दुनिया के चौथे सबसे बड़े ऑटोमोबाइल बाज़ार यानी भारत के लिए साल 2019-20 किसी हादसे के मानिंद गुज़रा. भारतीय वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन ‘सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स’ (सिआम) के मुताबिक़ 2019-20 में हमारे ऑटो सेक्टर को बीते 22 साल की सबसे बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा. इस दौरान भारत की एक से एक दिग्गज ऑटो कंपनियों के सेल्स फ़िगर धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरे थे. इन कंपनियों में देश के पैसेंजर व्हीकल सेग्मेंट यानी कार निर्माण से जुड़ी कंपनियां प्रमुखता से शामिल थीं. यदि 2018-19 से तुलना करें तो उस साल भारत में 3,377,389 पैसेंजर व्हीकल बिके थे. जबकि 2019-20 के दौरान ये आंकड़ा 17.87 फ़ीसदी कमी के साथ 2,773,575 पर ही सिमट गया.
जानकारों ने ऑटो सेक्टर में आई इस गिरावट के लिए कई कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया. इनमें आर्थिक मंदी, भारत सरकार द्वारा बीएस-4 उत्सर्जक मानकों की बजाय बीएस-6 को लागू करना और 2030 तक पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भर होने जैसे सरकार के निर्देश प्रमुख थे.
लेकिन अगस्त-2019 में ही एक ऐसी कंपनी ने भारतीय कार बाज़ार के दर पर दस्तक दी जिसको अब तक इन सारे कारणों ने मानो छुआ ही नहीं है. यह कंपनी थी दक्षिण कोरिया की ‘किआ मोटर्स’. भारत में किआ की एंट्री उसकी सबकॉम्पैक एसयूवी ‘सेल्टोस’ के साथ हुई थी. कंपनी ने सेल्टॉस को सबसे पहले ऑटो एक्सपो-2018 में कॉन्सेप्ट के तौर पर शोकेस किया था. तब से ही बाज़ार में इस कार का इंतज़ार किया जा रहा था. लेकिन इस कार को लेकर ग्राहकों में इतना उत्साह होगा इसकी उम्मीद तब शायद ही किसी को रही होगी.
बुकिंग खुलने के पहले दिन ही 6,046 किया सेल्टोस बुक हो गई थीं. बिक्री के लिहाज से बात करें तो 2019 के ख़त्म होने तक इस गाड़ी की 45 हज़ार से ज़्यादा यूनिट्स बिक चुकी थीं. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार जुलाई-2020 तक भारत में 98,979 सेल्टोस की बिक्री दर्ज की जा चुकी है जो कि इस सेग्मेंट के लिहाज़ एक बेंचमार्क है. इस बात की पूरी संभावना है कि रिपोर्ट लिखे जाने तक किआ मोटर्स की यह पेशकश बिक्री के लिहाज से एक लाख का आंकड़ा पार कर चुकी होगी. भारत में सेल्टोस की लोकप्रियता को इससे भी समझा जा सकता है कि इस साल फ़रवरी में 14,024 किया सेल्टोस बिकी थीं जो कि सेग्मेंट की सिरमौर मानी जाने वाली मारुति-सुज़ुकी विटारा ब्रेज़ा की बिक्री - 6,866 यूनिट्स - के दोगुने से भी ज़्यादा थी.
भारतीय बाज़ार में सेल्टोस को मिल रही दमदार प्रतिक्रिया को इससे भी समझा जा सकती है कि सिर्फ़ इसी एक कार के बूते ही किआ मोटर्स साल भर से कम समय में ही देश की पांच शीर्ष कार निर्माता कंपनियों में शामिल हो चुकी है. जबकि इससे पहले की कंपनियों को यह मुक़ाम हासिल करने में कई-कई वर्ष लग गए थे. किआ सेल्टोस की सफलता इसलिए भी कई विश्लेषकों का ध्यान खींचती है क्योंकि इससे ठीक पहले बाज़ार में टाटा मोटर्स की एसयूवी हैरियर और ब्रिटिश कंपनी एमजी मोटर्स की एसयूवी हेक्टर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी थी. लेकिन शुरुआत को छोड़कर ये दोनों ही कारें तुलनात्मक तौर पर कुछ ख़ास प्रदर्शन कर पाने में नाकाम रही हैं. जबकि लॉन्चिंग के समय ये दोनों ही कारें अपने आप में परफ़ेक्ट नज़र आती थीं.
हालांकि कुछ को यहां हैरियर और हेक्टर की तुलना सेल्टोस से करना बेतुका लग सकता है. क्योंकि इनमें से पहली दो कारें फुल साइज़ एसयूवी हैं, जबकि तीसरी सबकॉम्पैक एसयूवी. लेकिन क़ीमत के हिसाब से देखें तो इन तीनों कारों के कई वेरिएंट आपस में टकराते हैं. जैसे - सेल्टोस जीटीएक्स प्लस ऑटोमैटिक डीज़ल (17.34 लाख रुपए), एमजी हेक्टर शार्प डीज़ल (17.73 लाख रुपए) और हैरियर एक्सज़ेड (17.64 लाख रुपए). यानी कि हैरियर और एमजी हैक्टर कीमत वाली ज्यादा बड़ी गाड़िया हैं.
अब सवाल है कि किआ मोटर्स ने ऐसा क्या किया कि वह रातों-रात हिंदुस्तानियों की चहेती बन गई? इसके जवाब में कई वजहें गिनवाई जा सकती हैं. लेकिन उनसे पहले एक नज़र इस कंपनी के अब तक के सफ़र पर डाल लेते हैं.
किया मोटर्स की शुरुआत 1944 में स्टील ट्यूब्स और साइकिल के कलपुर्ज़े बनाने से हुई थी. साइनो-कोरिअन भाषा में ‘कि’ का मतलब होता है उदय और ‘आ’ का अर्थ है ‘पूर्व’ यानी कि पूर्व से उदय होने वाला. आगे चलकर किआ ने 1957 में छोटी मोटरसाइकल, 1962 में ट्रक और 1974 में कारों का उत्पादन शुरु किया. इसके बाद कंपनी ने पीछे पलट कर नहीं देखा. लेकिन 1997 के पूर्वी एशिया के चर्चित आर्थिक संकट के दौर में किआ मोटर्स दीवालिया घोषित हो गई. तब दक्षिण कोरिया की प्रमुख कार निर्माता कंपनी ‘ह्युंडई मोटर्स’ ने इसकी 51 फ़ीसदी हिस्सेदारी ख़रीद ली और किआ मोटर्स का जो सफ़र थमता दिख रहा था वह एक बार फिर जोर-शोर से शुरु हो गया. फिलहाल किआ मोटर्स में ह्युंडई की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत के करीब है. लेकिन वह अब भी किआ में सबसे बड़ी स्टेकहोल्डर है. और इस समय किआ का व्यापार दुनिया के ज्यादातर महत्वपूर्ण देशों में फैला हुआ है.
अब हमारे सवाल के जवाब पर आते हैं. यों तो दूसरे तमाम क्षेत्रों की तरह अधिकतर भारतीय वाहनों को लेकर भी घोर परंपरावादी रवैया अपनाते रहे हैं. कई दशकों से मारुति-सुज़ुकी का देश की शीर्ष कार निर्माता कंपनी बने रहना इस बात का सटीक उदाहरण है. हालांकि इसमें मारुति के विस्तृत सर्विस नेटवर्क की भी बड़ी भूमिका रही है. लेकिन भारतीय ग्राहकों का एक वर्ग ऐसा भी है जो हमेशा आगे बढ़कर नई विदेशी कारों को अपनाता रहा है. ऐसी कुछ प्रमुख कारों की बात करें तो इनमें ह्युंडई की ही हैचबैक सेंट्रो (1998), स्कोडा की सेडान ऑक्टेविया (2001), फ़ोर्ड की स्मॉल साइज़ सेडान आइकन (2001) और रेनो की सबकॉम्पैक एसयूवी डस्टर (2012) का नाम लिया जा सकता है. अब किआ सेल्टोस का भी नाम इसी फ़ेहरिस्त में शामिल हो चुका है.
किआ सेल्टोस के भारत में बेहतर प्रदर्शन के लिए उसकी सहयोगी कंपनी ह्युंडई की भी बड़ी भूमिका रही है. भारतीयों के लिए किआ मोटर्स नई तो थी, लेकिन ह्युंडई की सहयोगी होने की वजह से वह भारतीय बाज़ार से अनजान नहीं थी. जानकारों के मुताबिक बीते ढाई दशक में ह्युडंई ने भारतीय ग्राहकों से सीधे संपर्क के दौरान जितने भी अनुभव हासिल किए, किआ मोटर्स ने उनका भरपूर इस्तेमाल किया.
किआ मोटर्स इंडिया के निदेशक और सीईओ कूकह्युन शिम (Kookhyun Shim) भारत में अपनी सफलता को लेकर कहते रहे हैं कि ‘हमने यहां के बाज़ार और ग्राहकों के बारे में गहन शोध करने के बाद ही यहां पैर रखा था. हमने भारतीय ग्राहकों की उन ज़रूरतों को पहचाना जो अभी तक पूरी नहीं की जा सकी थीं. इस सब को समझने के बाद हमने हमारे उत्पाद और सेवाओं के साथ रणनीतियों को और भी बेहतर बनाने की हरसंभव कोशिश की. और जिस तरह की प्रतिक्रिया हमें भारत में मिली है उसे देखकर लगता है कि हमारा शोध सही था.’
यदि भारत में किआ के अब तक के सफ़र को देखें तो उसने बाज़ार में किसी नए उत्पाद को उतारने के 4-पीज़ यानी प्रोडक्ट, प्राइस, प्रमोशन और प्लेस के बेसिक फॉर्मूले को बहुत अच्छे से थामकर रखा है. इनमें से यदि प्रोडक्ट की बात करें तो किआ सेल्टोस स्टाइल, फ़ीचर्स और परफ़ॉर्मेंस का बेजोड़ कॉम्बिनेशन नज़र आती है. क़ीमत के मामले में भी यह गाड़ी अपने प्रतिस्पर्धियों को ख़ूब छकाती है. कुछ ऐसी ही बात कंपनी के एमपीवी (मल्टीपरपज व्हीकल) कार्निवल के लिए भी कही जा सकती है. कार्निवल को किआ मोटर्स ने इसी साल फ़रवरी में ग्रेटर नोएडा में आयोजित ऑटो एक्सपो- 2020 के दौरान भारत में लॉन्च किया था.

हालांकि कुछ जानकार 24.95 लाख रुपए से लेकर 33.95 लाख रुपए तक के किया कार्निवल के (एक्स-शोरूम) दामों को तुलनात्मक तौर पर बहुत ज़्यादा बताते हैं. क्योंकि सेगमेंट की दिग्गज कार टोयोटा इनोवा क्रिस्टा के टॉप मॉडल की भी (एक्स-शोरूम) क़ीमत 24.67 लाख रुपए पर जाकर थम जाती है. लेकिन यहां दलील दी जा सकती है कि कार्निवल के लिए चुकाई गई अतिरिक्त आठ-नौ लाख की राशि इसलिए नहीं अखरती क्योंकि किआ मोटर्स ने इस कार को स्लाइडिंग डोर जैसी ऐसी कई ख़ूबियों से लैस किया है जो इसे अपने से कहीं ज़्यादा मंहगी और लग़्जरी कारों की टक्कर में ला खड़ा करती हैं.
इसके अलावा भारत में किआ मोटर्स शुरुआत से ही एक बड़ा नेटवर्क खड़ा करने के मामले में काफ़ी मुस्तैद दिखी है. यह एक ऐसा मोर्चा है जिसके चलते फोर्ड और फॉक्सवैगन जैसी दिग्गज कंपनियों को जबरदस्त गुणवत्ता वाले उत्पाद होने के बावजूद भारत में मात खानी पड़ी है. वहीं, किआ मोटर्स देश के 160 शहरों में सीधी उपलब्धता के साथ 265 टंच पॉइंट्स बनाने के लक्ष्य पर भी तेजी से काम कर रही है. इसके चलते किआ ग्राहकों को यह संदेश देने में सफल रही है कि उसका मकसद भारतीय बाज़ार को सिर्फ़ टटोलना नहीं है, बल्कि वह यहां लंबा टिकने का मन बनाकर आई है. अपनी इसी रणनीति के तहत कंपनी हर छह से नौ महीने में देश में एक नई कार पेश करने की घोषणा को भी समय-समय पर दोहराती रही है.
लेकिन इस सब का यह मतलब बिल्कुल नहीं कि भारत में किआ मोटर्स की आगे की राह बहुत ही आसान रहने वाली है. क्योंकि जिन कारों - सेंट्रो, ऑक्टेविया, डस्टर, आइकन का ज़िक्र हमने इस रिपोर्ट में ऊपर किया है, सेल्टोस की ही तरह वे भी भारत में अपनी-अपनी कंपनियों का पहला/प्रमुख उत्पाद थीं. लेकिन आज भारतीय बाज़ार में ह्युंडई को छोड़कर बाकी कारों की निर्माता कंपनियों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. रेनो को भी उसकी हैचबैक क्विड से ही बड़ा सहारा मिला हुआ है. अन्यथा डस्टर के बाद उसकी बाकी गाड़ियां संतोषजनक प्रदर्शन करने में नाकाम रही हैं. ऐसे में किआ मोटर्स को इन कंपनियों से सीख लेते हुए अपनी अगली कारों की गुणवत्ता और क़ीमतों को लेकर लगातार सतर्क रहना होगा.
फिर जिस समय किआ ने सेल्टोस को भारत में लॉन्च किया था तब उसे टक्कर देने के लिए बाज़ार में ह्युंडई क्रेटा को छोड़कर कोई प्रमुख कार मौजूद नहीं थी. लेकिन तब क्रेटा का भी जो मॉडल उपलब्ध था वह पांच साल पुराना हो चुका था. इसलिए भी सेल्टोस साल भर से ग्राहकों को बिना किसी चुनौती के ही एकतरफ़ा आकर्षित करने में सफल रही. हालांकि यहां पूछा जा सकता है कि जब हेक्टर और हैरियर के कुछ वेरिएंट समान क़ीमत में उपलब्ध थे तब भी ये दोनों गाड़ियां अपेक्षाकृत बड़ी होने के बावजूद सेल्टोस के प्रदर्शन को प्रभावित क्यों नहीं कर सकीं?
असल में जब हैरियर लॉन्च हुई तो इसे टाटा की लीजेंड एसयूवी सफ़ारी के अपडेटेड वर्ज़न के तौर पर देखा गया था. सफ़ारी की खासियत थी कि क़ीमत में आधी होने के बावजूद यह कार टोयोटा फॉर्च्यूनर और मित्सुबिशी पजेरो जैसी गाड़ियों को हमेशा मजबूत टक्कर देती रही. लिहाज़ा ऐसी ही कुछ उम्मीदें भारी डील-डौल वाली हैरियर से भी लगाई गईं. इसमें कोई दो राय नहीं कि लैंडरोवर की एसयूवी डिस्कवरी की ही तरह ‘ओमेगार्क’ प्लेटफॉर्म पर तैयार की गई हैरियर शहर के साथ हाईवे और ऑफ रोडिंग ड्राइव के लिए एक बेहतर विकल्प है. लेकिन इस कार को फीचर लोडेड बनाने में टाटा मोटर्स ने जो कोताही बरती, उसका उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. हालांकि बाज़ार में उतारे जाते समय इसके फीचर्स संतोषजनक कहे जा सकते थे. लेकिन इसके कुछ ही महीने बाद जब ग्राहकों का परिचय ह्युंडई वेन्यू, हेक्टर और सेल्टोस जैसी इंटरनेट कनेक्टेड कारों से हुआ तो हैरियर मानो पूरे परिदृश्य से गायब ही हो गई.
भारत सरकार द्वारा बीएस-6 मानकों को लागू करने की घोषणा के बावजूद टाटा मोटर्स ने हैरियर को बीएस-4 मानक वाले इंजन के साथ ही पेश करने जैसी बड़ी चूक की थी. फिर एक तरफ़ ग्राहकों के लिए सेल्टोस और हेक्टर के पेट्रोल और डीज़ल दोनों ट्रिम शुरु से ही उपलब्ध रहे वहीं हैरियर सिर्फ़ डीज़ल इंजन के साथ ही आती है. इसके अलावा इसमें शुरू में ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन का विकल्प मौज़ूद नहीं था. हालांकि बाद में टाटा ने अपनी इन खामियों को सुधारते हुए अपनी इस ख़ूबसूरत और मजबूत एसयूवी और भी कई सुधार लाये, लेकिन तब तक थोड़ी देर हो चुकी थी. हालांकि कुछ ऑटो विश्लेषकों के मुताबिक यदि टाटा मोटर्स हैरियर की सिटिंग कैपेसिटी को बढ़ाते हुए इसमें कुछ ख़ूबियां और जोड़ दे तो अब भी बात बन सकती है. उदाहरण के तौर पर हैरियर के सबसे महंगे वर्जन में भी चारों पहियों में डिस्क ब्रेक नहीं है जो इस सेगमेंट से नीचे की भी कई गाड़ियों में मौजूद हैं.
यदि एमजी हेक्टर की बात करें तो यह भी फीचर्स के मामले में सेल्टोस से कमतर तो है. लेकिन यह अंतर उतना बड़ा नहीं है. फिर हेक्टर का इंटीरियर स्पेस और सिटिंग कंफर्ट इस कमी को काफ़ी हद तक पूरा कर देता है. पर इस कार के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि यह शहरी सड़कों के लिए तो ठीक है. लेकिन ऑफ़ रोड ड्राइव के लिहाज़ से थोड़ी निराश करने वाली है. क्योंकि थोड़े भी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते समय हेक्टर का बॉडी रोल किसी एसयूवी के लिहाज से कम ही सुहाता है. हेक्टर के मामले में एक बड़ा नेगेटिव रेस्पॉन्स यह है कि यह कार हाई-वे पर भी तेज रफ़्तार से चलते समय वैसा कॉन्फिडेंस नहीं दे पाती है जैसा कि सेग्मेंट की दूसरी एसयूवीज़ देती हैं. ऐसे में ठीक-ठाक पैसे खर्च करने वाला कोई भी ग्राहक ऐसी एसयूवी चुनने से पहले कई बार सोचेगा जिसे वहीं ले जाना सुविधाजनक न हो जहां के लिए यह बनी है.
इसके अलावा हेक्टर डायमेंशन के मामले में सेल्टोस से हर लिहाज से बड़ी तो है. लेकिन इसके टायरों का आकार सेल्टोस के बराबर (17-इंच) ही है. इस तरह यह कार लुक्स के मामले में भी कुछ असंतुलित सी नज़र आती है. वहीं, कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि चूंकि एमजी मोटर्स चाइनीज कंपनी साइक (SAIC) मोटर्स के आधिपत्य वाली कंपनी है इसलिए भी कई ग्राहक इससे दूरी बनाये हुए हैं. बीते साल दिसबंर में राजस्थान के उदयपुर में एक शख़्स द्वारा हेक्टर को गधे से खिंचवाने और इस कार पर डंकी व्हीकल के पोस्टर लगवाने की घटना ने भी कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया था. विशाल पचौली नाम के इस शख़्स का आरोप था कि उसकी गाड़ी के इंजन से धुआं निकल रहा था और कंपनी डीलरशिप इस कमी को दूर करने की बजाय उसे टाल रही थी. मजबूरन उसे यह अजीब क़दम उठाना पड़ा. जानकारों की मानें तो बाज़ार में अपने लिए जगह तलाश रही किसी नई कार की छवि को बट्टा लगाने के लिए यह घटना छोटी नहीं थी.
वैसे किआ सेल्टोस के तीन साल की तुलना में एमजी मोटर्स हेक्टर के साथ पांच साल की वारंटी देती है. और यदि कोई ग्राहक तीन साल बाद हेक्टर को बेचना चाहे तो एमजी मोटर्स ख़ुद ही उस कार को कम से कम उसकी 60 प्रतिशत क़ीमत में ख़रीदने की सुविधा भी देती है ताकि ग्राहक को अपनी गाड़ी को बेचने के लिए इधर-उधर भटकना न पड़े. लेकिन इसके बावज़ूद एमजी हेक्टर वह कमाल नहीं दिखा पा रही है जैसा किआ सेल्टोस ने दिखाया है. इसका एक बड़ा कारण यही है कि भरपूर फीचर्स से लैस सेल्टोस लुक्स में किसी एसयूवी जैसा फील देती है और चलाने में छोटी गाड़ी जैसा कंफर्ट. साथ ही इस कार को शहर, हाई-वे और ऑफ रोड जैसी हर परिस्थिति में उतनी ही आसानी से ड्राइव किया जा सकता है.
हालांकि मार्च-2020 में क्रेटा के नए अवतार के लॉन्च होने के बाद से स्थिति थोड़ी बदलने लगी है. अब तक नई क्रेटा की कुल 34,212 से ज़्यादा यूनिट्स बिक चुकी हैं. और लॉन्च होते ही क्रेटा ने बिक्री के मामले में सेल्टोस को पीछे छोड़ते हुए सेग्मेंट की सबसे ज़्यादा बिकने वाली कार का खिताब भी अपने नाम कर लिया है. यदि बीते तीन महीने की बात करें तो इस दौरान भारत में 17,963 ह्युंडई क्रेटा बिकी हैं जबकि किआ सेल्टोस इस दौरान 8,725 गाड़ियों की बिक्री के साथ बमुश्किल उसके आधे आंकड़े को ही पार कर पाई. क्रेटा की एक नई उपलब्धि यह भी है कि 2015 से लेकर अब तक उसने घरेलू बाज़ार में कुल पांच लाख गाड़ियों की बिक्री जैसा बड़ा पड़ाव भी पार कर लिया है.
किआ मोटर्स के सामने बढ़ती मांग और कम उत्पादन के बीच ग़लत डिलीवरी कमिटमेंट से बचना और अपनी उन कारों के पार्ट्स को आसानी से उपलब्ध करवाना भी बड़ी चुनौती है जो शुरुआती दिनों में ही किसी बड़ी दुर्घटना का शिकार हो चुकी हैं. दरअसल कारों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के बीच सोशल मीडिया पर किआ मोटर्स को इन दो शिकायतों को लेकर प्रमुखता से घेरा जाता रहा है. यह सोशल मीडिया पर किआ मोटर्स के ख़िलाफ़ फैलाया गया दुष्प्रचार भी हो सकता है. पर यदि इन आरोपों में थोड़ी भी सच्चाई है तो इन दोनों मोर्चों पर निपटने में कंपनी को गंभीरता बरतनी होगी नहीं तो आने वाले दिनों में उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. साथ ही ऑटो विश्लेषकों का मानना है कि किआ मोटर्स को इस बात का भी खास ख्याल रखना होगा कि सेल्टोस की वजह से भारतीय ग्राहकों को उसकी अगली कारों से कुछ ज़्यादा ही अपेक्षाएं हो सकती हैं जिन पर गलाकाट प्रतिस्पर्धा और मंहगाई के दौर में पूरी तरह खरा उतर पाना आसान काम नहीं होगा.
बहरहाल, किआ मोटर्स जल्द ही भारत में अपने चाहने वालों को एक और सबकॉम्पैक एसयूवी ‘सोनेट’ की शक्ल में नई और तीसरी सौगात दे सकती है. सोनेट सेल्टोस से एक रेंज नीचे लॉन्च की जाएगी. लेकिन इस कार की डगर सेल्टोस जितनी आसान नहीं रहने वाली है. क्योंकि इस सेग्मेंट में किआ सोनेट को चुनौती देने के लिए ह्युंडई वेन्यू, महिंद्रा एक्सयूवी-300, टाटा नेक्सन और मारुति-सुज़ुकी की नई ब्रेज़ा बाज़ार में पहले से पैर जमाए खड़ी हैं.
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