1-बेंगलुरु में हालिया हिंसा के बाद एक बार फिर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया यानी एसडीपीआई सुर्खियों में है. माना जा रहा है कि कर्नाटक सरकार एक बार फिर इसे प्रतिबंधित करने का मन बनाने लगी है. कुछ महीने पहले नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ मेंगलुरु में हुआ प्रदर्शन जब हिंसक हो गया था तो भी एसडीपीआई की चर्चा हुई थी. इस संगठन को लेकर बीबीसी पर इमरान कुरैशी की रिपोर्ट.
बेंगलुरु हिंसा: SDPI, जिसकी भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल

2- जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हुए एक साल हो चुका है. इस दौरान सेना की आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई और उसकी चर्चा भी काफी तेज हुई है. लेकिन द प्रिंट हिंदी पर अपने इस लेख में स्नेहेश एलेक्स फिलिप का मानना है कि आतंकवाद का मुकाबला भारतीय सेना का मुख्य काम नहीं है और ऐसी कार्रवाई में भारी तैनातियों ने एक ‘पाकिस्तान-केंद्रित सोच’ को जन्म दिया है जो नुकसानदायक है.
सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवादियों को मार गिराना ही सिर्फ कश्मीर नीति नहीं हो सकती
3-भारत इस समय तीनतरफा चुनौतियों से जूझ रहा है. सामरिक, आर्थिक और स्वास्थ्य के मोर्चे पर हालात खराब हैं, लेकिन हमारा एजेंडा तय करने वालों की प्राथमिकता में ये चीजें हाशिये पर दिखती हैं. द वायर हिंदी पर निधीश त्यागी की टिप्पणी.
क्या देश और सरकार के लिए सत्य भी राम नाम की तरह पवित्र है
4-पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ जिलों में केला उगाने वाले किसानों की एक बड़ी संख्या परेशान है. इसकी वजह है एक संक्रमण जिसमें केले के पेड़ ही सूख और सड़कर गिर जाते हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि यह केले का कैंसर है जिसका कोई इलाज नहीं है. डाउन टू अर्थ हिंदी पर विवेक मिश्रा की रिपोर्ट.
केले का कैंसर: सोच रहा 30 वर्षों की खेती छोड़ दूं
5-देश की आजादी के सात दशक बाद भी पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्य खुद को इसका हिस्सा नहीं मान सके हैं. खासकर मणिपुर में तो अलगाव की भावना सबसे ज्यादा है. डॉयचे वेले हिंदी पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट.
पूर्वोत्तर में आजादी के सात दशकों बाद ही जस की तस है अलगाव की भावना
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.