महाराष्ट्र बनाम बिहार तनाव का नया अध्याय बन चुकी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत अब इन दोनों राज्यों की राजनीति का केंद्र भी बनती जा रही है. ग़ौरतलब है कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का शव 14 जून को बांद्रा स्थित उनके फ्लैट में पंखे से लटका पाया गया था. जबकि इससे एक हफ़्ते पहले ही उनकी मैनेजर दिशा सालियान की भी मौत मलाड में एक बहुमंजिला इमारत से गिरकर हो गई थी. शुरुआती जांच में सामने आया कि इन दोनों ने ही ख़ुदकुशी की थी. तब सात दिन के अंतराल में हुई इन दोनों मौतों को महज एक संयोग ही माना गया. लेकिन अब इस बारे में अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं.
मुंबई पुलिस दावा करती रही है कि दिशा सालियान की ही तरह सुशांत सिंह राजपूत ने भी ये कदम तनाव के चलते उठाया था. लेकिन हाल ही में सुशांत के परिवार ने उनकी आत्महत्या के लिए रिया चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहराया. रिया सुशांत की गर्लफ़्रेंड थीं और उनकी मौत से कुछ दिन पहले तक उन्हीं के साथ ही रहा करती थीं. ग़ौरतलब है कि रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह की मौत के एक महीने बाद ट्वीट कर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने सीबीआई जांच की मांग रखते हुए लिखा था कि, ‘सर, मैं सुशांत सिंह राजपूत की गर्लफ़्रेंड हूं. मुझे सरकार में पूरा भरोसा है. मैं चाहती हूं कि इस मामले में इंसाफ़ सुनिश्चित हो, इसलिए इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए. मैं बस ये जानना चाहती हूं कि सुशांत ने किस दबाव में इतना बड़ा क़दम उठाया.’
लेकिन सुशांत सिंह के पिता कृष्ण कुमार सिंह द्वारा पटना में रिया चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज़ करवाते ही वे मुंबई में अपना घर छोड़कर कहीं गायब हो गईं और उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई कि इस पूरे केस की जांच पटना पुलिस की बजाय मुंबई पुलिस के जिम्मे ही छोड़ दी जाए. लेकिन उन्हें इस संबंध में कोई राहत नहीं मिली. इसी दौरान सुशांत सिंह के बैंक खातों से 15 करोड़ रुपए के संदिग्ध लेन-देन के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी रिया को नोटिस दिया था. लेकिन उन्होंने इसका भी जवाब नहीं दिया और मामले के सुप्रीम कोर्ट में होने की दलील देकर ईडी से इस पूछताछ को टालने की अपील की. लेकिन उनकी ये अपील भी नामंजूर कर दी गई. बीते सप्ताह रिया अपने घर लौट आई और अब ईडी उनसे लगातार पूछताछ कर रही है. हालांकि अभी तक उसे कोई अहम जानकारी हासिल नहीं हो पाई है.
वहीं, बीते गुरुवार को बिहार सरकार की अपील पर केंद्र सरकार ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी थी जिसने रिया चक्रवर्ती और उनके पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती और मां संध्या चक्रवर्ती समेत शोविक चक्रवर्ती (रिया के भाई), सैमुअल मिरांडा (कथित तौर पर रिया द्वारा नियुक्त किए गए सुशांत के हाउस मैनेजर) और श्रुति मोदी (रिया की पूर्व मैनेजर व सुशांत की मैनेजर) के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 341 (किसी व्यक्ति को ग़लत तरीके से रोकने की कोशिश), 342 (किसी को क़ैद करना), 380 (किसी के घर या लॉकर से चोरी करना), 406 (विश्वास का आपराधिक हनन), 420 (धोखाधड़ी), 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना), 506 (डराना-धमकाना) और 120-बी (आपराधिक साज़िश) समेत के तहत मामला दर्ज किया है.
यह अजीब स्थिति थी कि कुछ ही दिन पहले तक जो रिया चक्रवर्ती खुलकर सुशांत सिंह की मौत की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग कर रही थीं, अब वे ख़ुद पर हुई सीबीआई की कार्रवाई को पूरी तरह से अवैध बताने लगीं. उन्होंने दलील दी कि जब तक सर्वोच्च न्यायालय इस मुद्दे पर अपना फैसला नहीं देता तब तक सीबीआई को जांच अपने हाथ में नहीं लेनी चाहिए, ऐसा करना कानूनी सिद्धांतों से परे और राष्ट्र के संघीय ढांचे को प्रभावित करने वाला होगा.
CBI registers FIR against Rhea Chakraborty, Indrajit Chakraborty, Sandhya Chakraborty, Showik Chakraborty, Samuel Miranda, Shruti Modi, and others in connection with #SushantSinghRajput's death case. pic.twitter.com/KEy7iCegcv
— ANI (@ANI) August 6, 2020
सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद पर भी बड़ी बहस छेड़ दी थी. आरोप लगने लगे कि कई निर्देशकों ने सुशांत सिंह से करार करने के बाद भी उन्हें अपनी फिल्मों में सिर्फ़ इसलिए काम नहीं करने दिया क्योंकि इंडस्ट्री के दूसरे कई अभिनेता या अभिनेत्रियों की तरह उनके परिवार का बॉलिवुड से कोई रिश्ता नहीं रहा था. इस बहस में अभिनेत्री कंगना रनोट ने सुशांत सिंह का पक्ष लेते हुए करण जौहर और महेश भट्ट समेत फिल्मी दुनिया के कई नामचीन चेहरों को जमकर आड़े हाथ लिया था तो अनुराग कश्यप और करीना कपूर जैसे इंडस्ट्री के कई अन्य दिग्गजों ने कंगना के आरोपों को नकारने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
लेकिन अब इस मामले की आंच सियासी गलियारों तक भी पहुंच चुकी है. हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने यह बयान देकर सनसनी फैला दी कि सुशांत और दिशा ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उन दोनों की हत्या की गई है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद राणे ने अपने बयान में यह भी दावा किया कि 8 जून की रात को दिशा सालियान एक पार्टी में मौजूद थीं. वहां उनके साथ पहले बलात्कार हुआ और बाद में उनकी हत्या कर दी गई जिसका सबूत पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौजूद है. राणे के मुताबिक ‘इस पार्टी में महाराष्ट्र सरकार का एक युवा मंत्री भी उपस्थित रहा था. इसके बाद 14 जून को सुशांत की हत्या कर दी गई. इन दोनों घटनाओं का संबंध हैं.’
लेकिन राणे ने जो कुछ कहा वह नया नहीं था. असल में बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक ऐसी ही पोस्ट जमकर वायरल हो रही है जिसका लब्बोलुआब नारायण राणे के दावे से हूबहू मेल खाता है. इस पोस्ट में सुशांत सिंह राजपूत और दिशा सालियान की मौत से महाराष्ट्र के पर्यावरण एवं पर्यटन मंत्री और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम जोड़ा जा रहा है. हालांकि अब तक इस पोस्ट को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था. लेकिन राणे जैसे तजुर्बेदार नेता के बयान के बाद विशेषज्ञों का ध्यान इस तरफ़ गया है. हाल ही में इस पूरे मामले को लेकर मीडिया में खासे सक्रिय रहे बिहार पुलिस के महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडे ने भी राणे की ही तरह दिशा सालियान और सुशांत सिंह की मौत के बीच कोई न कोई जुड़ाव होने का दावा कर इस पूरी गहमागहमी को और बढ़ा दिया.
इन आरोपों की गंभीरता इससे समझी जा सकती है कि ख़ुद आदित्य ठाकरे को सामने आकर इनका खंडन करना पड़ा. उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को घटिया राजनीति बताया.
हे तर गलिच्छ राजकारण pic.twitter.com/SvvBtU6qHC
— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) August 4, 2020
लेकिन कटघरे में हर पक्ष है!
इस फेहरिस्त में महाराष्ट्र पुलिस, प्रशासन और सरकार पहले पायदान पर नज़र आती है. बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मुंबई पुलिस पर खुलकर आरोप लगाते रहे हैं कि उसने मामले की जांच में पटना पुलिस का बिल्कुल भी सहयोग नहीं किया. बकौल पांडे ‘मैंने इस बारे में कई बार मुंबई के कमिश्नर और महाराष्ट्र के डीजीपी से संपर्क स्थापित करने की कोशिश की. लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला. यही नहीं, मुंबई पुलिस ने हमारे पुलिसकर्मियों के साथ सुशांत की कथित आत्महत्या वाले कमरे की वीडियोग्राफी, ज़रूरी सीसीटीवी फुटेज, जब्त सामान, मोबाइल और लैपटॉप का डेटा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, फॉरेंसिक रिपोर्ट, फिंगर प्रिंट और केस डायरी की कॉपी में से कुछ भी साझा नहीं किया.’
इस पर विश्लेषकों का मानना है कि मामले की गंभीरता देखते हुए अव्वल तो मुंबई पुलिस को पटना पुलिस के साथ सामान्य औपचारिकताएं निभाते हुए उसका सहयोग करना चाहिए था. यदि किसी कारण से वह ऐसा नहीं भी करना चाहती थी तो उसके लिए भी कई उचित विकल्प तलाशे जा सकते थे. जैसे अदालत की मदद लेना. लेकिन उसने पटना पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के साथ जो व्यवहार किया है वह किसी न किसी स्तर पर कुछ तो संदिग्ध होने का इशारा करता है!
सुशांत सिंह के पिता कृष्ण कुमार सिंह ने भी आरोप लगाया है कि उन्होंने फ़रवरी में ही मुंबई पुलिस के संज्ञान में इस बात की आशंका जता दी थी कि उनके बेटे की जान को ख़तरा है. लेकिन पुलिस ने उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया. इसके जवाब में मुंबई पुलिस ने प्रेस रिलीज़ जारी कर दलील दी कि यह शिकायत एक पुलिस अधिकारी तक व्हाट्सएप के ज़रिए पहुंचाई गई थी और चूंकि यह लिखित में नहीं थी इसलिए इस पर कार्रवाई नहीं की जा सकी.
वहीं बीते शुक्रवार को टीवी चैनल टाइम्स नाउ से हुई बातचीत में मुंबई फोरेंसिक टीम के एक सदस्य ने कथित तौर बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि सुशांत सिंह की आत्महत्या के दो दिन बाद तक पुलिस ने फोरंसिक टीम को मौके के मुआयने के लिए नहीं बुलाया था. इस सदस्य के मुताबिक सुशांत सिंह की डायरी के कुछ पन्ने भी फटे हुए थे जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई कि उन्हें किसने फाड़ा था. न ही टीम को कमरे में खून के धब्बे मिले और न ही पंखा ज्यादा झुका हुआ नज़र आया. यहां तक कि पुलिस ने फोरंसिक टीम से इस बारे में कोई सवाल भी नहीं पूछे जिनके जवाब शायद इस केस को सुलझाने में मदद कर सकते थे.
#Exclusive | Sushant's forensic team admits lapses:
— TIMES NOW (@TimesNow) August 7, 2020
Admission 1: Pages of Sushant's diary torn.
Admission 2: No questions asked by police to forensic team.
Admission 3: Forensic team went to the crime site 2 days later.
Priyank and Siddhant with details. | #RheaArrestNext pic.twitter.com/3iaHMENmBB
बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे इस बारे में दावा करते हैं कि बेहद हाईप्रोफाइल मामला होने के बावजूद सुशांत सिंह के फ्लैट को कुछ दिन बाद ही खोल दिया गया था जबकि आम तौर पर ऐसे मामलों में लंबे समय तक घटनास्थल को सील रखा जाता है ताकि सबूतों के साथ कोई छेड़छाड़ न की जा सके. इस पूरे मामले में मुंबई पुलिस पर संदेह तब और ज़्यादा गहरा गया जब उसके पास से दिशा सालियान की जांच से जुड़े फोल्डर के डिलीट होने की ख़बरें सामने आई.
इस मामले में मुंबई का प्रशासन तो वहां की पुलिस से भी एक क़दम आगे रहा है. बीते दिनों सुशांत की मौत की जांच करने पटना से मुंबई पहुंचे एसपी विनय तिवारी को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने जिस तरह से जबरन 14 दिन के लिए क्वारंटीन किया, उसने इस पूरे मामले में उबाल ला दिया था. बताया जा रहा है कि क्वारंटीन किए जाने से पहले तिवारी ने दिशा सालियान की मौत से जुड़ी जानकारी जुटाने की कोशिश की थी. जानकारों के मुताबिक मुंबई में हर दिन हजारों की संख्या में लोग बाहर से आ रहे हैं और उनमें से शायद ही किसी को इस तरह क्वारंटीन किया जा रहा है. लेकिन एक संवेदनशील मामले की जांच करने पहुंचे एक आईपीएस अधिकारी को किसी बहाने से क़ैद कर लेना अपने आप में बहुत कुछ कह देता है.
हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बीएमसी ने विनय तिवारी को क्वारंटीन से मुक्त तो कर दिया, लेकिन तुरंत ही उन्हें पटना के लिए रवाना भी कर दिया गया. और अब मुंबई की मेयर किशोरी पेडणेकर ने निर्देश दिए हैं कि कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा हुए ख़तरे को देखते हुए इस केस की जांच करने वाले सीबीआई अधिकारियों को मुंबई आने से पहले स्थानीय पुलिस की अनुमति लेनी होगी. अन्यथा उन्हें भी अनिवार्य रूप से आइसोलेट कर दिया जाएगा.
कुछ ऐसी ही स्थिति इस पूरे घटनाक्रम में महाराष्ट्र सरकार की भी रही है. वह जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को सीबीआई को सौंपने से सिरे से ख़ारिज करती रही है, वह भी कइयों के कान खड़े करता है. विश्लेषकों के मुताबिक सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में महाराष्ट्र सरकार को आगे बढ़कर संवाद स्थापित करना चाहिए था. लेकिन उसने ऐसा करने की बजाय अड़ियल रुख दिखाया और सवालों के घेरे में आ गई. यहां सवाल उठाया जा सकता है कि यदि सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या ही की थी तो उसकी किसी भी तरह की जांच से भला किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए?
Mumbai police are investigating the case. It will not be transferred to Central Bureau of Investigation (CBI): Anil Deshmukh, Maharashtra Home Minister on #SushantSinghRajput's death case pic.twitter.com/RCPDDMvF2t
— ANI (@ANI) July 29, 2020
अब बात बिहार की पुलिस और सरकार की. महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस बार-बार एक ही बात उठाती रही है कि चूंकि बिहार पुलिस के पास इस मामले में जांच करने का अधिकार ही नहीं था. इसलिए उसे ऐसा करने से रोका गया. इस बारे में जब हमने कानूनविदों से चर्चा की तो हमें अलग-अलग जानकारी मिली. पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तुहिन शंकर इस बारे में सत्याग्रह से कहते हैं कि किसी भी अपराध की प्रारंभिक सूचना पुलिस को देने के लिए एफआईआर तो कहीं भी दर्ज़ करवाई जा सकती है. इसे ज़ीरो एफ़आईआर कहते हैं. और भारतीय दंड संहिता की धारा 156 (2) ज़रूरत पड़ने पर उस थाने की पुलिस को जांच का अधिकार देती है जहां ज़ीरो एफआईआर दर्ज हुई है. इसी वजह से बिहार पुलिस की जांच पर कहीं प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है.
जबकि राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी इस बारे में हमें बताते हैं ‘सीआरपीसी की धारा 177 से 184 व इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में लिए गए फ़ैसलों के अनुसार सुशांत सिंह मामले में पटना में ज़ीरो एफआईआर होना तो सही दिखता है, पर मेरी समझ में पटना पुलिस को ये एफआईआर दर्ज कर मुंबई पुलिस के पास भेजनी चाहिए थी क्योंकि घटना वहीं घटी थी. ये सही है कि इस जांच को आपसी समन्वय से पूरा किया जा सकता था. लेकिन स्वतंत्र रूप से पटना पुलिस द्वारा इस मामले की जांच करना मुंबई पुलिस के विधिक अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नज़र आता है. अब जब ये जांच सीबीआई के पास पहुंच चुकी है तो वह मुंबई और पटना दोनों पुलिस की तरफ़ से की गई जांच को अपने अनुसंधान में शामिल कर सकती है.’
यहां एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि इस मामले की जांच सीबीआई को दिया जाना भी कितना उचित है? क्योंकि महाराष्ट्र सरकार इसकी ज़रूरत को सिरे से नकारती रही है. जबकि बिहार सरकार ने केंद्र के सामने पुरजोर तरीके इस जांच की मांग की थी. कानूनी मसलों से जुड़ी वेबसाइट लाइव-लॉ के मुताबिक सीबीआई एक मामले में तभी जांच कर सकती है जब संबंधित राज्य सरकार (जहां अपराध की जांच होनी है) इसके लिए केंद्र सरकार से अनुरोध करे और केंद्र इसकी इजाजत दे दे. इसके लिए संबंधित राज्य सरकार ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ (डीएसपीई) की धारा-6 और केंद्र सरकार डीएसपीई अधिनियम की धारा-5 के तहत सहमति की अधिसूचना जारी करती है. हालांकि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय सीबीआई को किसी राज्य की सहमति के बिना भी देश में कहीं भी जांच करने का आदेश दे सकते हैं. अब इस लिहाज से देखा जाए तो बिना महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध के इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का केंद्र सरकार का फ़ैसला फिर से विवादों के घेरे में घिर जाता है.
फिर इस पूरे मामले को लेकर बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे जिस तरह से मीडिया में सक्रिय रहे हैं, वैसा करना किसी राजनेता के लिए तो ठीक है लेकिन पुलिस के एक उच्च अधिकारी के लिहाज से सामान्य व्यवहार नहीं लगता है. उनके बारे में पड़ताल करने पर कुछ चौंकाने वाली जानकारी हमारे सामने आई. दरअसल पांडे का नाम बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में नवरुणा चक्रवर्ती (13 वर्ष) नाम की एक बच्ची के अपहरण और उसकी हत्या के मामले में उछाला जाता रहा है. नवरुणा को 18 सितंबर 2012 की रात को उसी के घर से अपहृत कर लिया गया था और 68 दिनों के बाद उसकी हड्डियां घर के ही पास के नाले से बरामद हुई थीं. इस मामले की शुरुआती जांच मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने ही की थी. लेकिन बाद में भारी दवाब के चलते नीतीश कुमार सरकार को यह मामला फरवरी-2014 में सीबीआई को सौंपना पड़ा था.
यह दौर वह था जब मुज़फ़्फ़रपुर में भू-माफिया अपने चरम पर थे और उनका सबसे आसान निशाना वे बंगाली परिवार थे जिनके पास इलाके में अच्छी क़ीमतों की ज़मीनें हुआ करती थीं. नवरुणा का परिवार भी इन्हीं परिवारों में से एक था. गुप्तेश्वर पांडे तब मुज़फ़्फ़रपुर के आईजीपी थे. अतुल्य चक्रवर्ती शुरु से ही आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी बेटी के अपहरण और हत्या के मामले में एक बहुत बड़े नेटवर्क ने काम किया जिसमें पुलिस के बड़े अधिकारी भी शामिल थे. अतुल्य चक्रवर्ती के मुताबिक गुप्तेश्वर पांडे इन अधिकारियों में प्रमुख थे. बाद में सीबीआई ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस बात को स्वीकार किया था कि मुज़फ़्फ़रपुर का लैंड माफिया स्थानीय पुलिस के संरक्षण में पनप रहा था. अपनी इस रिपोर्ट में सीबीआई ने कुछ स्थानीय पुलिस अफसरों से पूछताछ का भी ज़िक्र किया जिनमें गुप्तेश्वर पांडे का नाम भी शामिल था. हालांकि डीजीपी पांडे अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को नकारते रहे हैं. उनके अनुसार नवरुणा को उसके ही परिवार ने मारा था.

इससे पहले गुप्तेश्वर पांडे 2009 में भी पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) लेकर चर्चाओं में आए थे. तब ख़बरें उड़ी थीं कि वे बक्सर से चुनाव लड़ना चाहते थे. इसके लिए उन्हें कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से टिकट का भरोसा भी दिया गया था. लेकिन बताया जाता है कि कुछ राजनीतिक समीकरणों के चलते बात नहीं बनी. फिर इसके नौ महीने बाद गुप्तेश्वर पांडे को वापिस पुलिस में शामिल कर लिया गया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक किसी पुलिस अधिकारी की सेवानिवृत्ति के बाद उसकी सेवाओं को इस तरह से बहाल कर देना एक दुर्लभ मामला था. जानकार बताते हैं कि बिहार के डीजीपी पद पर भी गुप्तेश्वर पांडे की नियुक्ति नीतीश सरकार का एक चौंकाने वाला फैसला था जिसकी उम्मीद तब शायद ही किसी को थी. बिहार के स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक पांडे नीतीश कुमार के चहेते तो हैं ही, लेकिन उनके रुझान उन्हें नागपुर (आरएसएस मुख्यालय) तक जोड़ते हैं.
यहां कुछ सवाल सुशांत सिंह राजपूत के परिवार पर भी उठते हैं. जैसे कि उनके पिता कृष्ण कुमार सिंह दावा करते हैं कि वे फ़रवरी में ही ऐसी किसी अनहोनी का अंदेशा मुंबई पुलिस के सामने जता चुके थे. ऐसे में यहां पूछा जा सकता है कि यदि ऐसा सचमुच में था तो उन्होंने इसके लिए व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की बजाय किसी ठोस और औपचारिक तरीके का इस्तेमाल क्यों नहीं किया? जबकि सुशांत के एक बहनोई ओपी सिंह ख़ुद भी हरियाणा कैडर के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं. मुंबई पुलिस के मुताबिक सुशांत सिंह की जान को ख़तरा होने की आशंका कृष्ण कुमार सिंह ने नहीं बल्कि ओपी सिंह ने ही जताई थी. हाल ही में मुंबई पुलिस के डीसीपी परमजीत सिंह दहिया ने दावा किया था कि फ़रवरी में ओपी सिंह मुंबई भी गए थे. तब वे चाहते थे कि स्थानीय पुलिस रिया चक्रवर्ती को अनौपचारिक रूप से थाने लाए और उसे थप्पड़ मारकर उस पर सुशांत के परिवार की बात मानने का दबाव बनाया जाए.
वहीं कुछ को इस बात में भी कुछ गड़बड़ नज़र आती है कि सुशांत सिंह के पिता ने रिया चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ एफआईआर करने में एक महीने से भी ज़्यादा का वक़्त क्यों ले लिया. इस पर बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘हो सकता है उन्हें ऐसा करने की किसी ने सलाह दी हो या फ़िर उन्हें जानबूझकर यक़ीन दिलाया गया हो कि उनके बेटे की मौत आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या थी.’ यहां इन पत्रकार का इशारा सुशांत सिंह के एक करीबी रिश्तेदार की तरफ़ है जो इस समय बिहार में भाजपा के विधायक भी हैं. हालांकि इसके जवाब में सीधी सी दलील दी जा सकती है कि एक जवान बेटे की मौत के बाद किसी भी परिवार को संभलने में कम से कम इतना वक़्त तो लग ही जाता है और परिवार के मुताबिक उन्हें यह क़दम मजबूरी में तब उठाना पड़ा जब इस मामले में मुंबई पुलिस ठीक से अपना काम नहीं कर रही थी.
और इस तरह एक अभिनेता की मौत दो राज्यों की राजनीति का केंद्र बन गई
बीते साल महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन वाली महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर कोई न कोई संकट मंडराता रहा है. दरअसल मुख्यमंत्री बनते समय उद्धव ठाकरे विधानसभा और विधानपरिषद में से किसी के भी सदस्य नहीं थे और पद पर बने रहने के लिए उन्हें छह महीने के भीतर इनमें से किसी एक का सदस्य बनना आवश्यक था. लेकिन चुनाव आयोग ने कोविड-19 के चलते किसी भी चुनाव के न होने की घोषणा कर दी थी. नतीजतन उद्धव ठाकरे का राजनीतिक भविष्य राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के निर्णय पर टिक गया. लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र कैबिनेट के उस प्रस्ताव को अनदेखा कर दिया था जिसमें ठाकरे को विधानपरिषद में मनोनीत करने की बात कही गई थी. इस पर ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की. उसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर विधानपरिषद का चुनाव कराने की अनुमति मांगी जो उन्हें मिल गई. इसके बाद हाल ही में उद्धव ठाकरे सहित सभी नौ उम्मीदवार निर्विरोध महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य चुने गए.
इस दौरान देश भर में कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौतों के मामले में महाराष्ट्र के शीर्ष पर होने की वजह से भी ठाकरे की चुनौतियां दूसरे मुख्यमंत्रियों से ज़्यादा ही रहीं. रिपोर्ट लिखे जाने तक महाराष्ट्र में कोरोना संक्रिमतों की कुल संख्या पांच लाख के करीब पहुंच चुकी थी जिनमें से 17 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. उस पर उद्धव ठाकरे शासन व्यवस्था संभालने के अनुभव में भी बिल्कुल ख़ाली हाथ हैं. फिर लॉकडाउन के दौरान ठाकरे की एक बार इसलिए भी किरकिरी हुई क्योंकि महाराष्ट्र के प्रमुख सचिव (गृह) अमिताभ गुप्ता की मदद से मुंबई के कारोबारी वाधवान परिवार के बीस लोग पिकनिक मनाने प्रदेश के ही हिल स्टेशन महाबलेश्वर पहुंच गए थे. जैसे-तैसे यह मामला शांत हुआ तो हज़ारों मज़दूरों के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास इकठ्ठा होने और पालघर में एक ड्राइवर समेत दो साधुओं की मॉब लिंचिंग ने उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी.
इस सब से उबरकर मुख्यमंत्री ठाकरे महाविकास अघाड़ी सरकार की अदंरूनी खींचतान से जूझ ही रहे थे कि अब सुशांत सिंह वाले मामले ने तूल पकड़ लिया है. प्रदेश के एक वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक अपना नाम न छापने के आग्रह के साथ इस बारे में अपना मत रखते हैं, ‘मुंबई की फिल्मी दुनिया का राजनीति और अपराध से पुराना नाता रहा है... इसलिए सुशांत राजपूत की मौत से जुड़ी चर्चाओं में थोड़ी भी सच्चाई है तो ये ठाकरे परिवार के लिए बहुत बड़ा संकट साबित हो सकता है. क्योंकि उनका वर्तमान और भविष्य सब कुछ उसी (आदित्य ठाकरे) पर केंद्रित है.’
जानकारों की मानें तो बीते साल महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी को पहले तो 288 में से सर्वाधिक 105 सीटें लाकर भी जिस तरह सत्ता से दूर होना पड़ा और फिर उसके बाद देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में महज दो दिन की सरकार बनाकर उसने अपनी जो फजीहत करवाई, उसके लिए वह सीधे तौर पर शिवसेना को ही जिम्मेदार मानती है. फिर राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक मौजूदा विपक्षी दलों में सिर्फ़ एक शिवसेना ही है जो यदि उचित रणनीति से चलती रहे तो भाजपा के लिए उससे निपट पाना आसान नहीं है. क्योंकि हार्ड हिंदुत्व या राष्ट्रवाद जैसे भाजपा के पसंदीदा मोर्चों पर शिवसेना भी फ्रंटफुट पर आकर खेलने में माहिर रही है. इसलिए जब शिवसेना ज़मीन से जुड़े मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी को घेरने लगती है तो भाजपा के लिए उसे दूसरे विपक्षी दलों की तरह हिंदू विरोधी या देशद्रोही कह पाना मुश्किल हो जाता है.
यहां एक अहम पहलू यह भी है कि अभी तक ठाकरे परिवार शिवसेना की राजनीति को भले ही चलाता रहा हो लेकिन सीधे तौर पर वह सूबे की सरकार और प्रशासन नहीं चलाया करता था. विशेषज्ञों के अनुसार अब यदि संसाधन संपन्न महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार को लंबे समय तक मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठने का चस्का लग गया तो सत्ता के केंद्र से उसे दूर रख पाना आसान नहीं होगा. फिर यह बात मायने नहीं रखेगी कि शिवसेना आगे चलकर किस दल के साथ गठबंधन करती है. विश्लेषकों का यह भी कहना है कि यदि उद्धव ठाकरे बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल होते हैं तो इससे शिवसेना को भी बहुत मजबूती मिलेगी जो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अलग होने के बाद से लगातार अपनी धार खोती गई है.
ऐसे में महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ पत्रकार इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कहते हैं कि ‘आज ठाकरे परिवार के पास खोने के लिए बहुत कुछ है. उधर केंद्रीय जांच एजेंसियों पर केंद्र सरकार का प्रभाव किसी से नहीं छिपा है. सुप्रीम कोर्ट तक सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता और मालिक की आवाज़ बता चुका है. लिहाजा सीबीआई जांच को लेकर ठाकरे परिवार और महाराष्ट्र सरकार का डर ग़ैरवाज़िब नहीं है.’ इन पत्रकार के शब्दों में ‘मुंबई की राजनीति या बॉलीवुड में जहां हर तरह का खुलापन है वहां किसी दुर्घटना या विचित्र स्थिति को छोड़कर इस बात पर यक़ीन कर पाना मुश्किल है कि कुछ नामचीन हस्तियों ने मिलकर एक लड़की का रेप करने के बाद उसका मर्डर भी कर दिया. ख़ुद दिशा सालियान का परिवार और उनके करीबी दोस्त इस थ्योरी को नकारते रहे हैं.’
‘लेकिन हां, सुशांत सिंह वाले मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है. क्योंकि उनके परिवार का दावा है कि उनकी जान को छह महीने से ख़तरा था. इस तरह तो दिशा सालियान वाला एंगल सिरे से ही ख़ारिज हो जाता है. और जब ऐसा है तो ये समझ नहीं आता कि महाराष्ट्र पुलिस और शिवसेना जैसा आक्रामक दल अब तक इस मामले में बचाव की मुद्रा क्यों अपनाए हुए है? बात ये भी है कि इस समय केंद्रीय गृह मंत्रालय अमित शाह जैसे नेता के हाथ है. राज्य में भी गृहमंत्रालय शिवसेना की बजाय एनसीपी के पास है जिसके मुखिया शरद पवार का कूटनीतिक कौशल किसी से छिपा नहीं है. फिर किसी भी विरोधी या सहयोगी दल के पास शिवसेना पर दवाब बनाने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता है? इस तरह इस मामले ने ठाकरे परिवार के लिए आगे कुआं और पीछे खाई की स्थिति पैदा कर दी है.’ आगे जोड़ते हुए ये पत्रकार मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनज़र आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति में कई नए समीकरणों के बनने या बिगड़ने की संभावना से इनकार नहीं करते.
दूसरी तरफ़ बिहार सरकार की बात करें तो उसका यह कार्यकाल औसत ही बीता है. फिर कोरोना महामारी और हर साल की तरह इस साल भी आई मानसूनी बाढ़ के चलते पैदा हुए विपरीत हालातों से निपटने में भी वह अभी तक नाकाम ही नज़र आ रही है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि सुशांत सिंह राजपूत के सहारे नीतीश सरकार लोगों की भावनाओं के साथ जुड़ना चाहती है. प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार निराला इस बारे में कहते हैं कि ‘बिहारी अस्मिता शुरुआत से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रमुख एजेंडे में शामिल रही है. लिहाजा वे बिहार की प्रतिष्ठा से जुड़े किसी भी मुद्दे को आसानी से अपने पाले से बाहर नहीं जाने दे सकते! ऐसा ही कुछ सुशांत सिंह राजपूत केस के साथ भी हो रहा है जिसका इस्तेमाल पॉलिटिकल विक्टिम की तरह किया जा रहा है. भले ही ये अगले विधानसभा चुनाव के लिहाज से मुख्य मुद्दा नहीं है, लेकिन चुनाव पर इसका असर ज़रूर रहेगा.’
निराला आगे जोड़ते हैं, ‘सुशांत सिंह के अभिनय का सफ़र छोटे पर्दे से हुआ था. वह भी उस दौर में जब डेली सोप इंडस्ट्री चरम पर थी. इसलिए देश भर की महिलाएं और लड़कियां सुशांत से विशेष जुड़ाव महसूस करती हैं. बिहार के मामले में ये अपनत्व कहीं ज़्यादा बढ़ जाता है. यूं भी यहां की महिलाएं जातिगत समीकरणों से परे एक अलग ही वोटबैंक हैं जिसे नीतीश कुमार हमेशा से तवज्जो देते आए हैं. फिर प्रदेश के युवाओं में भी सुशांत सिंह के लिए एक अलग ही क्रेज़ था. ऐसे में जो भी सुशांत सिंह के लिए न्याय की आवाज़ उठाएगा, वो बिहार के इस बड़े वर्ग की भावना से जुड़ पाएगा. विपक्ष भी ये बात जानता है. इसलिए अब तक उद्धव ठाकरे सरकार के प्रशंसक रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी इस मामले में अभिनेता शेखर सुमन के साथ बिहार में ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस संबंध में सीबीआई जांच की मांग उठाई थी.’
बकौल निराला ‘सुशांत सिंह सूबे में भूरा बाल कहे जाने वाले सवर्ण समुदायों में से एक ठाकुर समुदाय से ताल्लुक रखते थे. ये समुदाय संख्या के लिहाज से भले ही कम है लेकिन बिहार में इसका सामाजिक प्रभाव बहुत ज़्यादा है... यूं तो सूबे के ठाकुर किसी एक पार्टी के साथ नहीं बंधे हैं. लेकिन नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से वे कम ही ख़ुश रहते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की हमेशा से यही कोशिश रही है कि ठाकुर भले ही उनके पक्ष में वोट न दें, लेकिन उनके विरोध में माहौल भी खड़ा न करें. यह एक बड़ा कारण है कि प्रदेश सरकार सुशांत सिंह मामले में कोई ढील नहीं छोड़ना चाहती है. फिर सुशांत सिंह जिस कोसी क्षेत्र से आते थे वहां वे राजपूत समुदाय के नहीं बल्कि 36 कौम के बेटे थे और सभी में उनकी मौत के बाद एक ही सा दुख और आक्रोश है. बिहार सरकार इस बात से भी बखूबी वाक़िफ़ है. इसलिए भी वह इसे लेकर सतर्क है.’
बहरहाल, इस पूरे मामले में नीतीश कुमार सरकार की भूमिका पर एक आलोचक तंज कसते हुए कहते हैं कि ‘चूंकि सुशांत सिंह की मौत दूसरे राज्य में हुई है इसलिए बिहार की सरकार और पुलिस इसे लेकर अति-सक्रियता दिखा रही है. यदि ये लोग अपने राज्य के नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए इतने ही गंभीर और संवेदनशील हैं तो नवरुणा की ही तरह सिवान के पत्रकार राजदेव रंजन जैसी चर्चित हत्याओं के मामलों में ऐसी शर्मनाक लापरवाही की चादर नहीं ओढ़ लेते जिसकी वजह से पीड़ित परिवारों को आज तक न्याय नहीं मिल सका है. कोई बड़ी बात नहीं कि सुशांत सिंह और उसके परिवार को भी न्याय दिलवाने में इनकी दिलचस्पी तभी तक रहे जब तक कि विधानसभा चुनाव नहीं होते हैं. उसके बाद हो सकता है कि ये अपने रास्ते और वो बेचारे अपने!’
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