निर्दशक - होमी अदजानिया
कलाकार - इरफ़ान खान, राधिका मदन, दीपक डोबरियाल, करीना कपूर खान
रेटिंग - 3/5
साल 2017 में रिलीज हुई ‘हिंदी मीडियम’ एक ऐसी फिल्म थी जिसने मसालेदार मनोरंजन के साथ शिक्षा पर कई ज़रूरी और प्रैक्टिकल बातें की थीं. शायद इसीलिए जब ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ का ट्रेलर आया तो उम्मीद जगी कि यह भी वैसा ही कुछ करेगी. फिल्म की झलकियों में टीनएज किरदार को देखकर यह भी लगा था कि शायद इस बार बात वहां से शुरू होगी जहां पर ‘हिंदी मीडियम’ ने छोड़ी थी. लेकिन इन दोनों फिल्मों के मिलते-जुलते टाइटल के अलावा अगर इनमें कुछ कॉमन है तो वह केवल इरफान खान, दीपक डोबरियाल और उनकी शानदार परफॉर्मेंसेज ही हैं. इसलिए इस बात को वैधानिक चेतावनी माना जाए कि ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ देखने ऐसी कोई उम्मीद लेकर नहीं जाना है जो किसी भी तरह ‘हिंदी मीडियम’ से जुड़ती है.
‘अंग्रेज़ी मीडियम’ की कहानी पर आएं तो यह बाप-बेटी की एक भावुक कहानी कहती है. फिल्म दिखाती है कि उदयपुर में मिठाई बेचने के लिए मशहूर परिवार में सिर्फ एक लड़की है जो पढ़ाई में ध्यान लगाती है और विदेश जाना चाहती है. बाद में यह इच्छा लंदन की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने के सपने में बदल जाती है. इस सपने को पूरा करने के लिए उसका पिता किस तरह से हदें और सरहदें दोनों पार कर जाता है, फिल्म इसी के कुछ मज़ेदार किस्से दिखाती है.
उदयपुर से लंदन तक का सफर तय करने के दौरान यह फिल्म फ्रेम दर फ्रेम और संवाद दर संवाद आपको ठहाके लगाने पर मजबूर करती है. इस हिस्से में फिल्म का ह्यूमर कोशंट और इमोशनल कोशंट लगभग बराबर ही रहता है. यहां पर निर्देशक होमी अदजानिया की वह खूबी नज़र आती है जिसने ‘फाइंडिंग फैनी’ को नायाब बना दिया था. फिल्म के इस हिस्से में वे तमाम बारीक बातों को उतने ही बारीक तरीके से कहानी में बुनते हैं और कोई बड़ी बात कहने-समझाने की कोशिश करते हैं.
लेकिन कहानी जैसे ही लंदन पहुंचती है, फिल्म में इमोशन, ह्यूमर पर भारी पड़ने लगता है. यहां पर लंबे इमोशनल सीक्वेंसेज, कुछ तितर-बितर से आधी-अधूरी बैकस्टोरी वाले किरदार और प्रेडिक्टेबल हो चुकी कहानी इसका मज़ा थोड़ा कम कर देते हैं. इस तरह फैमिली वैल्यूज की वे बातें जो कई बार परदे पर दोहराई जा चुकी हैं, उन्हें करने के बाद ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ एक फिल्मी अंत को प्राप्त हो जाती है. बस अच्छा यह है कि इतने के बाद भी इसे देखते हुए फीलगुड बना रहता है.
इस फीलगुड के बने रहने का सबसे ज्यादा क्रेडिट इरफान खान के निराले अभिनय को जाता है. राजस्थान से पर्सनल कनेक्शन रखने वाले इरफान उदयपुर के चंपक बंसल बनकर, वहां का लहज़ा पूरी तरलता (फ्लो) के साथ परदे पर लेकर आते हैं. फिल्म में बाप-बेटी के कई दृश्य हैं जिनमें वे कभी दीवारों तो कभी छत की तरफ देखकर बात करते हैं. इन दृश्यों में इरफान अपने अभिनय से भारतीय पिताओं की भावुक असहजता को पूरा विस्तार देते हैं. बाकी वक्त अपनी फ्लैट-फेस कॉमेडी से तो वे कमाल करते ही हैं.
इरफान खान के बारे में जानने लायक बात यह भी है कि पिछले कुछ समय से वे कैंसर का इलाज करवा रहे हैं और यह फिल्म उन्होंने इलाज के दौरान ही शूट की है. निर्देशक होमी अदजानिया एक साक्षात्कार के दौरान बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी क्रू का एनर्जी सोर्स इरफान ही हुआ करते थे. इस बातचीत के दौरान अदजानिया उनसे जुड़ी कई ऐसी बातें बताई हैं जिन्हें जानकर आपको इस बात की खुशी होगी कि आपका प्रिय अभिनेता एक बेहतरीन और बेहद हिम्मती इंसान भी है.
फिल्म पर लौटें तो इरफान के ज्यादातर दृश्य दीपक डोबरियाल के साथ हैं और इन दोनों के बीच का रसायन फिल्म की जान है. यह डोबरियाल का कमाल है कि फिल्म के वे दृश्य-संवाद जो आइडिया के स्तर पर दोहराव लिए हुए हैं, वे भी दर्शनीय बने रहते हैं. राधिका मदन की बात करें तो 17 साल की टीनएजर बनकर वे इमोशन और कन्फ्यूजन का बहुत मासूम मिश्रण परदे पर लेकर आती हैं. उन्हें यहां देखकर इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वे कुछ साल पहले टीवी धारावाहिकों में बेटी-बहू के किरदार निभाया करती थीं. इन तीनों के अलावा, अपनी छोटी-छोटी भूमिकाओं में डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी, रणवीर शौरी और करीना कपूर खान जब भी परदे पर आते हैं तो पूरा ध्यान खींचते हैं. इस फिल्म में अपने बेहद छोटे से किरदार को कमाल की सफाई से निभाकर करीना कपूर एक बार फिर बता देती हैं कि वे जितनी प्रतिभाशाली हैं, उतनी ही हिम्मती भी हैं.
इन सभी के अभिनय के अलावा, चुटीले संवाद और होमी अदजानिया का बेहतरीन निर्देशन इस फिल्म के सबसे मजबूत पक्ष हैं. उदयपुर बेस्ड इस कहानी को दिखाते हुए अदजानिया परदे पर एकदम भरोसमंद माहौल रचने में सफल होते हैं. संगीत पर आएं तो ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ में तीन बेहद सुरीले गाने हैं जिनमें से केवल एक ‘एक ज़िंदगी’ को फिल्म में सीधे-सीधे रखा गया है. दूसरे गाने ‘लाड़की’ को बैकग्राउंड स्कोर की तरह इस्तेमाल किया गया है जो खासा इमोशनल करता है और तीसरा ‘कुड़ी नू उड़ने दे’ एंड क्रेडिट के साथ आता है. इन सब खासियतों के साथ ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ परिवार के साथ बैठकर देखी जाने वाली मनोरंजनक फिल्म बन गई है जिसमें इरफान खान के होने ने चार चांद लगा दिए हैं. उनके लिए यह फिल्म ज़रूर देखी जानी चाहिए!
चलते-चलते, ‘अंग्रेजी मीडियम’ में इस्तेमाल किए गए गीत ‘लाड़की’ को सचिन-जिगर पहले कोक स्टूडियो के लिए भी परफॉर्म कर चुके हैं. तब इसे रेखा भारद्वाज के साथ कृतिदान गड़वी और तनिष्का संघवी ने गाया था. तनिष्का संगीतकार सचिन की बेटी हैं और उतनी ही प्रतिभाशाली हैं. उस समय महज सात-आठ साल की रही तनिष्का ने इसे बहुत ईमानदारी और खूबसूरती से गया था. सुनिएगा.
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