1-कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन जल्द से जल्द बने, यह पूरी दुनिया चाहती है. अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और भारत जैसे तमाम बड़े देशों में इसके प्रयास चल रहे हैं. हर वैक्सीन के बनने के पहले उसका इंसानों पर परीक्षण यानी ह्यूमन ट्रायल जरूरी होता है. इस ट्रायल के लिए लोग खोजे नहीं मिलते. लेकिन जयपुर में जन्मे और फिलहाल लंदन में रह रहे दीपक पालीवाल, उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्होंने खुद ही वैक्सीन के खुद पर परीक्षण के लिए अनुमति दी है. बीबीसी हिंदी पर सरोज सिंह की रिपोर्ट.

कोरोना वैक्सीन के लिए ज़िंदगी दांव पर लगाने वाले भारतीय दीपक पालीवाल

2-भाजपा नेता के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में मजबूत होकर उभरे हैं. यह और बात है कि कई लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि कांग्रेस या दूसरे दलों से भाजपा में आए दूसरे नेताओं की तरह वे भी नई पार्टी में हाशिये पर डाल दिए जाएंगे. ज्योतिरादित्य मुख्यमंत्री की गद्दी पर भले न हों, लेकिन राज्य की राजनीति में वे पहले के मुकाबले (जब वे कांग्रेस में थे) अब अपना दबदबा ज्यादा जता रहे हैं. द प्रिंट हिंदी पर जैनब सिकंदर की रिपोर्ट.

सिंधिया को सिर्फ सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा में नहीं लाया गया, शिवराज सिंह पर लगाम लगाना बड़ा कारण था

3- कोरोना संकट ने रोजगार से लेकर खेती तक भारतीय समाज के तमाम क्षेत्रों पर असर डाला है. इस महामारी के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते लाखों लोग बड़े शहरों से अपने गांव लौटे हैं. इनमें से एक बड़ी संख्या खेती की तरफ मुड़ने की बात कह रही है. इसकी तस्दीक खरीफ का मौजूदा रकबा भी करता है. डाउन टू अर्थ हिंदी पर रिचर्ड महापात्र की टिप्पणी.

क्या भारत फिर कृषि प्रधान बनेगा?

4-अरुणाचल प्रदेश सहित भारत के कई हिस्सों पर चीन अपना दावा करता रहता है. लेकिन 1950 से पहले इस तरह की कोशिशें नहीं हुई थी. तो फिर इतिहास में ऐसा क्या बदला कि चीन का रुख भी बदल गया? डॉयचे वेले हिंदी पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट.

चीन की नीयत की वजह से विवादों में रहा है पूर्वोत्तर भारत का सीमावर्ती इलाका

5-बचपन से ही सुनते आए हैं कि गुरु-शिष्य परंपरा के समाप्त हो जाने से ही शिक्षा व्यवस्था में सारी गड़बड़ी पैदा हुई है. लेकिन इस परंपरा की याद किसके लिए मधुर है और किसके लिए नहीं, इस सवाल पर विचार तो करना ही होगा. द वायर हिंदी पर अपूर्वानंद की टिप्पणी.

आज के परिवेश में गुरु की भूमिका क्या है