कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपित विकास दुबे शुक्रवार सुबह पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. उसे गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़ा गया था जहां से उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) उसे कानपुर ला रही थी. ख़बरों के मुताबिक एसटीएफ के काफिले की जिस गाड़ी में विकास दुबे बैठा हुआ था वह हादसे का शिकार होकर पलट गई. यह हादसा कानपुर शहर से कुछ ही किलोमीटर पहले हुआ. कानपुर के एसएसपी दिनेश कुमार ने जानकारी देते हुए कहा, ‘जैसे ही गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ, विकास दुबे घायल पुलिसकर्मी की पिस्तौल छीनकर भागने लगा. उसे कई बार सरेंडर करने के लिए कहा गया, लेकिन उसने फायरिंग शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई में विकास दुबे को सीने और कमर में गोली लगी.’
गैंगस्टर विकास दुबे और उसके साथियों ने बीती दो जुलाई की रात को कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की थी. इसके बाद से वह फरार था. उसकी लोकेशन उत्तर प्रदेश और हरियाणा में मिली. और इसके बाद मध्यप्रदेश के उज्जैन में उसकी गिरफ्तारी हुई. बीते सात दिनों के दौरान विकास दुबे के मामले में जो कुछ भी हुआ उससे कई सवाल खड़े होते हैं.
कानपुर से उज्जैन पहुंचने तक
पुलिस ने बीते बुधवार को हरियाणा के फरीदाबाद में विकास दुबे के दिखने के बाद वहां से उसके तीन साथियों को गिरफ्तार किया था. इनमें से एक प्रभात मिश्रा ने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया था कि दो जुलाई की रात आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के तुरंत बाद विकास और उसने कानपुर के शिवली कस्बे में एक रिश्तेदार के घर में पनाह ली थी. दोनों शिवली में दो दिन तक रुके रहे. शिवली विकास दुबे के गांव बिकरू से महज तीन किमी की दूरी पर ही स्थित है. ऐसे में पहला सवाल तो यही है कि जब वह इतने समय तक अपने घर के इतने नजदीक ही रहा तब भी उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की टीमें और 40 थानों की पुलिस उसका पता कैसे नहीं लगा सकीं? प्रभात के मुताबिक शिवली के बाद विकास एक ट्रक में सवार हो गया और 92 किलोमीटर की दूरी तय कर औरैया पहुंच गया. औरैया के बाद वह 385 किमी की दूरी तय करके हरियाणा के फरीदाबाद पहुंच गया. जहां एक होटल के सीसीटीवी कैमरे में उसकी तस्वीर देखी गयी.
इसके बाद हरियाणा पुलिस ने फरीदाबाद और पूरे राज्य की सीमाओं पर अलर्ट जारी कर दिया. आसपास के जिलों गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) और गाजियाबाद में भी चौकसी बढ़ा दी गयी जिससे वह एनसीआर से बाहर न जा पाए. लेकिन इसके बावजूद विकास दुबे फरीदाबाद से ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. ग्रेटर नोएडा में उसे ऑटो में बैठते और उतरते देखा गया. इसके बाद वह नोएडा होते हुए सड़क के रास्ते से कोरोना वायरस की वजह से मुस्तैद पुलिस को धता बताते हुए करीब 15 घंटे और 800 किमी का सफर तय कर मध्यप्रदेश के उज्जैन पहुंच गया. वह छह दिनों तक वह चार राज्यों में और कई दिनों तक उत्तर प्रदेश में ही घूमता रहा और इस दौरान उसने करीब 1300 किलोमीटर का सफर बाइक, ट्रक, कार और ऑटो से तय किया. लेकिन फिर भी उत्तर प्रदेश पुलिस की 100 टीमें और 75 जिलों की पुलिस उसे नहीं खोज पाई. गिरफ्तारी के दौरान की जो उसकी तस्वीरें मध्य प्रदेश पुलिस ने जारी की थीं, उनसे पता चलता है कि उसने अपना हुलिया भी नहीं बदला था. ऐसे में सवाल यह है कि उसे किसी नाके पर पहचाना क्यों नहीं जा सका?
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह भी एक समाचार चैनल से बातचीत में इस पूरे घटनाक्रम को हैरान करने वाला बताते हैं. वे कहते हैं, ‘सवाल यह है कि वह इतनी लम्बी दूरी तय करके और पुलिस के सारे चक्रव्यूह तोड़कर उज्जैन आखिर कैसे पहुंच गया, पूरी तैयारी फेल कैसे हो गयी. और सबसे बड़ा सवाल कि क्या कोई पुलिसकर्मी पर्दे के पीछे से उसे गाइड कर रहा था.’
महाकाल मंदिर में गिरफ्तारी
विकास दुबे को उज्जैन में महाकाल मंदिर के एक गार्ड ने पहचाना. गार्ड ने पुलिस को फोन कर उसे गिरफ्तार करवाया. इससे पहले विकास दुबे ने अपने नाम से मंदिर में वीआईपी दर्शन की पर्ची कटवाई और महाकाल मंदिर में दाखिल हुआ. गार्ड की सूचना के बाद पुलिस उसके बाहर निकलने का इंतजार करती है और गेट पर उसे गिरफ्तार कर लेती है. गिरफ्तारी भी लोकल थाने की पुलिस करती है. किसी एसटीएफ, कमांडो या एटीएस की जरूरत नहीं पड़ती. सवाल यह है कि जिस गैंगस्टर को तीन राज्यों की पुलिस नाकाबंदी के बाद भी नहीं पकड़ पायी उसे इतनी आसानी से कैसे गिरफ्तार कर लिया गया? कई जानकार कहते हैं कि पुलिस भले कहे कि उसने विकास दुबे को पकड़ा है लेकिन यह पूरी तरह योजना के साथ किया गया समर्पण था. डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, ‘वह एक बेहद शातिर दिमाग अपराधी था, अगर उसे केवल समर्पण करना होता तो यह यूपी में भी कर सकता था लेकिन उसे मालूम था कि यहां उसका एनकाउंटर कर दिया जाएगा... इसलिए उसने ऐसी सेफ जगह चुनी जहां उसे लगा कि शायद उसका एनकाउंटर नहीं हो सकता था.’
इंडिया टुडे में दो दशकों से आपराधिक मामलों को कवर कर रहे शम्स ताहिर खान कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश पुलिस मारना चाहती थी और विकास दुबे समर्पण करना चाहता था. गिरफ्तारी का तो सवाल ही नहीं उठता. क्योंकि साफ़ है कि कुछ देर पहले तक उज्जैन की पुलिस और प्रशासन को उसके वहां होने की कोई जानकारी नहीं थी. उसने सब कुछ अपने हिसाब से चुना और खुद मंदिर में अपना नाम बताया... पुलिस के पकड़ने के बाद भी उसने कहा कि वह विकास दुबे है कानपुर वाला... इससे वह बताना चाहता था कि देखो मैं जिंदा पकड़ा गया हूं.’
एनकाउंटर की कहानी पर उठते सवाल
विकास दुबे के एनकाउंटर की जो कहानी पुलिस बता रही है उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कई लोगों को एनकाउंटर फर्जी होने का शक हैं. अगर पूरे मामले को शुरू से देखें तो कल देर रात उज्जैन की पुलिस ने विकास दुबे को यूपी एसटीएफ के हाथों में सौंपा था. एसटीएफ के करीब 15 जवान तीन गाड़ियों में उसे कानपुर लेकर आ रहे थे. कई न्यूज़ चैनलों की टीमें उज्जैन से ही एसटीएफ के काफिले के पीछे-पीछे चल रही थीं. एनडीटीवी की टीम का कहना है कि कानपुर की सीमा में घुसने से कुछ देर पहले ही एसटीएफ वालों ने मीडिया को रोक दिया था. इसे लेकर एसटीएफ की टीम की एक लोकल पत्रकार से कहा-सुनी भी हो गयी थी. इंडिया टुडे की टीम के मुताबिक उनकी गाड़ी एसटीएफ के काफिले के ठीक पीछे थी. लेकिन, सुबह साढ़े छह बजे के करीब एसटीएफ की टीम ने जब कानपुर की सीमा में प्रवेश किया तो इंडिया टुडे समेत तमाम गाड़ियों को अचानक कानपुर पुलिस ने रोक दिया. इसके बाद सभी गाड़ियों की तलाशी ली जाने लगी. बाद में जब मीडिया वालों को आगे जाने के लिए रास्ता दिया गया तो कुछ दूरी पर एसटीएफ के काफिले की एक गाड़ी पलटी मिली और पता लगा कि विकास दुबे का एनकाउंटर हो गया है. तब घड़ी में सवा सात बजे थे.
#WATCH Media persons, who were following the convoy bringing back gangster Vikas Dubey, were stopped by police in Sachendi area of Kanpur before the encounter around 6.30 am in which the criminal was killed. (Earlier visuals) pic.twitter.com/K1B56NGV5p
— ANI UP (@ANINewsUP) July 10, 2020
पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर पर एक और बात भी सवाल उठाती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उज्जैन से यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को टाटा सफारी कार में लेकर चली थी. इसके बाद रास्ते में कई जगहों पर उसे सफारी में बैठे देखा गया था. यहां तक कि कानपुर से पहले झांसी टोल प्लाजा पर भी वह टाटा सफारी में ही बैठा था. लेकिन, पुलिस की जिस गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है, वह टाटा सफारी नहीं बल्कि महिंद्रा टीयूवी है. पुलिस का कहना है कि विकास टीयूवी में ही बैठा था और गाड़ी का एक्सीडेंट होने के बाद उसने पुलिसकर्मी की पिस्तौल निकालकर भागने की कोशिश की थी. यहां पर एक सवाल यह भी है कि अगर एक्सीडेंट के समय विकास टीयूवी में भी था तो उसे कानपुर से कुछ दूर पहले ही सफारी से टीयूवी में क्यों बिठाया गया.
कुछ प्रत्यक्षदर्शी एनकाउंटर को लेकर कुछ और ही बात बताते हैं. एनकाउंटर के दौरान पास ही से गुज़र रहे एक राहगीर आशीष पासवान ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा है, ‘हमने केवल गोलियों की आवाज़ें सुनी थीं... पुलिस ने हमें दूर भगा दिया. हम अपने घर लौटकर जा रहे थे.’ उनसे जब यह पूछा गया कि क्या गाड़ी का कोई एक्सीडेंट हुआ है तो पासवान का कहना था कि किसी गाड़ी का कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ था. जाहिर है कि आशीष पासवान का बयान पुलिस की उस कहानी के बिल्कुल उलट है, जिसमें उसने कहा है कि विकास दुबे को जिस गाड़ी से ले जाया जा रहा था, बारिश के कारण वह पलट गई थी.
बीते गुरूवार को विकास दुबे के पकड़े जाने के बाद कई जानकारों और पूर्व पुलिस अधिकारियों का कहना था कि विकास से पूछताछ की जाए तो बड़े-बड़े लोगों के नाम सामने आएंगे क्योंकि बीते छह दिनों का पूरा खेल और उसके बाद उसका उज्जैन में पकड़ा जाना समझ से परे है. लेकिन विकास दुबे की मौत के बाद अब जाहिर है कि इन सारे सवालों के जवाब जमींदोज हो गए हैं.
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