कहने को तो कुरान के अनुसार “मुसलमानों के अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले ग़ैर-मुस्लिमों के पूजास्थलों का संरक्षण मुसलमानों का कर्त्तव्य है,” पर व्यवहार में पैगंबर मोहम्मद के समय से ही यह कर्त्तव्य एक कहावत बन कर रह गया है. तुर्की के सबसे बड़े शहर इस्तांबूल के यूरोपीय भूभाग पर स्थित संसार की एक सबसे अद्भुद, सुविख्यात और विशाल इमारत हाजिया सोफ़िया इसका नवीनतम उदाहरण है.
यह इमारत ईस्वी सन 532 से 537 के बीच उस समय के ग्रीक बाइज़नटाइन साम्राज्य की एक गुंबददार बसिलिका (ईसाई चर्च) के रूप में बनी थी. अपने समय में वह दुनिया में सबसे बड़ा ईसाई चर्च थी. पिछले 84 वर्षों से पुरातात्विक संग्रहलाय और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन) की ओर से मान्यता-प्राप्त एक विश्व सांस्कृतिक धरोहर भी थी. देश-दुनिया के लाखों पर्यटक इसे देखने आया करते थे. किंतु तुर्की के इस्लामवादी राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन और उनके समर्थकों को यह सब सुहा नहीं रहा था.
ईसाइयत पर इस्लाम की विजय का स्मारक
राष्ट्रपति और उनके समर्थक लंबे समय से चाहते थे कि हाजिया सोफ़िया को पुनः मस्जिद बना दिया जाना चाहिये. उनके लिए वह ईसाइयत पर इस्लाम की विजय का स्मारक है. 1453 में यूनान के तत्कालीन कोंस्तान्तिनोपल शहर पर, जिसे अब इस्तांबूल कहा जाता है, तुर्की के उस्मानी राजवंश के सुल्तान मेहमेत द्वितीय की विजय के बाद हाजिया सोफ़िया को एक मस्जिद में बदल दिया गया था. 27 मई 1453 के दिन सुल्तान ने अपने सैनिकों से कहा कि वे तीन दिनों तक हाजिया सोफ़िया में जी भर कर लूट-मार कर सकते हैं.
शहर के जिन ईसाई निवासियों ने उसके परिसर में शरण ले रखी थी, उन्हें मार डाला गया, ग़ुलाम बना लिया गया या बलात्कार का शिकार बनाया गया. तीसरे ही दिन, यानी 29 मई 1453 की शाम, सुल्तान मेहमेत द्वितीय ने अपने लोगों के साथ वहां पहली बार नमाज़ पढ़ी. बाद के कई दशकों में ईसायत के बचे-खुचे प्रतीकों और निशानों को भी मिटा दिया गया. एक-के-बाद-एक चार मीनारें बनीं. इमारत को भीतर और बाहर इस्लामी प्रतीकों से सजाया गया. हाजिया सोफ़िया को ही उस्मानी साम्राज्य की मुख्य मस्जिद घोषित कर दिया गया.
प्रथम विश्वयुद्ध ने तुर्की का नक्शा बदला
तु्र्की का उस्मानी साम्राज्य, समय के साथ, विश्व के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक बन गया. उसके विस्तार के साथ सबसे पहले यूनानी (ग्रीक) सामाज्य को सिकुड़ना पड़ा. 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्वयुद्ध में उस्मानी सामज्य की यदि हार नहीं होती और उसके विघटन से अनेक नये देश नहीं बनते, तो हाजिया सोफ़िया को - ग्रीक भाषा के अनुसार जिसका सही उच्चारण है ‘अइया सोफ़िया’ ( ईश्वरीय प्रज्ञा) - फिर से मस्जिद नहीं बनाना पड़ता. विश्वयुद्ध में हार के बाद तु्र्की में न तो राजशाही रही और न ही उस समय की इस्लामी ख़लीफ़त.
तुर्की के नये शासक मुस्तफ़ा केमाल अतातुर्क ने, जो एक सैनिक अफ़सर थे, देश में इस्लामी शासन और ख़लीफ़त का अंत कर दिया. उन्होंने एक ऐसा संविधान लागू किया, जो राज्य और धर्म को एक-दूसरे से अलग करता था. धर्म का राज्यसत्ता में कोई दखल नहीं रहा. अतातुर्क ने ही हाजिया सोफ़िया को 1934 में एक संग्रहालय बना दिया था. तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने सोचा कि समय आ गया है कि अतातुर्क के फैसले को पलट दिया जाये. अतातुर्क के दिये संविधान को पलट कर वे इस बीच अपनी पसंद का एक नया संविधान लिखवा ही चुके हैं. अतः अब होगा वही, जो वे चाहते हैं.
न्यायालय ने हरी झंडी दिखायी
हाजिया सोफ़िया को पुनः मस्जिद में बदलने की सुनवाई तुर्की में प्रशासनिक मामलों के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची. तुर्की में 2016 की 15 और 16 जुलाई के बीच वाली रात को राष्ट्रपति एर्दोआन का तख्ता पलटने का कथित असफल सैनिक प्रयास हुआ था. उसे बहुत निर्ममतापूर्वक कुचल दिया गया था. इसके बाद सेना के बड़े-बड़े अफ़सरों से लेकर उच्चतम न्यायालयों के बड़े-बड़े जजों तक पर जो कहर बरपा था, उसे याद करते हुए भला कौन ऐसा हो सकता था जो राष्ट्रपति महोदय की पसंद के विरुद्ध फ़ैसला सुनाने का दुस्साहस करता! यही नहीं, फ़ैसला तख्ता पलट के असफल प्रयास की चौथी वर्षगांठ के ठीक पहले आना चाहिये था, ताकि देश के इस्लामवादियों को एक और विजय मनाने का बहाना मिलता. यही हुआ.
फ़ैसला 10 जुलाई की शाम आया. न्यायालय ने हाजिया सोफ़िया का एक संग्रहालय होने का अब तक का दर्जा रद्द कर दिया. कहा कि उसका अब नमाज़ इत्यादि के लिए उपयोग हो सकता है. राष्ट्रपति महोदय ने एक ही दिन बाद आदेश दे दिया कि 15 जुलाई से वहां सभी धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो जायेंगे. अपने आदेशपत्र में यह भी लिखा कि हाजिया सोफ़िया की देख-रेख अब देश के धार्मिक विभाग के अधीन होगी. यही विभाग विदेशों में रहने वाले तुर्कों की मस्जिदों का भी संचालन करता है.
नौ दशक बाद पुनः मस्जिद
नौ दशक बाद हाजिया सोफ़िया को पुनः एक मस्जिद बना देने के इस निर्णय की सारे ईसाई पश्चिमी जगत में, और मुख्य रूप से ग्रीस (यूनान) और रूस में आलोचना हो रही है. रूस और ग्रीस के ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के लिए हाजिया सोफ़िया का लगभग वही महत्व है, जो मक्का में काबा का है. ग्रीस सरकार के प्रवक्ता ने इस फ़ैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे. यह निर्णय ईसाई जगत का अपमान है. इसका समुचित उत्तर देना पड़ेगा. प्रवक्ता ने यह भी कहा कि ‘’ग्रीस एर्दोआन के इस आचरण की निंदा करता है और उसका समुचित उत्तर देने के लिए जो कुछ कर सकता है, करेगा.’’ ग्रीस के प्रधानमंत्री कीरियाकोस मित्सोताकिस ने कहा कि एर्दोआन ने जो कुछ किया है, उसका तुर्की और यूरोपीय संघ के बीच संबंधों पर असर पड़े बिना नहीं रहेगा. मीडिया की टिप्पणियों में चिंता जतायी गयी कि एर्दोआन का तुर्की धर्म और राज्य के बीच दूरी बनाये रखने के सिद्धांत से हटते हुए अब पूरी तरह इस्लामीकरण की राह पर है.
रूस की ओर से उसके उप विदेशमंत्री अलेक्सादर ग्रुश्को ने तुर्की के इस निर्णय को दुखद बताते हुए वहां की इंटरफ़ैक्स समाचार एजेंसी से कहा कि आज की दुनिया में ऐसे प्रतीक बहुत कम ही मिलते हैं, जिनके पीछे हाजिया सोफ़िया जैसा लंबा इतिहास हो और जिन्होंने मानवजाति के विकास को भी प्रभावित किया हो. उनका कहना था कि अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और अंतरधार्मिक महत्व के कारण ही हाजिया सोफ़िया को 1985 से यूनेस्को की ओर से विश्व सास्कृतिक धरोहर होने का सम्मान मिला हुआ है. ग्रुश्को ने तुर्की से अपील की कि वह हाजिया सोफ़िया की इमारत को सुरक्षा प्रदान करे और उसे सबके लिए खुला रखे.
यूनेस्को को कुछ नहीं बताया
यूनेस्को की महासचिव ऑड्री अज़ुलेय ने बताया कि उन्होंने शुक्रवार 10 जुलाई को ही तुर्की के राजदूत से कहा कि यह परिवर्तन यूनेस्को से बातचीत किये बिना किया गया है, जिसके कारण वे ‘’बहुत दुखी’’ हैं. नियम यह है कि यूनेस्को किसी चीज़ को विश्व सांस्कृतिक धरोहर तभी घोषित करता है, जब उसे विश्वास दिलाया जाता है कि उसकी सहमति के बिना उसमें कोई बदलाव नहीं किया जायेगा.
कैथलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरू पोप फ्रांसिस ने रोम में इस समाचार को ‘’बहुत ही कष्टदायक’’ बताया. मॉस्को में रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के सर्वोच्च धर्माधिकारी इलारिओन ने रूसी टेलीविज़न पर कहा, ‘’विश्व के सभी ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के लिए हाजिया सोफ़िया का वही महत्व है, जो कैथलिकों के लिए रोम के सेंट पीटर्स चर्च का है.’’ उसे मस्जिद बना देने से ईसाई जगत के साथ तुर्की के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अमेरिका ने भी तुर्की के इस निर्णय पर दुख प्रकट किया. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से उसकी प्रवक्ता मॉर्गन ओर्तागुस ने कहा, ‘’हम तुर्की की सरकार के इस निर्णय से निराश हैं... अमेरिका तुर्की से अपेक्षा करता है कि यह विश्व सांस्कृतिक धरोहर भविष्य में भी सभी दर्शकों के लिए खुली रहेगी.’’
दुनिया तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन से चाहे जो अपेक्षा करें, लेकिन वे अपने आप को तुर्की के भावी सुल्तान और अतीत के सुल्तानों की तरह इस्लामी जगत के भावी खलीफ़ा रूप में तभी से देखने लगे हैं, जब से तुर्की के राष्ट्रपति बन गये हैं.
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