सरकारी अस्पतालों में कोरोना वायरस के इलाज में बदइंतजामी से सुप्रीम कोर्ट नाराज है. 12 जून को शीर्ष अदालत ने कहा कि इन अस्पतालों में मरीजों के साथ जानवरों से भी बुरा सलूक हो रहा है. उसका कहना था कि शवों के कूड़ेदान में मिलने जैसी घटनाएं हो रही हैं. अदालत ने यह भी कहा कि इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं सुनिश्चित करना सरकारों का फर्ज है. हालात को अफसोसजनक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, तमिनलाडु और पश्चिम बंगाल से विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी. बीमारी की जांच से लेकर शवों के निस्तारण तक हर मोर्चे पर अव्यवस्था की खबरों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था.
भारत में कोरोना वायरस के मरीजों का आंकड़ा चार लाख को पार कर चुका है. उधर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की मानें तो अभी भी देश में यह महामारी तीसरे यानी सामुदायिक संक्रमण वाले चरण में नहीं पहुंची है. संस्था के महानिदेशक बलराम भार्गव का कहना है कि देश की विशाल आबादी को देखा जाए तो अभी भी हमारे यहां मरीजों की संख्या बहुत कम है.
लेकिन इस कम ‘संख्या’ के सामने ही भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था ढेर होती दिख रही है. सरकारी अस्पतालों का हाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेकर सरकारों को फटकार लगानी पड़ रही है. उधर, निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस के इलाज के जो ‘पैकेज’ सार्वजनिक हो रहे हैं उनका बोझ एक बड़ी आबादी या तो उठा नहीं सकती या फिर ऐसा करने में उसकी माली हालत खस्ता होना तय है. सोशल मीडिया पर चुटकी ली जा रही है कि सरकारी अस्पताल जाने पर जान और निजी अस्पताल जाने पर जमीन-जायदाद जाना तय है. यानी कोरोना वायरस के मरीजों के लिए इधर, सांपनाथ और उधर, नागनाथ जैसी स्थिति है.
सरकारी अस्पतालों के हाल का एक अंदाजा उससे मिलता है जो दिल्ली की अमरप्रीत के साथ हुआ. यह चार जून की बात है. अमरप्रीत ने सुबह-सुबह एक ट्वीट किया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित कई लोगों को संबोधित इस ट्वीट में लिखा था, ‘मेरे पिता को तेज बुखार है. उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत है. मैं दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के बाहर खड़ी हूं और ये लोग उन्हें भर्ती करने को तैयार नहीं हैं. उन्हें कोरोना संक्रमण है और तेज बुखार और सांस लेने में तकलीफ है. मदद के बिना वे नहीं बचेंगे. कृपया मदद करें.’ एक घंटे बाद अमनप्रीत ने एक और ट्वीट किया, ‘वे नहीं रहे. सरकार ने हमें निराश किया.’
He is no more. The govt failed us. https://t.co/uFJef9JxSA
— Amarpreet (@amar_hrhelpdesk) June 4, 2020
इसी तरह पिछले महीने मुंबई के सायन अस्पताल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. इस वीडियो में अस्पताल के एक वार्ड में मरीज शवों के बगल में लेटे नजर आ रहे थे. वीडियो में दिख रहा था कि वार्ड के अलग-अलग बेड्स पर प्लास्टिक शीट्स में लिपटे हुए कम से कम सात शव रखे हुए हैं. इसी वार्ड में अलग-अलग बेड्स पर मरीज और उनके तीमारदार भी दिख रहे थे.
In Sion hospital..patients r sleeping next to dead bodies!!!
— nitesh rane (@NiteshNRane) May 6, 2020
This is the extreme..what kind of administration is this!
Very very shameful!! @mybmc pic.twitter.com/NZmuiUMfSW
उधर, निजी अस्पतालों में दूसरी समस्या है. उदाहरण के लिए हाल ही में दिल्ली के सरोज अस्पताल का एक सर्कुलर वायरल हुआ. इसमें कोरोना वायरस के मरीजों के लिए वार्ड, आईसीयू और वेंटिलेटर सुविधाओं के साथ इलाज की रेट लिस्ट थी. न्यूनतम खर्च जनरल वार्ड का था जिसमें मरीज को रखने पर रोज 40 हजार रु का बिल आना था. यही नहीं, इसमें यह भी कहा गया था कि कम से कम तीन लाख रु का बिल तो लिया ही जाएगा. यानी जनरल वार्ड में भर्ती मरीज भले ही अस्पताल में पांच दिन रहे, बिल दो लाख नहीं बल्कि तीन लाख रु वसूला जाएगा. इतना ही नहीं, सर्कुलर में यह भी कहा गया था कि जनरल वार्ड में भी भर्ती कराने के लिए पहले चार लाख रु जमा करवाने होंगे.
Letter of a Saroj Hospital refer to:
— RP Singh: National Secretary BJP (@rpsinghkhalsa) June 7, 2020
Govt Of Delhi ruling Vide their letter No. 23/413 Gen/Circular/HC/OGHS/HO/S366 dated 24/5/20
Patient will be admitted only after adv. of ₹4 Lac in 2Bedded 3Bedded category & ₹5 Lac in SingleRoom & Rs.8 Lac in ICU@ArvindKejriwal is it true ? pic.twitter.com/aD5Ma8vyEm
दूसरे प्राइवेट अस्पतालों में भी कमोबेश यही स्थिति दिख रही है. उदाहरण के लिए दिल्ली के मैक्स अस्पताल में कोरोना वायरस के इलाज के खर्च से जुड़ी यह सूची भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. अब इस बात की तस्दीक हो चुकी है कि यह सूची मैक्स अस्पताल की ही है. इसके मुताबिक मैक्स अस्पताल के जनरल वॉर्ड में किसी पेशेंट को रखने का खर्च 25 हजार रुपये प्रतिदिन से ज्यादा है. अगर वेंटीलेटर वाले आईसीयू की बात करें तो यह साढ़े पचहत्तर हजार रुपये है. और इन दोनों में ही दवाओं और विभिन्न परीक्षणों आदि का खर्च शामिल नहीं है. लोग इसे गुस्सा जताते हुए शेयर कर रहे हैं.
First pay taxes . Then pay a hefty sum to live so that you can pay more taxes . Story of India . This is one of the reasons why many Indians prefer to migrate to other countries for a living .#maxhospital pic.twitter.com/8k6kRVJgmJ
— Gaurav Agnihotri (@Gaurav81184) June 13, 2020
इसे देखते हुए मांग उठ रही है कि सरकारें स्थिति में दखल दें और कोविड-19 के इलाज में होने वाले खर्च की अधिकतम सीमा तय करें. कुछ राज्य सरकारों ने ऐसा किया भी है. उदाहरण के लिए तमिलनाडु ने अलग-अलग कैटेगरी के अस्पतालों के हिसाब से अलग-अलग रेट तय किए हैं. अगर कोरोना वायरस का कोई मरीज ग्रेड-3 और ग्रेड-4 अस्पतालों के जनरल वार्ड में इलाज कराता है तो उससे रोज पांच हजार रु से ज्यादा का बिल नहीं वसूला जा सकता. ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के अस्पतालों में यह आंकड़ा साढ़े सात हजार होगा. इसके अलावा आईसीयू वार्ड का खर्च अधिकतम 15 हजार रुपये प्रतिदिन ही हो सकता है.
महाराष्ट्र सरकार भी कोरोना वायरस के इलाज में प्रतिदिन के अधिकतम खर्च की सीमा तय कर चुकी है. नॉन आईसीयू बेड के लिए यह सात हजार और आईसीयू बेड के लिए नौ हजार रु तय की गयी है. उधर, दिल्ली में सत्ताधारी आप सरकार ने भी इसके संकेत दिए हैं. उसका कहना है कि निजी अस्पतालों में कोरोना वायरस के इलाज के अधिकतम खर्च की सीमा तय करने पर विचार किया जा रहा है. फिलहाल दिल्ली सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को इस महामारी के इलाज से जुड़ी रेट लिस्ट रिसेप्शन या फिर बिलिंग काउंटर जैसी जगहों पर प्रमुखता से लगाने का निर्देश दिया है. उसने यह भी कहा है कि हर निजी अस्पताल में एक सीनियर नर्सिंग ऑफिसर भी तैनात होगा जो मरीजों की मदद करने के साथ उनकी शिकायतें सरकार तक पहुंचाएगा.
उधर, निजी अस्पतालों के अपने तर्क हैं. एक परिचर्चा में मैक्स हेल्थकेयर इंस्टीट्यूट लिमिटेड के चेयरमैन अभय सोइ कहते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान मानव संसाधनों पर उनका खर्च ढाई गुना तक बढ़ गया है क्योंकि उनकी बहुत किल्लत हो गई है. उनके मुताबिक खुद उनके अस्पताल में काम करने वालों में से करीब साढ़े पांच सौ लोग कोरोना से संक्रमित हैं. अभय सोई यह भी कहते हैं कि उन्हें दूसरे संसाधन भी बढ़ाने पड़े हैं, जैसे कि दिल्ली में ही उन्हें चार होटलों को किराए पर लेना पड़ा है. वे बताते हैं, ‘इसके अलावा हमने डॉक्टरों और नर्सों को क्वारंटीन करने के लिए छह हॉस्टल्स भी किराए पर लिए हैं.’ अभय सोइ का दावा है कि लोगों को इलाज का खर्च बहुत ज्यादा लग रहा है, लेकिन सारे बेड भरे होने पर भी उनका अस्पताल घाटे में चल रहा है और सभी निजी अस्पतालों का हाल कमोबेश ऐसा ही है.
बीबीसी से बातचीत में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर राजन शर्मा कहते हैं कि खर्च पर सीमा से जुड़ा कोई भी एकतरफा आदेश जारी करने से पहले सरकार को इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए. उनके मुताबिक बेहतर होगा कि सभी पक्ष मिलकर विचार-विमर्श करें और तब किसी फैसले पर पहुंचें. हालांकि कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि निजी अस्पतालों के दावों पर भरोसा न करते हुए सरकार को उनका ऑडिट करवाना चाहिए और इलाज की सही लागत का पता लगाकर मुनाफे की एक सीमा तय करनी चाहिए. ऐसे लोग यह तो मानते हैं कि इस समय अस्पतालों का खर्च काफी बढ़ गया है लेकिन वे यह मानने को तैयार नहीं दिखते कि यह इतना बढ़ गया है कि तीन हजार से सीधा 25 हजार हो जाए.
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ रमा वी बारू इस बारे में थोड़ी अलग राय रखती हैं. उनके मुताबिक होना तो यह चाहिए था कि जब हालात बिगड़ने लगे थे तभी सरकार कुछ समय के लिए इन अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण कर देती और उनका प्रबंधन अपने हाथ में ले लेती. कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल स्पेन और इटली ने ऐसा ही किया था. इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि कोरोना संक्रमित किसी व्यक्ति से निजी अस्पतालों में भी सामान्य पैसे ही लिये जाने चाहिए और सरकार को चाहिए कि वह इन अस्पतालों के बढ़े हुए खर्चों की भरपायी अपनी जेब से करे.
और सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था कैसे सुधरे? जानकार मानते हैं कि इसका कोई फौरी हल नहीं है क्योंकि अभी जो समस्या दिख रही है वह रातों-रात पैदा नहीं हुई है बल्कि यह स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करने को लेकर सरकारों की हिचक का नतीजा है. भारत में सरकार आज भी स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज 1.29 फीसदी ही खर्च करती है. प्रति 10 हजार लोगों पर यहां के अस्पतालों में औसतन 8.5 बेड और आठ डॉक्टर हैं. जिस दक्षिण कोरिया ने कोरोना वायरस पर तेजी से लगाम लगाने में कामयाबी पाई वहां यह आंकड़ा करीब 12 गुना ज्यादा है. जानकारों के मुताबिक इस मामले में भारत की लचर स्थिति एक व्यापक नीति से ही सुधर सकती है जिसमें डॉक्टर तैयार करने से लेकर दूसरी जरूरी सुविधाएं जुटाने तक हर मोर्चे पर सुधार का लक्ष्य हो.
नहीं तो आज कोरोना वायरस है, कल कुछ और होगा और देश के ज्यादातर नागरिकों के लिए इधर कुआं, उधर खाई वाली यह स्थिति बनी रहेगी.
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