‘…तो दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे आप डरते हों?’
‘शायद मौत!’
ऊपर लिखी हुई पंक्तियां साल 2019 में फिल्म पत्रकार कोमल नाहटा और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के बीच हुई एक बातचीत का हिस्सा हैं. इस बातचीत में सुशांत आगे कहते हैं कि जब वे सो रहे होते हैं तो उन्हें पता नहीं होता है कि वे कौन हैं और शायद मरने के बाद भी ऐसा ही होता होगा, इसलिए उन्हें मौत से डर लगता है. इसे सुनकर, कई दिनों बाद भी उनके दुनिया छोड़कर चले जाने पर होने वाली बेयकीनी कहीं ज्यादा गहरी हो जाती है. ख्याल आता है कि हर चीज़ को जान लेने की ख्वाहिश रखने वाला और मौत से डरने वाला कोई इंसान आत्महत्या कैसे कर सकता है? और क्यों? शायद यह वही सवाल है जो इस समय उनके प्रशंसक बार-बार, लगातार पूछ रहे हैं.
मीडिया चाहे कुछ भी कहता रहे लेकिन इस वक्त इस ‘क्यों’ का सही जवाब कम से कम उसके पास तो नहीं है. ऐसे में उनसे जुड़ी कोई भी कच्ची-पक्की बात कहना/दोहराने का कोई मतलब नहीं. इस समय अपने चहेते अभिनेता के लिए अगर कुछ किया जा सकता है तो यही कि सुशांत के अच्छे काम को याद किया जाये और उनके जैसे दूसरे अभिनेताओं को प्रोत्साहित किया जाए.
लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि सुशांत सिंह राजपूत के चाहने वाले, जो लगातार सोशल मीडिया पर अपनी बात कहने-सुनवाने की कोशिश में लगे हुए हैं, वे ‘क्या’ कह रहे हैं और उसका क्या असर हो रहा है, इसे नज़रअंदाज कर दिया जाए. वे जो कह रहे हैं वह थोड़ा-बहुत जानते-मानते तो हम सभी पहले से हैं लेकिन इसे वे जितनी ताकत के साथ कह रहे हैं उसने बॉलीवुड में एक नई तरह के मीटू आंदोलन को जन्म दे दिया है - नेपोटिज्म के मीटू आंदोलन को.
शुरू से शुरू करें तो, 14 जून को सुशांत सिंह राजपूत के निधन की खबर आने के तुरंत बाद जहां मानसिक स्वास्थ्य और उससे जुड़ी जागरुकता पर बातें की जा रही थीं. वहीं, इसके कुछ दिन बाद आने वाली प्रतिक्रियाओं में इसे बॉलीवुड में फैले नेपोटिज्म से जोड़कर देखा जाने लगा. नेपोटिज्म को लेकर हमेशा हमलावर रहने वाली कंगना रनोट यहां पर भी सबसे आगे नज़र आईं. करीब दो हफ्ते पहले उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो जारी किया था जिसमें कई ब्लाइंड आर्टिकल्स का हवाला देते हुए वे इस मौत को इमोशनल, साइकोलॉजिकल और मेंटल लिंचिंग बताती नज़र आईं थीं. कंगना से पहले, सुशांत को लॉन्च करने वाले निर्देशक अभिषेक कपूर ने भी अपने एक साक्षात्कार में सुशांत सिंह की मौत को ‘सिस्टमैटिक डिस्मेंटलिंग ऑफ अ फ्रेजाइल माइंड’ (एक संवेदशील मन को लगातार तोड़ा जाना) बताया था.
वहीं, दूसरी तरफ सुशांत के प्रशंसक यशराज बैनर को इस बात के लिए कटघरे में खड़े करते नज़र आए कि बैनर ने तीन फिल्मों का कॉन्ट्रैक्ट करने के बावजूद तीसरी फिल्म उनके साथ क्यों नहीं बनाई. इस दौरान, इस बात की भी चर्चा रही कि ‘बेफिकरे’ और ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ जैसी फिल्में सुशांत सिंह के हिस्से में सिर्फ यशराज बैनर की पक्षपातपूर्ण नीतियों के चलते आते-आते रह गईं. अपुष्ट खबरें कहती हैं कि राम-लीला के लिए संजय लीला भंसाली पहले सुशांत सिंह को लेना चाहते थे लेकिन यशराज टैलेंट मैनेजमेंट ने कॉन्ट्रैक्ट का हवाला देकर उन्हें किसी और प्रोडक्शन हाउस के साथ काम करने की अनुमति नहीं दी. वहीं, एक अन्य अभिनेता के साथ भी कंपनी का ऐसा ही कॉन्ट्रैक्ट था लेकिन उन्हें यह फिल्म करने से नहीं रोका गया. इसके अलावा, पिछले दिनों उन खबरों और ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट्स भी खासे शेयर किए गए जिनमें हाफ गर्लफ्रेंड, आशिकी-2 जैसी कई फिल्मों में सुशांत को कास्ट करने की बात कही गई थी लेकिन बाद में, इन फिल्मों में फिल्मी घरानों से आने वाले अभिनेता नज़र आए. अगर ये बातें आधी-अधूरी भी सही हैं तो इनसे पता चलता है कि फिल्म उद्योग के दिग्गज कैसे अपने मनचाहे लोगों को आगे बढ़ाने के लिए रोज नियम बदलते रहते हैं.
टैलेंट मैनेजमेंट से जुड़े दावों पर फिल्मकार अभिनव कश्यप की टिप्पणी भी ध्यान देने लायक है. ‘दंबग’ जैसी सुपरहिट-मनोरंजक फिल्म बनाने वाले अभिनव कश्यप ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर बॉलीवुड में टैलेंट मैनेजमेंट के नाम पर होने वाली गड़बड़ियों के बारे में बताया था. उनका कहना था कि टैलेंट मैनेजमेंट कंपनिया कलाकारों का करियर बनाती नहीं बल्कि बरबाद करती हैं. अभिनव के मुताबिक कंपनियां लीगल कॉन्ट्रैक्ट में फंसाकर दशकों तक कलाकारों को घुमाती रहती हैं और लंबे समय तक मौका न मिलने से लोग जब हताश हो जाते हैं तो वे अक्सर या तो आत्महत्या की तरफ बढ़ जाते हैं या फिर, कंपनियों के हाथों अपना शोषण करवाने पर मजबूर हो जाते हैं. कई बार इनका इस्तेमाल फिल्म, कॉर्पोरेट और राजनीति से जुड़े बड़े लोगों के इगो मसाज या सेक्शुअल डिमांड को पूरा करने में किया जाता है.
इस पोस्ट में बॉलीवुड में होने वाली दबंगई और गुटबाज़ी का जिक्र करते हुए, कश्यप ने सलमान खान और उनके भाइयों, अरबाज़ और सोहैल खान पर उनका करियर खत्म करने का आरोप भी लगाया था. उनका कहना था कि खान बंधुओं ने न सिर्फ उन्हें इंडस्ट्री में काम करने से रोका बल्कि तरह-तरह की धमकियां भी दीं. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अरबाज़ खान ने कानूनी कार्यवाई करने की बात कही थी. इस दौरान ध्यान खींचने वाली बात यह रही कि इस खबर को कई बड़े एंटरटेनमेंट मीडिया मंचों द्वारा प्रकाशित नहीं किया गया. इस पर सोशल मीडिया पर कुछ लोग यह भी कहते हुए नज़र आए कि शायद मीडिया को अभिनव कश्यप से जुड़ी खबर दबाने का इशारा किया गया है.
वैसे तो सलमान खान, कई बड़े सितारों का करियर बनाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन विवेक ओबेरॉय समेत कुछ और हस्तियों का करियर खत्म करने का दोष भी उनके सिर पर ही मढ़ा जाता है. साथ ही, कुछ साल पहले एक छोटी सी बात पर गायक अरिजीत सिंह से हुई तनातनी का भी अक्सर ही जिक्र होता रहता है. इन सबके अलावा भी सलमान खान पर अपने भाइयों, बहनोई और कई स्टार किड्स को प्रमोट करने को लेकर नेपोटिज्म के आरोप लगते रहे हैं. यहां तक पिछले दिनों अभिनेत्री जिया खान की मां ने सलमान खान पर जिया के सुसाइड केस की सीबीआई जांच को प्रभावित करने का आरोप भी लगाया था. जिया खान ने साल 2013 में आत्महत्या कर ली थी और उस समय वे अभिनेता आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली के साथ रिलेशनशिप में थीं. इसलिए आत्महत्या के इस मामले में सूरज की भूमिका की भी जांच की जा रही थी. जिया की मां का कहना है कि सूरज को बचाने के लिए ही सलमान खान ने ऐसा किया था.
नेपोटिज्म पर थोड़ी और बात करें तो राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना, तापसी पन्नू सहित बाहर से आने वाले लगभग हर सितारे ने बॉलीवुड में नेपोटिज्म होने या इसका शिकार होने की बात कही है. यहां तक कि खुद सुशांत सिंह राजपूत ने भी अपने कई साक्षात्कारों में नेपोटिज्म पर बार-बार यह कहा था कि ‘बॉलीवुड समेत लगभग हर क्षेत्र में नेपोटिज्म है. जहां इस तरह की चीजें होती हैं वहां मीडियोक्रिटी चलती है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन यह इंडस्ट्री बुरी तरह ढह जाएगी.’
दरअसल, बीते दो-तीन सालों में बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर बहस मुखर हुई है. खास कर कंगना रनोट जैसे लोग सीधे-सीधे लोगों का नाम लेकर आरोप लगाते हैं और करण जौहर तो अक्सर ही उनके निशाने पर रहते हैं. उनके प्रोडक्शन हाउस में बनी फिल्मों में स्टार किड्स की उपस्थिति हमेशा से रही है लेकिन उनके निर्देशन में बनी पिछली दो फिल्मों - स्टूडेंट ऑफ द इयर और स्टूडेंट ऑफ द इयर-2 - के बाद से इसके लिए उनकी खुलकर आलोचना की जाने लगी है. वे पिछले कुछ समय से एक तरह से नेपोटिज्म के पोस्टर बॉय बन गए हैं. यही वजह रही कि सुशांत की मौत के बाद लोगों की कड़वी प्रतिक्रियाओं का सबसे ज्यादा शिकार उन्हें ही होना पड़ा.
कुछ उदाहरण देखें तो आयुष्मान खुराना ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र करते हुए यह लिखा है कि करण जौहर के ऑफिस में फोन करने पर उन्हें कहा गया था कि ‘धर्मा प्रोडक्शन्स केवल स्टार्स के साथ काम करता है.’ जानने वाले जानते हैं कि यहां पर स्टार्स से मतलब पॉपुलर हो चुके स्टार या बॉर्न-स्टार (स्टार किड्स) से था. इससे पहले ‘कॉफी विद करण’ के एक एपिसोड में वे करण जौहर के सामने भी यह बोल चुके हैं. इसके अलावा, सुशांत सिंह राजपूत के मसले पर टिप्पणी करते हुए अभिनेता इंदर कुमार की पत्नी पल्लवी ने भी करण जौहर पर नेपोटिज्म के चक्कर में सही टैलेंट को मौका न देने का आरोप लगाया है. अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में पल्लवी का कहना है कि करण जौहर ने वक्त रहते उनके पति की मदद नहीं की जबकि वे न सिर्फ टैलेंटेड थे बल्कि एक समय पर काफी सफल भी रह चुके थे. साल 2017 में दिल का दौरा पड़ने से इंदर कुमार की मौत हो गई थी.
लेकिन अगर कंगना रनोट, अभिनव कश्यप और अभिषेक कपूर की बातों पर अगर ध्यान दिया जाए तो ये सिर्फ नेपोटिज्म की शिकायत नहीं करते हैं. इनकी बातों से बॉलीवुड में पसरी दबंगई और माफियागिरी की झलक भी मिलती है और नेपोटिज्म इसका एक हिस्सा मात्र है. बिजनेस पर कब्जा बनाए रखने के लिए, चीजों को अपने नियंत्रण में रखने के लिए, चर्चा में बने रहने के लिए या फिर, कई बार अपने अहं को तुष्ट करने के लिए भी फिल्म उद्योग के तमाम बड़े लोग अपने हिसाब से लोगों का इस्तेमाल करते हैं. अभिनय के साथ-साथ संगीत के क्षेत्र में भी ऐसा ही होता है, इसका उदाहरण पिछले दिनों सोनू निगम के वीडियो से खड़ा हुआ विवाद है. हाल ही में सोनू निगम ने अपने एक डेली व्लॉग (वीडियो-ब्लॉग) में कहा था कि आने वाले समय में सुशांत जैसी ही मौतें संगीत उद्योग में भी देखने को मिल सकती हैं क्योंकि यहां पर भी ‘माफिया’ सक्रिय है जो अपनी मर्जी और सुविधा के हिसाब से प्रतिभाशाली/गैर-प्रतिभाशाली लोगों के करियर को बिगाड़ते-बनाते हैं.
हालांकि सोनू निगम ने अपने वीडियो में किसी का नाम नहीं लिया था लेकिन गायिका और अभिनेत्री दिव्या खोसला कुमार, जो टी-सीरीज के मुखिया भूषण कुमार की पत्नी हैं, ने इस पर आपत्ति जताते हुए एक वीडियो जारी किया था. इसके बाद से सोशल मीडिया पर एक तरह का वीडियो वॉर छिड़ गया है और सोना मोहपात्रा, अदनान सामी, अलीशा चिनाय सहित कई अन्य मशहूर गायकों ने भी म्यूजिक इंडस्ट्री पर माफिया के कब्जे और क्रिएटिविटी को कंट्रोल किए जाने की बात कही है. सोना मोहपात्रा ने अपने वीडियो में सोनू निगम का समर्थन करते हुए तुलसी कुमार और ध्वनि भानुशाली की योग्यता पर सवाल उठाया है. तुलसी कुमार, टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार की बहन हैं और ध्वनि भानुशाली, टी-सीरीज के को-प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली की बेटी हैं. वहीं, मोनाली ठाकुर ने अपने एक साक्षात्कार में सीधे शब्दों में कहा है कि ‘म्यूजिक इंडस्ट्री ऐसी है जहां मिसफिट होने वालों को बिल्कुल किसी चींटी की तरह कुचल दिया जाता है. कंपोजर हो, सिंगर हो या लिरिसिस्ट हो सबके साथ ऐसा होता है. यहां केवल मीडियोकर लोगों को ही आगे बढ़ाते रहते हैं.’
सोनू निगम के वीडियो से शुरू हुई इस बहस से कहीं पहले लेखक-गीतकार जावेद अख्तर अक्सर ही फिल्म संगीत की दुनिया में गुटबाज़ी की बात कहते रहे हैं. हाल ही में बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि ‘बहुत से लोगों ने मुझसे लिखवाना बंद कर दिया है. कॉपीराइट-लॉ पास होने के बाद संगीतकारों और गीतकारों को गानों की रॉयल्टी मिलने लगी है. ज़ाहिर है यह बात म्यूजिक कंपनियों को खराब लगी तो कहीं न कही मुझे बायकॉट कर दिया है. मेरे साथ काम करना बंद कर दिया है.’ जावेद अख्तर साल 2010 से 2016 तक राज्यसभा के सदस्य रहे थे, इस दौरान उनकी कोशिशों के चलते देश में कॉपीराइट-लॉ पास हो सका था. यह कानून गाने की रॉयल्टी पर फिल्म कंपनी के अलावा गायक, संगीतकार और गीतकार का अधिकार होने की भी बात कहता है.
नेपोटिज्म के मीटू आंदोलन पर लौटें तो नेपोटिज्म का विरोध करने और सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के नाम पर एक तबका यहां भी कुछ ऐसा व्यवहार करता हुआ नज़र आया जिसे ठीक कहना सही नहीं होगा है. लोगों ने नाराजगी में आलिया भट्ट, सोनम कपूर, सोनाक्षी सिन्हा, अर्जुन कपूर और खासकर करण जौहर को बहुत बुरी तरह से ट्रोल किया. बड़ी संख्या में लोगों ने आलिया भट्ट और करण जौहर को इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अनफॉलो भी किया है. नतीजतन, इनमें से ज्यादातर हस्तियों ने या तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर दिए हैं या वहां जाना छोड़ दिया है, या फिर अपने कमेन्ट सेक्शन को कस्टमाइज कर दिया है.
बीते दो हफ्तों के सोशल मीडिया ट्रेंड्स को देखा जाए तो लगभग हर दिन सुशांत सिंह राजपूत से जुड़े हैशटैग सोशल मीडिया टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक में देखे जा सकते हैं. इनमें #सुशांत सिंह राजपूत, #बॉलीवुड ब्लॉक्ड सुशांत, #अवर रियल हीरो सुशांत, #इंडिया डिमांड्स सीबीआई फॉर एसएसआर, #करण जौहर इज बुली शामिल हैं. इससे जुड़े कुछ आंकड़ों की बात करें तो अकेले हैशटैग ‘जस्टिस फॉर सुशांत सिंह राजपूत’ पर कुल 36 हजार से ज्यादा टिप्पणियां आईं थीं. वहीं, हैशटैग ‘करण जौहर इज बुली’ के साथ दस हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी राय रखी है. एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि बीते दो हफ्तों में गूगल पर ‘नेपोटिज्म इन बॉलीवुड’ टर्म सर्च किए जाने की फ्रीक्वेंसी लगभग 40 गुना बढ़ गई है.
लगे हाथ, यहां नेपोटिज्म पर मीडिया और सोशल मीडिया के रुख की भी बात कर लेना जरूरी है. इस समय भले ही इन दोनों जगहों पर बाहर से आने वाले कलाकारों को सम्मान देने की बात कही जा रही है लेकिन किसी आम दिन पर इनका रुख भी फिल्मी सितारों के बच्चों को लेकर दीवानों जैसा ही होता है. सोशल मीडिया पर करीना कपूर के बेटे तैमूर अली खान के क्यूट पिक्स वायरल होने की बात हो या फिर मीडिया मंचों द्वारा दिया जाने वाला शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान, अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली के हॉट-पिक्स देखे जाने का आमंत्रण हों, दोनों ही बातें मीडिया-सोशल मीडिया के स्टार किड्स के ऑबसेशन की ओर ही इशारा करती हैं.
बीते साल, ‘लव सोनिया’ और ‘सुपर-30’ जैसी फिल्मों में नज़र आईं मृणाल ठाकुर का एक अनुभव सितारा-संतानों के प्रति मीडिया के रुख को भली तरह से समझा देता है. मृणाल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि एक अवॉर्ड फंक्शन के दौरान उनके इंटरव्यू को बीच में छोड़कर मीडिया जान्हवी कपूर की बाइट लेने दौड़ पड़ा था. यह कहते हुए मृणाल कहती हैं कि नेपोटिज्म भीतर तो है ही लेकिन यह तो मीडिया और ऑडियंस पर निर्भर करता है कि वे किसे देखना चाहते हैं और किसे नहीं.
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