भारतीय महिलाओं के शिक्षा के स्तर में तो बढ़ोत्तरी हो रही है लेकिन इसके साथ-साथ अब उनके लिए अपने जितना या ज्यादा पढ़ा-लिखा दूल्हा पाना पहले से मुश्किल हो गया है. और इसकी वजह यह नहीं है कि अब वे लड़कों से ज्यादा शिक्षित हो गई हैं.
ये परिणाम एक ऐसे शोध के हैं जिसमें 1970 से लेकर 2000 के दशक तक भारत में हुई शादियों की तुलना की गई है. स्टडी में पाया गया कि उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं ने बड़ी तादाद में ऐसे पुरुषों से शादी की जो शिक्षा के स्तर में उनसे कम थे लेकिन पारिवारिक समृद्धि में उनसे कहीं बेहतर थे.
‘द इमरजेंस ऑफ एजुकेशनल हाइपोगैमी इन इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुई इस स्टडी के लेखक हैं लिन, सोनलडे देसाई और फेनियान चेन, जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड से जुड़े हैं. 2019 के दिसंबर में छपी ये रिपोर्ट इंडिया ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे पर आधारित है. इसमें भारत में शिक्षा और शादी के बीच के संबंधों को समझने की कोशिश की गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक ‘ऐसी शादियों की संख्या में लगातार होने वाले बढ़ोत्तरी भारतीय समाज में गहरे तक मौजूद लैंगिक असमानता’ को जाहिर करती है. इसके मुताबिक ऐसी शादियों के कई सामाजिक और आर्थिक कारण हैं, जैसे कि जातिवाद, नौकरियों में महिलाओं की कम भागीदारी, महिलाओं को कम वेतन मिलना - खास तौर पर उन्हें जिनके पास आर्ट्स की डिग्री है - और महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी नहीं होना.
पिछले 40 सालों में, सभी शैक्षिक स्तरों पर, पत्नियों के मुकाबले बेहतर शिक्षा वाले पतियों का अनुपात, 1970 के दशक के 90 फीसदी से घटकर 2000 के दशक में 60 फीसदी हो गया. वहीं कम शिक्षा वाले पुरुषों से शादी करने वाली महिलाओं का अनुपात, जो 1970 के दशक में 10 फीसदी ही होता था, वह 2000 के दशक में बढ़कर 30 फीसदी हो गया है.
इस रिसर्च के लेखकों में से एक झियोंग ली के मुताबिक, ‘सिर्फ महिलाओं की शिक्षा में इजाफा होने से लैंगिक असमानता खत्म नहीं हो जाती.’ ली आगे कहते हैं कि ‘भारत में शिक्षा से “न तो शादी में कोई ताकत हासिल होती है, न ही शादी का फैसला लेने की ताकत मिलती है और न ही कोई सामाजिक-आर्थिक आजादी” मिलती है.’
भारत में शादियों का स्वरूप बिलकुल अलग
स्टडी के मुताबिक भारत में शादी और शिक्षा के बीच का संबंध पूरी दुनिया से बिलकुल अलग है. पूरे विश्व में जब महिलाओं की शिक्षा का स्तर ऊंचा होता है, हाइपरगैमी यानी बेहतर शिक्षा वाले पुरुष और कम शिक्षा वाली महिलाओं के बीच शादी की संख्या में कमी आती है, और दो समान शिक्षा वाले जोड़ों के बीच शादियों, जिसे होमोगैमी कहते हैं, की संख्या बढ़ती जाती है.
उदाहरण के लिए, लिन ने बताते हैं कि चीन और अमेरिका में, महिलाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ने के बाद, ज्यादा संख्या में महिलाओं की शादी ऐसे पुरुषों से होने लगी जो शिक्षा में उनकी बराबरी के होते थे, और कम शिक्षा वाली महिलाओं से पुरुषों की शादी का अनुपात गिरने लगा. लिन के मुताबिक, ‘भारत इस मामले में सबसे अलग है, यहां इससे होमोगैमी में कोई तब्दीली नहीं आई, उल्टा हाइपरगैमी का अनुपात बढ़ता चला गया.’
लिन ने बताया कि जिन देशों में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा शिक्षित हैं वहां महिलाएं कम पढ़े लिखे पुरुषों से शादी करती हैं, ऐसा यूरोप के कुछ देशों में होता है. लेकिन भारत पर यह लागू नहीं होता. जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से देश में महिला साक्षरता दर 1981 में सिर्फ 29.8% थी. 2011 में यह आंकड़ा बढ़कर 65.5% हो गया. लेकिन यह आंकड़ा पुरुष साक्षरता की दर, जो कि इसी दौरान 56.4% से बढ़कर 82.1% हो गई, के सामने बहुत कम है.
इस स्टडी के मुताबिक, 1970 और 80 के दशकों से अगर तुलना की जाए तो कम शिक्षित पुरुषों से महिलाओं की शादी की संभावना 1990 के दशक में 27% और 2000 के दशक में 28% ज्यादा हो गई.
लिन के मुताबिक हाइपोगैमी में इस बढ़ोतरी की पुष्टि 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से भी होती है.
माता-पिता द्वारा तय किए गए विवाह और जाति की वजह से योग्य पुरुषों का विकल्प कम हो जाता है
भारत में लगभग सभी लोग शादी करते ही हैं. स्टडी के मुताबिक यहां अकेली रहने वाली महिलाओं की तादाद जहां 1971 में सिर्फ 0.9% थी और 2011 में भी यह आंकड़ा केवल 3.7% ही था. शोधकर्ताओं ने इस बारे में लिखा, ‘जहां चीन में महिलाएं किसी कम शिक्षित पुरुष से शादी करने के बजाए हमेशा के लिए अकेला रहना पसंद करती हैं, भारत में महिलाओं के लिए यह विकल्प चुनना आसान नहीं है.’
लिन के मुताबिक ‘पारिवारिक रजामंदी से शादी करने के रिवाज की वजह से, भारत में महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार नहीं है.’ रिसर्च में पाया गया कि भारत में 5% से भी कम लोग ही अपने साथी का खुद चुनाव कर पाते हैं. पारिवारिक रजामंदी से होने वाली शादियों में ज्यादातर पुरुष और महिलाएं एक ही जाति के होते हैं, जिससे महिलाओं के विकल्प और सीमित हो जाते हैं.
शादी के लिए विकल्प कम होने की एक और वजह है, रिश्तेदारों के बीच शादी होना. शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसी शादियों में, जिसका चलन ज्यादातर दक्षिण भारत में है, इस बात की संभावना 20 फीसदी बढ़ जाती है कि किसी महिला को कम शिक्षित पुरुष से शादी करनी पड़े.
ज्यादातर महिलाएं आर्ट्स की पढ़ाई करती हैं, जिससे उन्हें नौकरी मिलने में मुश्किलें आती हैं
1970-80 के दशक में महिलाओं के मुकाबले तीन गुना पुरुष कॉलेज की डिग्री हासिल किया करते थे. 2000 के दशक में यह फासला कम हो गया और 13.9% पुरुषों के मुकाबले 11.1% महिलाएं कॉलेज की डिग्री हासिल करने लगीं.
इस स्टडी में पाया गया कि आर्ट्स की डिग्री या उच्च माध्यमिक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं के अपने से कम शिक्षित पुरुष से शादी की संभावना पांच गुना ज्यादा होती है. और भारत में ज्यादातर महिलाएं आर्ट्स की पढ़ाई ही करती हैं. 2011-12 में आर्ट्स से स्नातक की डिग्री लेने वाले पुरुषों की तादाद सिर्फ 40% थी वहीं महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 70% था.
रिसर्च में यह भी बताया गया है कि 1970-80 के दशक में आर्ट्स की डिग्री वाली महिलाओं की कम शिक्षित पुरुष से शादी की संभावना 31% होती थी, वहीं 1990 के दशक में यह आंकड़ा बढ़कर 39% हो गया और 2000 के दशक में ऐसी महिलाओं की संख्या 47% तक हो गई.
नौकरी करने वाली महिलाओं की तादाद कम हुई है
पीएलएफएस (पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे) ने काम करने की उम्र वाली महिलाओं का एक सर्वेक्षण किया. उनके आंकड़ों के मुताबिक 1993-94 में 33% महिलाएं नौकरीपेशा थीं या नौकरी की तलाश कर रहीं थीं, 2017-18 तक यह संख्या गिरकर मात्रा 18.2% रह गई.
थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंडिया की रिसर्च डायरेक्टर और अर्थशास्त्री शमिका रवि कहती हैं, ‘भारत के लिए यह एक हैरान करने वाली बात है कि देश के विकास के साथ कामगारों में महिलाओं की तादाद घटती जा रही है. जबकि दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और दूसरे पितृसत्ता प्रधान देशों में आर्थिक विकास के साथ श्रमिक-शक्ति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है.’
सिर्फ भारत में मौजूद इस हालात की बड़ी वजह यह है कि यहां आज भी महिलाओं को घरों की चारदीवारी में बंद करके रखा जाता है. पीएलएफएस के आंकड़ों से इसकी पुष्टि होती है. इसके मुताबिक साल 2017-18 में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा शिक्षित महिलाएं बेरोजगार रहीं.
चाइल्डकेयर को लेकर देश में संस्थागत सहायता की कमी होने की वजह से महिलाओं के काम करने की संभावना और कम हो जाती है. शमिका रवि कहती हैं कि जो महिलाएं घर और बच्चों को संभालते हुए नौकरी करना चाहती हैं उनके पास कामकाज के विकल्प और कम हो जाते हैं. इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों को मिलने वाले वेतन में भी भेदभाव किया जाता है जिससे महिलाओं को उनकी शिक्षा का उतना फायदा नहीं मिल पाता. शमिका रवि के मुताबिक इन्हीं वजहों से शिक्षित महिलाओं को ऐसे साथी की तलाश होती है जिनकी आर्थिक हालत उनसे बेहतर हों.
इस रिसर्च में पाया गया कि ‘शादी के बाजार में महिलाओं का रूप-रंग उनका सबसे बड़ा गुण माना जाता है, जबकि पुरुषों के मामले में कमाई उनकी सबसे बड़ी खासियत होती है.’ शमिका रवि के मुताबिक यह कहना बहुत मुश्किल है कि समान शिक्षा वाले और अपनी पसंद के पुरुष से शादी का विकल्प महिलाओं के लिए बेहतर होता. उदाहरण के लिए, रवि बताती हैं कि जिस समाज में संस्थागत स्तर पर चाइल्डकेयर सपोर्ट की कमी हो, वहां अगर महिलाओं को उनके पसंद का साथी मिल भी जाए, तो संस्थागत मदद के अभाव में, उनकी जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं आएगा.
यह इंडियास्पेंड पर प्रकाशित लेख का संपादित संस्करण है. इंडियास्पेंड जनहित के लिए, डेटा आधारित पत्रकारिता करने वाली एक गैर लाभकारी संस्था है.
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