1-बीते हफ्ते मीडिया की सुर्खियों का एक बड़ा हिस्सा राजस्थान के सियासी घटनाक्रम के नाम रहा. राज्य कांग्रेस के मुखिया सचिन पायलट की बगावत के बाद एकबारगी ऐसा लगने लगा था कि राजस्थान में मध्य प्रदेश की कहानी दोहराई जा सकती है जहां कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते सत्ता गंवानी पड़ी थी. लेकिन राजस्थान में फिलहाल अशोक गहलोत सुरक्षित दिखाई दे रहे हैं. बीबीसी पर नारायण बारेठ की रिपोर्ट.

राजस्थान: गहलोत ने ऐसा क्या किया कि कमलनाथ की तरह नहीं गिरी उनकी सरकार

2-हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रोहिणी आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया. इस आयोग को यह सुझाव देने का जिम्मा दिया गया है कि केंद्र सरकार ओबीसी को मिले 27 प्रतिशत कोटे को किस तरह अलग-अलग उपश्रेणियों के बीच बांटे और यह भी कि क्या ऐसा करना जरूरी है. द प्रिंट हिंदी पर इस लेख में योगेंद्र यादव मानते हैं कि यह वक्त ओबीसी को कई उप-श्रेणियों से बनी एक महाश्रेणी समझने के विचार को जल्द और जायज तरीके से अमलीजामा पहनाने के लिए जोर लगाने का है.

मंडल से लेकर मोदी तक, ओबीसी की कई उप-श्रेणियां बनाने का विचार खराब राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा

3-कोविड-19 ने कइयों को सामान बटोरने और पैसे खर्च करने की संस्कृति के बारे में सोचने का एक मौका दिया. जब कहीं जाना ही नहीं तो ये लाखों की गाड़ियां किस काम की? नए कपड़े किस काम के? बटुए में संजो कर रखे क्रेडिट कार्ड किस काम के? डॉयचे वेले हिंदी पर चारू कार्तिकेय की टिप्पणी.

तालाबंदी के पहले दौर का सबक

4-आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपित विकास दुबे को हाल में पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराया. इस मामले ने एक बार फिर पुलिस विभाग में मुठभेड़ की संस्कृति पर बहस छेड़ दी है. विकास दुबे उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 से अब तक पुलिस के हाथों मारा जाने वाला 119 वां अपराधी है. द वायर हिंदी पर अपनी इस टिप्पणी में पूर्व आईपीएस निर्मल चंद्र अस्थाना का सवाल है कि क्या ‘कानून का राज’ सस्ती लोकप्रियता के कफन में लपेटकर सदा के लिए दफन कर दिया गया है.

पुलिस एनकाउंटर: ‘त्वरित न्याय’ के नाम पर अराजकता को स्वीकार्यता नहीं मिलनी चाहिए

5-मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के गांवों में इन दिनों हर किसी की जुबान पर ‘सफाया’ शब्द है. यह शब्द एक दवाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसका नाम पैराक्वाट डायक्लोराड-24 एसएल नॉन सिलेक्टिव है. यह एक खतरनाक रासायनिक मिश्रण है. जिले में मूंग की फसल को जल्दी काटने के लिए इन दिनों इस रसायन का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है. डाउन टू अर्थ पर राकेश कुमार मालवीय की रिपोर्ट.

फसल सुखाने के लिए जहरीला छिड़काव कर रहे हैं किसान