होना है, जहां भाजपा के पास इतना बड़ा बहुमत है.
चूंकि महिला आरक्षण सभी राज्यों की विधायिकाओं पर भी लागू होना है इसलिए इसे आधे राज्यों की विधानसभाओं की भी सहमति लेनी पड़ेगी. भाजपा भारत को कांग्रेस से मुक्त भले न कर पाई हो लेकिन देश के आधे से ज्यादा राज्यों में आज भी उसी की सरकारें हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो भी कोई बात नहीं. कांग्रेस राजी है. राहुल गांधी इसके लिए उन्हें पत्र लिख चुके हैं. और भी पार्टियां हैं जो इस काम में प्रधानमंत्री जी का साथ देंगी. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने घोषणापत्र में भी महिला आरक्षण को लागू करने का वादा किया था. तो फिर दिक्कत क्या है? भाजपा का कहना है कि वह इस मामले में सर्वसम्मति चाहती है. बहुत अच्छी बात है! लेकिन यह असली बात नहीं है.
सपा, आरजेडी और जेडीयू जैसी इक्का-दुक्का पार्टियां ही हैं जो इस आरक्षण की राह में फच्चर फंसाने का काम करती रही हैं. काश हम इतने भोले होते कि मान जाते कि इन पार्टियों की खातिर भाजपा महिला आरक्षण लागू करने जैसा ऐतिहासिक काम नहीं कर पा रही है.
इन राजनीतिक दलों के नेता इस बात पर अड़े रहे हैं कि महिलाओं के आरक्षण के भीतर दबे-कुचले और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के लिए भी आरक्षण होना चाहिए. लेकिन जो विधेयक राज्यसभा पारित कर चुकी है उसमें यह प्रावधान पहले से ही है. अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में जो 22.5 फीसदी आरक्षित सीटें हैं महिला आरक्षण उन पर भी लागू होगा. रही बात पिछड़ा वर्ग की तो उसके लिए तो विधायिका में कभी भी आरक्षण का प्रावधान नहीं रहा. जहां तक अल्पसंख्यक महिलाओं की बात है तो एक धर्मनिरपेक्ष देश में इस आधार पर आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
यानी कि असलियत कुछ और है. महिला आरक्षण लागू होने पर कई नेताओं को अपनी सीटें महिलाओं के सुपुर्द करनी पड़ जाएंगी. और विधेयक में एक प्रावधान यह भी है कि महिला आरक्षण हर पांच साल में नई एक तिहाई लोकसभा सीटों पर लागू होगा. यानी कि 15 साल में कम से कम एक बार हर छोटे-बड़े नेता को अपनी सीट महिलाओं के लिए छोड़नी पड़ेगी. और फिर डर यह भी है कि सिर्फ 15 सालों के लिए लागू होने जा रहा यह आरक्षण भी कहीं उसी तरह से स्थायी तो नहीं बन जायेगा जैसा कि बाकी मामलों में हुआ है.
क्या आपने ‘दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है’ मुहावरा सुना है. इसका एक नया मतलब और हो सकता है. मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के लिए क्या कुछ नहीं किया. उन्हें तीन तलाक से निजात दिलाने के लिए उसने जमीन-आसमान एक कर दिया. लेकिन बदले में उसे क्या मिला - शाहीन बाग! अब महिलाओं के मामले में प्रधानमंत्री जी इतने सावधान ना हों तो क्या हों!
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