1-बिहार विधानसभा चुनाव को अब सिर्फ तीन महीने का समय बचा है. कोरोना वायरस से उपजी महामारी के बीच निर्वाचन आयोग ने सुरक्षित तरीके से चुनाव कराने के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं. इसके साथ ही बिहार में पाला बदल, जोड़तोड़ या तरह-तरह के समीकरण बनाने-बिगाड़ने जैसी गतिविधियां तेज़ हो गई हैं. बीबीसी हिंदी पर मणिकांत ठाकुर की रिपोर्ट.
बिहार चुनाव 2020 से पहले दल बदलते नेता: कितना जनहित, कितना अवसरवाद?

2- लद्दाख में चीन की घुसपैठ को 100 से ज्यादा दिन हो चुके हैं, कोरोनावायरस को तांडव करते छह महीने होने जा रहे हैं और आर्थिक गिरावट लगातार चौथे साल भी जारी है. जाहिर है कि नरेंद्र मोदी के आलोचक काफी परेशान हैं. आखिर इतनी परेशानियां झेलने के बावजूद लोग मोदी के खिलाफ क्यों नहीं हो रहे? क्या वे कष्ट में नहीं हैं? क्या मोदी ने उन सब पर कोई जादू कर दिया है? द प्रिंट हिंदी पर शेखर गुप्ता की टिप्पणी.
चीन, कोविड, नौकरियां जाने के बावजूद मोदी का किला सलामत, उनको हराने की ताकत आज एक ही नेता में है
3-उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक एसडीएम को लोगों का मास्क न पहनना इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने खुद पुलिस वालों के साथ हाथ में डंडा लेकर मारपीट शुरू कर दी. वीडियो वायरल होने के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया. लेकिन यह इस तरह का पहला मामला नहीं है. लॉकडाउन के दौरान इस तरह की काफी घटनाएं हुई हैं. आखिर अधिकारी लोगों के साथ इस तरह का बर्बर व्यवहार क्यों करते हैं? डॉयचे वेले हिंदी पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट.
यूपी में अफसर डंडे और हाथ-पैर से लोगों को क्यों पीटने लगते हैं?
4- नफरत से भरे मैसेज उन वाट्सएप ग्रुप में भी सेंध लगा चुके हैं जिनमें महिलाएं कभी अमूमन घर-गृहस्थी से जुड़े मसले साझा किया करती थीं. जब औरतें मर्दों की भाषा में बात करने लगें तो फिक्र होती है कि ये भाषा आ कहां से रही है. सचमुच उनके दिल पर चोट लगी है या वे ट्रेंडिंग की चपेट में हैं? द वायर हिंदी पर मनीषा पांडेय की टिप्पणी.
आम महिलाओं की बढ़ती सियासी चेतना उनकी अपनी है या वे किसी एजेंडा की शिकार हैं?
5- उच्च शिक्षण संस्थानों की प्रशासनिक और शैक्षणिक गुणवत्ता मे मूलभूत सुधार लाने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने हाल के वर्षों मे कई तरह के प्रयास किए हैं. इनमें जिनमें 2016 से उच्च शिक्षा संस्थानों की राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के तहत वार्षिक रैंकिंग जारी करना शामिल है. लेकिन यह रैंकिंग निर्धारित करते वक्त अकादमिक उत्कृष्टता, सामाजिक प्रतिबद्धता या प्रशासनिक क्षमता जैसे बिंदुओं में से किसको वरीयता दी जानी चाहिए? न्यूजलॉन्ड्री हिंदी पर डॉ विनीत कुमार और डॉ यूसुफ़ अख़्तर का लेख.
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