संकट के इस समय में कुछ ऐसे आलेख, वीडियो और मैसेज हर तरफ पढ़ने-देखने को मिल जाएंगे जिनमें कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए तमाम तरह की एहतियात बरतने के लिए कहा जाता है. इनमें कई बार हाथ धोना या सैनिटाइजर को इस्तेमाल करते रहना, घर और कपड़ों को साफ-सुथरा रखना और सब्जी-फल समेत बाहर से आने वाले किसी भी सामान को बहुत अच्छे से साफ करने के बाद ही उनका इस्तेमाल करने जैसी सावधानियां शामिल है.

कई लेखों में यह भी बताया जाता है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए आपकी इम्यूनिटी का मजबूत होना जरूरी है. ये बताते हैं कि लॉकडाउन के समय अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को कैसे मजबूत रखा जा सकता है? इसके लिए तमाम तरह के सुझाव दिए जाते हैं, जैसे सुबह उठकर पानी में नींबू-शहद, एलोवेरा जूस, व्हीटग्रास जूस या एक खास तरह की ग्रीन टी पीना आपकी इम्युनिटी को बढ़ाता है. साथ ही, मल्टीविटामिन्स, कैल्शियम या जिंक जैसे मिनरल्स देने वाले तमाम नुस्खों के साथ-साथ कई तरह की कसरतों-योगासनों का भी जिक्र किया जाता है.

यहां पर पूछा जा सकता है कि क्या कुछ खास तरह के पेय या फूड सप्लीमेंट्स सचमुच आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं? क्या घर में बंद होने का हमारी इम्युनिटी पर कोई असर पड़ सकता है? या फिर, आजकल बरती जा रही अतिरिक्त साफ-सफाई हमारे लिए बीमारियों का खतरा कम करेगी या बढ़ाएगी?

इन सवालों को जवाब खोजते हुए सबसे पहले यह जान लेने की ज़रूरत है कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता क्या है और इसे कैसे बनाए रखा या बढ़ाया जा सकता है? एक लाइन में कहें तो रोग-प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी, वह शारीरिक व्यवस्था है जो किसी भी बीमारी से हमें बचाती है. यहां जिस शब्द पर ध्यान दिया जाना चाहिए, वह ‘व्यवस्था’ है. यानी, इम्युनिटी कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप सिर्फ नींबू खाकर या सिर्फ हफ्ते के सातों दिन व्यायाम कर हासिल कर सकते हैं. इसके लिए कई अलग-अलग तरह के भोजन, व्यायाम और शारीरिक-मानसिक परिस्थितियों की एक साथ जरूरत होती है. इनका संतुलन और सामंजस्य होने पर हमारे अंदर एक अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता या व्यवस्था बनती है.

थोड़ा विस्तार से बात करें तो जीवनशैली के अलावा उम्र, आनुवाशिंकी, परिवेश और तनाव आदि का असर भी हमारे इम्यून रिस्पॉन्स पर पड़ता है. दरअसल, हमारे शरीर में हर समय कई तरह की इम्यून सेल्स (रोग से बचाने वाली कोशिकाएं) बनती और नष्ट होती रहती है. चूंकि इनका बनना शरीर के भीतर चलने वाली जैव-रासायनिक क्रियाओं के साथ-साथ ऊपर बताई गई परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है, इसलिए यह कह पाना मुश्किल होता है कि कौन-सी चीज हमारी इम्यूनिटी पर कब, कितना और कैसा असर डाल रही है.

यह बात भी ध्यान देने लायक है कि इम्यूनिटी को प्रभावित करने वाले कारकों में से केवल भोजन, व्यायाम और कुछ हद तक तनाव को ही सीधे-सीधे नियंत्रित किया जा सकता है, इसलिए जब भी इम्यूनिटी बढ़ाने की बात आती है तो इनसे ही जुड़े सुझाव दिए जाते हैं. फिर भी पोषण-विज्ञानियों की मानें तो जरूरत से ज्यादा व्यायाम जहां चोट-मोच या शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों की कमी की वजह बन सकता है, वहीं एकदम कांटे की तौल सरीखी बैलेंस्ड डाइट लेने से भी आपको कुछ पोषक तत्वों की कमी हो सकती है. कई बार ऐसा भी होता है कि कोई जरूरी पोषण आपको किसी अनहेल्दी फूड से भी मिल जाता है. इसलिए कभी-कभार जीभ के मुताबिक खाना भी फायदेमंद साबित हो सकता है.

विज्ञान कहता है कि हाइब्रिड-प्रोसेस्ड फूड और बिगड़ती जलवायु के इस दौर में कई बार सही खाने से भी जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वक्त ज्यादातर लोगों को घरों में खुद काम करना पड़ रहा है इसलिए वे अक्सर इंस्टैंट नूडल्स, कॉर्नफ्लेक्स और ब्रैड जैसी चीजों को खाकर काम चला रहे है. ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि क्योंकि कई लोगों ने बुरे वक्त के लिए डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का भंडारण किया हुआ है और अब उन्हें एक-एक करके निपटाया जा रहा है.

कुल मिलाकर रोज आधा घंटा व्यायाम करें, जितनी तरह के हो सकें और जितने जरूरी हों अनप्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ खायें और जितना हो सके तनाव को खुद से दूर रखें. लेकिन इम्यूनिटी की गणना यहीं खत्म नहीं हो जाती. इसे प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक और भी है. चिकित्सा विज्ञान कहता है कि जरूरत से ज्यादा सफाई हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक असर डालती है. हमारे शरीर में छोटी-मोटी बीमारियों से लड़ने की क्षमता विकसित होती रहे, इसके लिए हमारा कभी-कभी कीटाणु, धूल, गंदगी के संपर्क में आते रहना ज़रूरी है. इसे हाइजीन हाइपोथिसिस कहा जाता है.

कई शोध बताते हैं कि हमारे शरीर में कई तरह के सूक्ष्मजीव रहते हैं जिनसे हम गंदगी और दूसरे लोगों से मिलने-जुलने के दौरान संपर्क में आते हैं. माइक्रोबायोटा कहे जाने वाले ये सूक्ष्मजीव हमारे पेट, त्वचा और शरीर के कई अंगों में रहते हैं और हमारे इम्यून सिस्टम का हिस्सा होते हैं. ये कई तरह की ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे दमा, अलग-अलग तरह की एलर्जी और हे-फीवर वगैरह से हमें बचाते हैं. इनमें से कई ऐसे भी होते हैं जिनकी उपस्थिति हमें मोटापे, मधुमेह और कुछ हद तक तनाव से भी बचाए रखने में मदद करती हैं.

बीते डेढ़ महीनों से देश भर में लागू लॉकडाउन के चलते लोग लगातार घरों में बंद हैं और साथ ही तमाम तरह की स्वच्छता से जुड़ी सावधानियां भी बरत रहे हैं. ऐसे में कीटाणुओं-प्रदूषकों से उनका संपर्क काफी कम हो गया है. अगर यह सब लंबे समय तक चलता है तो यह हमारी इम्यूनिटी को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है. लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सफाई से रहते-रहते हमारी इम्यूनिटी पूरी तरह खत्म हो जाएगी या फिर हमें गंदगी में लोटना शुरू कर देना चाहिए. जानकार बताते हैं कि माइक्रोबायोटा आम तौर पर बचपन में ही इम्यून सिस्टम का हिस्सा बन चुके होते हैं, वयस्क होने के बाद ये हमारी इम्युनिटी पर फर्क तो डालते हैं लेकिन उसकी दर कम ही होती है. इसलिए इस बात से निश्चिंत हुआ जा सकता है कि घरों के सुरक्षित माहौल में रहते हुए हमारी इम्यूनिटी को कोई भारी नुकसान हो सकता है.

लेकिन घरों में बंद होने के चलते होने वाला तनाव जरूर इम्यूनिटी को कमजोर करने वाला साबित हो सकता है. पिछले दिनों अकेलेपन पर हुए शोधों की दोबारा समीक्षा की गई थी. इसमें कोरोना वायरस के चलते घर पर बंद पड़े स्वस्थ लोगों में आने वाले बदलावों को भी शामिल किया गया. इसके नतीजे बताते हैं कि लंबे समय तक अकेले रहने का असर दिमाग पर ठीक वैसा ही होता है जैसा किसी दुखद त्रासदी का होता है. यह बात परिवारों में रहने वाले लोगों पर भी लागू होती है. एक समय बाद सदस्य केवल एक-दूसरे के साथ रहते हुए भी बोर हो जाते हैं और आपसी तनाव बढ़ने लगता है. यही वजह है कि लॉकडाउन के चलते दुनिया भर में घरेलू हिंसा के आंकड़ों में भारी बढ़त हुई है. इसके अलावा अगर लोगों तक लगातार परेशान करने वाली खबरें ही पहुंच रही हों तो भी उनके तनावग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है.

वजह जो भी हो तनाव बढ़ने पर शरीर में कॉर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज होता है जो इम्यून सेल्स को नष्ट करता है या उन्हें निष्क्रिय कर देता है. नतीजतन, हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है. यानी अगर घर पर बैठने से कोई हमारी इम्यूनिटी का दुश्मन बन सकता है तो वह कोई कीटाणु नहीं बल्कि खुद हमारा दिमाग है, इसलिए हमें इस पर ध्यान देने की सबसे ज्यादा ज़रूरत है. इसके लिए योग-प्राणायाम या किताबें पढ़ने से लेकर नेटफ्लिक्स बिंज-वाचिंग जैसे उपाय तक कारगर हो सकते हैं.

वैसे एक बात और है जो लॉकडाउन की वजह से हमारी इम्यूनिटी पर अपना प्रभाव डाल सकती है और वह है वायु प्रदूषण में कमी. ऐसे कई शोध हैं जो बताते हैं कि प्रदूषण कम होने का हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर सकारात्मक असर पड़ता है. यह बात दिल्ली जैसे दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों के लिए काफी मायने रखती है जहां लॉकडाउन की वजह से वायु प्रदूषण की मात्रा लगभग आधी हो गई है.

जहां तक इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तमाम तरह के जूस, ग्रीन-टी और ड्रिंक्स का सवाल है, उन्हें जानकार पैसों की बरबादी से ज्यादा और कुछ नहीं बताते हैं. लेकिन, अगर इनका इस्तेमाल आपको अच्छा महसूस कराता है तो फिर ऐसा करने में कोई बुराई भी नहीं है.