‘हमें कतारों की आदत पड़ जानी चाहिए.’
‘हां बिल्कुल लाइन में लगने की आदत तो होनी ही चाहिए.’
‘ये बहुत ज़रूरी है कि हम कतारों में लगने के लिए खुद को ट्रेनिंग दे.’
‘हमें हर चीज़ के लिए कतारों की ज़रूरत है.’
‘हमें कतारों में खड़े होने की आदत ज़रूर लगनी चाहिए.’
‘बिल्कुल.’
‘कतार में लगने से हम धैर्यवान होना सीखेंगे.’
‘कतारें हमें सहिष्णु बनाएंगी.’
‘कतारों की आदत पड़नी चाहिए.’
‘बिल्कुल पड़नी चाहिए ये आदत.’
‘बहरहाल, सिर्फ हम जैसे लोगों को ही परेशानी होती है जिनके पास बस एक या दो बकरियां हैं. हम अपनी बकरियों और बाल-बच्चों को इस गर्मी में खींच ले आते हैं और घंटो कतार में खड़े रहते हैं. कितनी परेशानी होती हैं हमें. फिर उन लोगों का क्या होता होगा जिनके पास सौ-दौ सौ बकरियां होती होंगी?’
‘तुमने सुना नहीं? सरकार ने अपने अफ़सर उनके दरवाजों पर भेजने का खास इंतज़ाम किया है.’

पुस्तक: ‘पूनाची’ - अर्थात कथा एक काली बकरी की
लेखक: पेरुमल मुरुगन
अनुवादक: अनु सिंह चौधरी
प्रकाशन: एका प्रकाशन
कीमत: 299 रुपए
‘लेखक पेरुमल मुरुगन मर चुका है.’ साल 2015 में तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लेखन छोड़ने की घोषणा करते हुए यह लाइन लिखी थी. अपने अनोखे और खुले विचारों के लिए अक्सर आलोचनाओं के घेरे में रहने वाले मुरुगन ने करीब तीन साल तक लेखन से दूरी बनाकर रखी. यह वाक़या उनकी किताब ‘वन पार्ट वुमन’ पर हुए विवाद से जुड़ता है. इस किताब के बारे में कुछ दक्षिणपंथी संगठनों का कहना था कि इससे हिंदू धर्म की गलत छवि बनती है. विवाद इतना बढ़ा कि एक तरफ जहां मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया, वहीं दूसरी तरफ उन्हें नमक्कल के आर्ट्स कॉलेज की अपनी नौकरी तक छोड़नी पड़ गई. इस सबसे व्यथित होकर मुरुगन कुछ समय के लिए अज्ञातवास पर चले गए. यही वजह रही कि साल 2018 में जब उनका उपन्यास ‘पूनाची’ आया तो इसे एक मृत लेखक की वापसी कहा गया.
‘पूनाची’ का उप-शीर्षक बताता है कि यह एक ‘काली बकरी की कहानी’ है. लेकिन एक बकरी कहानी पढ़ने में पाठक को रूचि क्यों लेनी चाहिए, इसकी वजह मुरुगन किताब की भूमिका में बताते हैं. वे लिखते हैं कि- ‘जानवरों की सिर्फ पांच ऐसी प्रजातियां है जिनसे मैं भली-भांति परिचित हूं. कुत्ते और बिल्लियों का इस्तेमाल कविताओं में करता हूं. गायों या सुअरों के बारे में लिखने पर पाबंदी है तो बची रह गईं बकरियां और भेड़ें. बकरियों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है. इसलिए, मैंने तय किया कि मैं बकरियों के बारे में ही लिखूंगा.’ मुरुगन का यह तंज इस बात का अंदाजा दे देता है कि वे अपनी किताब से क्या कहना चाहते हैं. ‘पूनाची’ पढ़ने वालों को तब बहुत खुशी होती है जब इसे पढ़ते हुए उनका अंदाजा बिल्कुल सटीक बैठता हुआ लगता है. साथ ही, खूब-खूब आश्चर्य भी जब एक बकरी में उसे अपनी ज़िंदगी की भी झलक दिखाई देती है.
‘पूनाची’ के कथानक का विस्तार काफी लंबा-चौड़ा है. यानी परिवार, व्यापार, अफसरशाही-राजनीति जैसे सामाजिक बातों से लेकर प्रेम-ममत्व, दुख, वैराग्य जैसे गहरे भाव तक इसका हिस्सा बने हैं. यह मुरुगन की कल्पना का कमाल है कि एक बकरी के जरिए आप अपने आस-पास की इतनी सारी चीजों को मानो फिर टटोलकर देखते हैं. दिलचस्प यह है कि इसके पन्ने पलटते-पलटते बतौर इंसान भी अपनी खूबियों-खामियों को तोलने की कोशिश करते हैं.
किताब के सबसे रोचक हिस्से वे हैं जो पूनाची और पूवन की रहस्यमयी प्रेमकथा कहते हैं. इसमें प्रेम और अंतरंगता के अलावा एक अनजान लोक-संस्कृति की झलक भी दिखाई देती है जो खासा रोमांचित करती है. हो सकता है कि यह दक्षिण भारतीयों के लिए उतनी अनजान न हो लेकिन हिंदीभाषी या उत्तर भारतीयों के लिए इसे जानना-समझना जरूर नया होगा.
किताब के कुछ हिस्से पढ़ते हुए आपको इस बात का बहुत अफसोस होता है कि आप मूल किताब नहीं बल्कि उसका थर्ड डिग्री अनुवाद पढ़ रहे हैं. थर्ड डिग्री इसलिए कि तमिल में लिखी गई इस किताब का पहले अंग्रेजी और फिर अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया गया है. ऐसे में कई बार जो बात आपको सबसे अधिक रोमांचित कर रही होती है, उसका संदर्भ-प्रसंग को पूरी तरह से न समझ पाने पर थोड़ी कोफ्त भी होती है. इसके अलावा, कई जगहों पर हिंदी के कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो जरा अटककर गले उतरते हैं और उपन्यास की पृष्ठभूमि के हिसाब से उतने सटीक भी नहीं लगते हैं. लेकिन शायद इसे ही (अनुवाद के संदर्भ में) भाषा की सीमा कहा जाता है.
‘पूनाची’ को पढ़ते हुए एहसास होता है कि अगर आपके पास कहने के लिए कुछ हो तो उसे कहने के रास्ते निकल ही आते हैं. इसलिए सिर्फ पढ़ने वालों से ज्यादा यह उनके लिए उपयोगी है जो पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी चाहते हैं. यहां पर अगर बकरा-बकरी के प्रेम संवाद और चरवाहों की राजनीतिक चर्चा जैसी कुछ नई और अनोखी बाते हैं तो इसमें पत्रकारों के ओछेपन और अफसरशाही की दंबगई के कुछ हमेशा चलन में रहने वाले किस्से भी हैं. इन सबके मेल और भेड़-बकरी किरदारों से बनी इस किताब को विचित्र भी कहा जा सकता है. बाकी, विषय और विचार में यह एकदम अलग और उत्कृष्ट तो है ही.
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