1-अक्सर कहा जाता रहा है कि अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा में लाने की प्रतिबद्धता जताते रहने के बावजूद भारत में उदारवादियों ने अल्पसंख्यकवाद को संस्थागत बनाने में मदद की. इसने उदारवादियों को एक अगुआ के तौर पर स्थापित कर दिया. लेकिन अब मुसलमानों और उदारवादियों के बीच गलबहियां खत्म हो रही हैं. द प्रिंट हिंदी पर नजमुल होदा का लेख.

भारतीय मुसलमानों और उदारवादियों के बीच की वो कड़ी अब टूटती जा रही है जिसने अल्पसंख्यक राजनीति को गहरा किया

2-सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर हुआ हंगामा इस घटना के ढाई महीने बाद भी जारी है. हाल में आज तक पर सुशांत की गर्लफ्रेंड रहीं रिया चक्रवर्ती के एक इंटरव्यू के बाद सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ नफरत एक नये स्तर पर पहुंच गई है. इस मुद्दे को लेकर बीबीसी हिंदी पर दिव्या आर्य की टिप्पणी.

रिया चक्रवर्ती का इंटरव्यू और घृणा का सैलाब

3-इसी हफ्ते हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद का जन्मदिन भी था. यह दिन देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन एनडीटीवी खबर पर अपने इस लेख में संजय किशोर का मानना है कि इस दिग्गज को वह सम्मान आज भी नहीं मिल पाया है जिसका यह हकदार था.

हिटलर के सम्मान को ठुकराने वाले ‘दद्दा’ को देश ने क्या दिया?

4-पूरी दुनिया को कोरोना वायरस के टीक का इंतजार है. तमाम चुनौतियां पार कर यह टीका बनने के बाद भी उसे फार्मा कंपनियों की लैब से आम लोगों तक पहुंचाने का सफर कम कठिन नहीं होगा. डिलीवरी कंपनियां इसके लिए बहुत खास तैयारी कर रही हैं. डॉयचे वैले हिंदी पर आशुतोष पांडेय का लेख.

कोविड-19 का टीका: लैब से आप तक कैसे पहुंचेगा

5-इन दिनों ज्यादा बोलने वालों का बोलबाला है. लेकिन ऐसे समाज में उन लोगों के क्या मायने हैं जिनका स्वभाव ही कम बोलने का है? द वायर हिंदी पर जसिंता केरकेट्टा की टिप्पणी.

किसी वाचाल देश में आदिवासियों के कम बोलने का अर्थ क्या है