दूध के टेट्रा पैक को महीनों तक रखा जा सकता है. इसे बंद हालत में फ्रिज में रखने की जरूरत नहीं होती. और डिब्बे को खोल लेने के बाद रेफ्रिजरेट करके इसे कई दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा टेट्रा पैक मिल्क को पीने के लिए उबालने की भी जरूरत नहीं होती. इतना सुविधाजनक होने के बावजूद डिब्बाबंद दूध का चलन भारत में उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया है. ऐसा होने की वजहों पर गौर करें तो पता चलता है कि इससे जुड़े कई मिथक हैं जिनके चलते लोग इनकी बजाय सिर्फ एक-दो दिन में खराब हो जाने वाले दूध के विकल्पों को तरजीह देते हैं.
पहले मिथक की बात करें तो यह टेट्रा पैक की शेल्फलाइफ से जुड़ता है. इस तरह के दूध को कई महीनों तक रखा जा सकता है. इसके चलते यह भ्रम पैदा होना स्वाभाविक है कि इसे खराब होने से बचाने के लिए इसमें प्रिजर्वेटिव्स मिलाए जाते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. दरअसल डिब्बाबंद दूध को केवल कुछ सेकंड्स के लिए करीब 140 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है. इससे उसके भीतर मौजूद हर तरह के जीवाणु खत्म हो जाते हैं. इसके बाद ठंडा करके इसे स्टेराइल (जीवाणुरहित) वातावरण में ही डिब्बे में भरा जाता है. इसीलिए टेट्रा पैक मिल्क को बिना प्रिजर्वेटिव्स के भी लंबे समय तक रखा जा सकता है.
यूएचटी (अल्ट्रा हाई टेम्प्रेचर) या एचटीएसटी (हाई टेम्प्रेचर शॉर्ट टाइम) कहलाने वाली यह प्रक्रिया ही डिब्बाबंद दूध से जुड़े एक दूसरे मिथक को जन्म देती है. यह भ्रांति आयुर्वेद की उस सीख से आई है जो बताती है कि किसी भी खाद्य सामग्री को बहुत ज्यादा गर्म करने पर उसके पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं. यह बात सही है लेकिन इसमें एक पेंच है. डिब्बाबंद दूध को बहुत थोड़े समय यानी कुछ सेकंडों के लिए ही इतने अधिक तापमान पर रखा जाता है. इतने समय में दूध में मौजूद विटामिन्स - बी1, बी2 और बी12 - नष्ट नहीं हो सकते हैं. इसके उलट, सामान्य दूध के साथ ऐसा होने की संभावना ज्यादा होती है. इस तरह के दूध को अक्सर काफी देर तक तक एक या कई बार उबालने के बाद इस्तेमाल में लाया जाता है. इसके चलते इसमें मौजूद कई पोषक तत्व खत्म या कम हो जाते हैं. पोषण विज्ञानियों के अनुसार साधारण दूध में केवल एक बार उबाल लाकर उसका इस्तेमाल करना ज्यादा सही होता है.
अगर टेट्रा पैक की बात करें तो उसे 180 दिनों के भीतर बिना गर्म किये ही इस्तेमाल किया जा सकता है. और यदि डिब्बा खोलने के बाद भी ऐसा दूध थोड़ा बच जाता है तो उसे फ्रिज में सही जगह रखकर (दरवाजे पर नहीं) 4-5 दिन और चलाया जा सकता है. यहां एक दूसरी तरह के मिथक की बात की जा सकती है. ज्यादातर लोग मानते हैं कि पैकेट वाले दूध को उबालने से वह ज्यादा दिनों तक सही बना रह सकता है. लेकिन यह बात गलत है. यूएचटी मिल्क को पूरी तरह से जीवाणुरहित वातावरण में टैट्रा पैक में भरा जाता है जोकि कई स्तरों वाली एक विशेष पैकिंग होती है. इस वजह से टेट्रा मिल्क के खराब होने की संभावना न के बराबर होती है. जानकार बताते हैं कि इस तरह के दूध को उबालना न सिर्फ उसकी शेल्फलाइफ को कम करता है बल्कि उसमें मौजूद न्यूट्रिएंट्स को भी कम कर देता है. पसंद और जरूरत के हिसाब से टेट्रा पैक वाले दूध को गरम किया जा सकता है लेकिन बिना किसी वजह के उसे उबालना ठीक नहीं है.
डिब्बाबंद दूध से जुड़ा एक और मिथक यह है कि यह बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं होता है. यह बिल्कुल सही नही है बल्कि इसके उलट जो दूध, डेयरी या दूध वाले से लिया जाता है, उसकी क्वालिटी उतनी विश्वसनीय नहीं कही जा सकती है. भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के आंकड़ों की मानें तो देश में बिकने वाला तकरीबन 70 फीसदी दूध मिलावटी होता है. इसमें ग्लूकोज, मिल्क पाउडर, रिफाइंड ऑयल से लेकर स्टार्च, यूरिया, डिटर्जेंट, अमोनियम सल्फेट या सोडियम बाई-कार्बोनेट जैसी खतरनाक चीजें मिली होती हैं. वहीं, कई क्वालिटी चेक्स से गुजरने वाले बड़े ब्रांड्स के पैकेज्ड दूध के साथ ऐसी धांधली होने की संभावना कम होती है. इसके अलावा, चिकित्सक भी इसके इस्तेमाल को बच्चों के लिए सुरक्षित बताते हैं. लेकिन इन सब खूबियों के बाद भी अगर ताजा दूध एकदम शुद्ध और सुरक्षित मिले तो डिब्बाबंद दूध उसका विकल्प नहीं हो सकता है.
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