उत्तर प्रदेश की राजनीति में राम-नाम की धूम और रामराज्य को धरती पर उतार लाने के दावों के अलावा दो और वजहें हैं जिसके चलते आजकल राम का नाम खूब सुर्खियां बटोर रहा है. पहली वजह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की सुगबुगाहट है. राम मंदिर ट्रस्ट की पहली बैठक से लेकर अयोध्या में राम जन्मभूमि मन्दिर के शिलान्यास तक की चर्चाओं ने खूब सुर्खियां पाई हैं और लगभग उतनी ही सुर्खियां रूहेलखण्ड का रामपुर शहर भी बटोर रहा है. यानी राम नाम के चर्चा में आने की दूसरी वजह रामपुर शहर है. कभी अक्सर आजम खान के जिक्र के साथ याद किया जाने वाला रामपुर इन दिनों यहां के नवाबों की अकूत सम्पत्तियों और खजाने को लेकर चर्चाओं में है.
सन 1774 से 1949 तक रामपुर में राज करने वाले नवाबों की सम्पत्ति अब सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद खानदान के 16 वंशजों के बीच बंटने जा रही है. यह काम सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जिला जज, एडवोकेट कमिश्नर और पक्षकारों की उपस्थिति में हो रहा है. बीते करीब दो महीने से तिजोरी, मालखाने व शस्त्रागार का सर्वेक्षण व मूल्यांकन हो रहा है, बंटवारे को लेकर विवाद हो रहे हैं, नए-नए दावेदार सामने आ रहे हैं. कुल मिलाकर, यहां जो कुछ भी जानकारी में आ रहा है वह लोगों को अचम्भित करने के साथ बतंगड़ भी बनता जा रहा है.
रामपुर रियासत आजादी के बाद 15 मई 1949 को भारत में विलीन हुई थी. इसके आखिरी नवाब रज़ा अली खान की मृत्यु 1966 में हुई. उनकी मौत के बाद उनकी सम्पत्ति के हकदार उनके बड़े बेटे मुर्तज़ा अली खान बने. लेकिन 1972 में परिवार के कुछ और सदस्यों ने सम्पत्ति पर अपना हक जताने के लिए मुकदमा दायर कर दिया. तब से यह मामला अदालत में चक्कर काटता रहा और सम्पत्ति पर मुर्तज़ा अली के बाद उनके बेटे मुराद मियां काबिज रहे. 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुर्तज़ा अली के पक्ष में फैसला सुना दिया लेकिन 31 जुलाई 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सम्पत्ति का बंटवारा शाही परिवारों के गद्दी कानून के तहत नहीं बल्कि मुस्लिम (शिया) पर्सनल लॉ बोर्ड के नियमों के मुताबिक होगा. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए सम्पत्ति का मूल्यांकन और सर्वेक्षण किया जा रहा है जिससे बंटवारा किया जा सके. अदालत ने इस बंटवारे के लिए दिसम्बर 2020 तक की समय सीमा भी तय की है.
रामपुर के आखिरी नवाब रज़ा अली खान के तीन बेटों और बेटियों के परिवार के कुल 18 लोग इस सम्पत्ति के अधिकारी हैं. लेकिन कुल 16 लोगों ने ही दावेदारी पेश की है, इसलिए सम्पत्ति के 16 हिस्से होने हैं. अनुमान है कि बंटवारा होने के बाद ये सभी 16 पक्षकार अरबपति हो सकते हैं.
देश की पहली ‘एसी’ कोठी
रामपुर में नवाबों की सम्पत्ति 1073 एकड़ में फैली हुई है. सबसे बड़ा इलाका कोठी खास बाग का है. तीन सौ एकड़ से ज्यादा इलाके में फैली इस कोठी को देश की पहली और शुरूआती उन कोठियों में गिना जाता है जो पूरी तरह वातानुकूलित (एसी) होती थीं. इस कोठी में नवाब का आफिस, सिनेमा हाल, सेंट्रल हाल व संगीत हाल बनाया गया था. इसके अलावा इसमें ढाई सौ कमरे भी हैं. यूरोपीय और इस्लामी शैली के मेलजोल से बनी इस कोठी के सैंट्रल हाल में अनगिनत बेशकीमती पेंटिंग्स लगी थीं जिनमें से ज्यादातर अब खराब हो चुकी हैं.
नवाब हामिद अली खां द्वारा 1930 में बनाई गई इस कोठी के तहखाने में एक बर्फखाना था जिसमें लोहे के फ्रेम में बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं. इनके पास बड़े-बड़े पंखे लगाए गए थे जिन्हे चलाने के लिए 150 हार्स पावर की बिजली की मोटर लगाई गई थी. पूरी कोठी के नीचे पक्की नालियां बनाई गई थीं. कमरों में नालियों के मुहाने खोलने और बंद रखने के लिए फ्रेम लगाए गए थे. जब ठण्डक की जरूरत होती तो पंखे चला दिए जाते और बर्फ की सिल्लियों से होकर तेज ठंडी हवा नालियों के जरिए कमरों तक पहुंच जाती. इस वातानुकूलन व्यवस्था की देखरेख इंजीनियरों की एक टीम करती थी. लेकिन जंग लगने से अब यह व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है.
स्ट्रांग रूम
इसके अलावा, कोठी की दीवारें भी जगह-जगह खराब होने लगी हैं, लेकिन सिविल लाइंस इलाके में होने के कारण इसकी कीमत अब काफी बढ़ गई है. इसकी खासियत शाही शस्त्रागार और किसी तरीके से न तोड़ा जा सकने वाला स्ट्रांग रूम है जिसके अन्दर बेशकीमती हीरे जवाहरात व अन्य मूल्यवान वस्तुएं होने का अनुमान किया जा रहा था. इस स्ट्रांग रूम की चाबियां अब गुम हो चुकी हैं. चाबियां न होने पर इसे खोलने के लिए एडवोकेट कमिश्नरों की मौजूदगी में गैस कटर से काटने का प्रयास किया गया. लेकिन शुरूआती प्रयासों में कई घंटे बाद भी गैस कटर स्ट्रांग रूम की दीवार को कुल 16 मिलीमीटर ही काट सका था. इसे खोलने की लगातार कोशिश करने पर सातवीं बार में बीते शनिवार को खोला जा सका है. लेकिन इसका खुलना शाही परिवार के लिए मायूसी का सबब ही बना क्योंकि कुछ तिजोरियों में थोड़े-बहुत सामान को छोड़कर यहां पर ज्यादा तिजोरियां खाली ही मिली हैं. इस पर रामपुर की बेगम नूर बानो का कहना है कि शादी के बाद जब उन्होंने इस खजाने को देखा था तो यह पूरी तरह भरा हुआ था, यह खाली कैसे हुआ इसकी जांच होनी चाहिए.
दरअसल यह स्ट्रांग रूम 1980 से बंद पड़ा था. 1980 में इस स्ट्रांग रूम से 60 किलो सोना और कुछ बेशकीमती हीरे-जवाहरात चोरी हो गए थे. तब यह मामला सीबीआई तक पहुंचा था. चोरी में परिवार के ही किसी का हाथ होने का शक था लेकिन मामले का खुलासा कभी नहीं हो सका. इस स्ट्रांग रूम को लंदन की किसी कंपनी ने बनाया था. इसे खोलने के लिए पहले धातु की जांच करवाई गई थी. उसके बाद करीब दो दर्जन कारीगर 15 दिनों तक इस काम में लगे रहे थे.
हथियार
रामपुर रियासत के विलीन होने के बाद रामपुर की सेना के हथियार तो सरकार के पास चले गये थे लेकिन नवाबों का निजी शस्त्रागार विलय की शर्तों के मुताबिक उन्हीं के पास रहा. सर्वेक्षण के दौरान जब शस्त्रागार खोला गया तो वहां आलमारियों में हजारों की संख्या में हथियार देखे गए. खानदान के एक पक्ष के अनुरोध पर इन हथियारों की गिनती की वीडियोग्राफी भी कराई गई. आर्मरी में मौजूद हथियारों में स्काटलेंड, जर्मनी, ब्रिटेन, हालैंड, अमेरिका आदि की बनी पिस्टल, बंदूकें, रायफल व रिवाल्वर शामिल हैं. 46 साल बाद खुले इस असलहाखाने के अंदर सोने, हाथीदांत व जवाहरातों से मंड़े हथियार भी थे लेकिन ज्यादातर की हालत अब खराब हो चुकी है. हजारों की संख्या में मिले इन हथियारों में खंजर, भाले, तलवारें व नेजे भी शामिल हैं. सर्वेक्षण व मूल्यांकन पूरा होने के बाद अब अदालत यह तय करेगी कि इन हथियारों का परिवार में बंटवारा होगा या फिर इन्हे किसी संग्रहालय का हिस्सा बनाया जाएगा क्योंकि इनमें रामपुर की स्थानीय हथियार कला और आठ फिट लंबी बंदूकों जैसे नायाब नमूने भी शामिल हैं.
हालांकि नवाबों की चल सम्पत्ति में अचल सम्पत्ति की तरह ही बहुत कुछ खुर्द-बुर्द भी हो चुका है. मुकदमे के साथ दी गई सम्पत्ति की लिस्ट में चांदी के छह पलंग, 20 पानदान, 20 उगालदान, छह खासदान, 20 सिगार बॉक्स और चार हुक्के भी शामिल हैं. हालांकि अभी इनका सत्यापन नहीं हो सका है. इसी तरह की दर्जनों बहुमूल्य चीजें सूची में तो मौजूद हैं लेकिन सम्पत्ति के मूल्यांकन व सर्वेक्षण में अभी तक सामने नहीं आ पाई हैं.
इसी तरह कोर्ट में दी गई सूची में आयातित कारों की संख्या 16 बताई गई थी लेकिन सर्वेक्षण के दौरान कोठी खास बाग में सिर्फ 10 कारें ही मिली हैं. 6 कारें गायब हैं और जो कारें मौजूद भी हैं, उनकी हालत बहुत खस्ता है. कबाड़ में बदल चुकी इन विंटेज कारों का सामान भी गायब हो चुका है. ये कारें 1930 से 1947 के बीच रामपुर लाई गई थीं और इनमें से कुछ में इनकी कीमत से भी अधिक का इंटीरियर डेकोरेशन कराया गया था.
कोठी खास बाग के अलावा जिन अन्य सम्पत्तियों का मूल्यांकन कराया जा रहा है उनमें सिविल लाइन स्टेशन के बगल में बना हुआ नवाब रेलवे स्टेशन, 200 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला बेनज़ीर बाग, एक फिशरीज पाउण्ड, 500 एकड़ में फैला लक्खी बाग जिसमें एक लाख पेड़ बताए जाते हैं, शामिल हैं. बेनज़ीर बाग स्थित कोठी हालांकि अब खण्डहर में बदल गई है. मगर रामपुर शहर में ही नवाबों की अचल सम्पत्ति अब भी छह-सात सौ करोड़ के आसपास आंकी जा रही है जबकि अन्य शहरों मे मौजूद रामपुर नवाबों की सम्पत्ति का सर्वेक्षण अभी शुरू नही हुआ है.
सम्पत्ति के सर्वेक्षण के साथ ही रामपुर भर में नवाबों की जायदाद व खजाने को लेकर तरह तरह की चर्चाओं और किस्सों का जोर है. नवाबों के क्रिस्टल से बने दो सिंहासनों को लेकर भी तरह-तरह के किस्से सुनाए जा रहे हैं. खानदान के कुछ लोगों द्वारा सर्वेक्षण के दौरान की गई वीडियोग्राफी व तस्वीरों के सार्वजनिक होने पर जिला जज के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई गई तो अब अदालत ने बंटवारे की प्रक्रिया की तस्वीरें या वीडियो सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी है. लेकिन विवाद अब भी जारी हैं. एक ओर सम्पत्ति में हक जताने के लिए नए-नए दावेदार सामने आने लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रज़ा अली खां के 16 वारिसों के बीच सम्पत्ति का बंटवारा होना है लेकिन अब रज़ा अली खान के भाई व बहनों के नाती पोतों ने भी सम्पत्ति में दावेदारी पेश कर दी है. जिला कोर्ट से अर्जी खारिज होने पर अब ये लोग हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.
इसी तरह सुप्रीम कोर्ट से लड़ाई जीतने वाले पक्ष ने अब तक कब्जेदार रहे मुर्तज़ा अली के बेटे मुराद मियां और बेटी निकहत आब्दी से नवाब रज़ा अली खान के निधन के बाद से अब तक हुई आमदनी और गायब हुए कीमती सामान की कीमत भी वसूल किए जाने की मांग कर दी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में भी सम्पत्ति से हुई आय और सम्पत्ति बेचने से मिली रकम कब्जेदारों से वसूल किए जाने की बात कही गई है. अपने पर हमला होते देख मुराद मियां व निकहत आब्दी ने भी दूसरे पक्षकार और अपने चचेरे भाई नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां पर दस करोड़ की सम्पत्ति पहले ही बेचने का आरोप लगा दिया है. यानी सर्वेक्षण व मूल्यांकन के साथ कटुता और आरोप-प्रत्यारोप भी जारी है.
धार्मिक सहिष्णुता, हिन्दुस्तानी संगीत को संरक्षण देने और रज़ा लाइब्रेरी जैसी धरोहर का निर्माण करने वाले रामपुर के नवाबों के वंशजों ने राजनीति में भी अपना रूतबा कायम किया था. अंग्रेजों के जमाने में 15 सैल्यूट का दर्जा रखने वाली रामपुर रियासत के वंशजों में जुल्फिकार अली खान 1967 से 1989 तक पांच बार सांसद रहे तो उनकी पत्नी नूर बानो दो बार रामपुर से सांसद बनीं. रज़ा अली खान के दूसरे बेटे इनके पुत्र काजिम अली उत्तर प्रदेश में विधायक और मंत्री भी रहे. वैसे परिवार के प्रति अब भी स्थानीय जनता में सम्मान का भाव है लेकिन इन दिनों जब सम्पत्तियों का मूल्यांकन हो रहा है तो रामपुर में तमाम किस्सों के बीच लोगों की जुबान पर एक जुमला चढ़ गया है, ‘जित्ती बड़ी दौलत उत्त बड़ा ही झगड़ा’. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्ण क्रियान्वयन के बाद शायद ये सारे झगड़े निपट जाएंगे और शायद फिर ये जुमला भी भुला दिया जाएगा.
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