1-1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो भारत में रह रहे चीनी मूल के लोगों को शक की निगाह से देखा जाने लगा था. इनमें से अधिकतर वे लोग थे जो यहां पीढ़ियों से रहे थे और सिर्फ भारतीय भाषा बोलते थे. इसी दौरान भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को दुश्मन देश के मूल का होने के संदेह पर गिरफ़्तार किया जा सकता था. इसके बाद हिरासत में रखे गए चीनी मूल के लोगों की व्यथा को लेकर बीबीसी पर रेहान फजल का लेख.
जब राजस्थान में बंदी बनाकर रखे गए थे चीनी मूल के तीन हज़ार लोग

2- लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनातनी जारी है. लेकिन अपने देश की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय राष्ट्रपति शी जिनपिंग सबसे शक्तिशाली वैश्विक किरदार (अमेरिका) और सबसे ताकतवर क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धी (भारत) को चुनौती देने की रणनीति पर क्यों चल रहे हैं? द प्रिंट हिंदी पर ले. जनरल (सेवानिवृत्त) दुष्यंत सिंह की टिप्पणी.
शी जिनपिंग दूसरा माओ बनना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि भारत-अमेरिका से पंगा उनकी छवि चमकाएगा
3-भारत की जेलों में बंद लोगों में मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों की तादाद उनकी आबादी के अनुपात में कहीं ज्यादा है. इस सिलसिले में जारी सरकार के नये आंकड़े न्याय प्रणाली की समस्याएं ही नहीं, गहरी सामाजिक विसंगतियों को भी उजागर करते हैं. डॉयचे वेले हिंदी पर शिवप्रसाद जोशी की रिपोर्ट.
बदहाल जेलों में पिसते मुस्लिम और दलित कैदी
4-हर साल की तरह इस साल भी कोसी की बाढ़ से बिहार के कई गांव प्रभावित हैं. कोसी योजना को अमल में लाए छह दशक से अधिक समय हो चुका है. सरकारी दस्तावेजों में इस योजना के फ़ायदे गुलाबी हर्फ़ में दर्ज हैं लेकिन, बुनियादी सुविधाओं से वंचित कोसीवासियों की पीड़ा बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के नाम पर लाई गई एक योजना की त्रासदी सामने लाती है. द वायर हिंदी पर मनोज सिंह की रिपोर्ट.
कोसी की बाढ़ और कटान: हर साल गुम हो रहे गांव और रहवासियों के दुखों की अनदेखी
5-कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) योजना पर भी काफी असर डाला है. डाउन टू अर्थ हिंदी पर रिचर्ड महापात्र पताते हैं कि मनरेगा रोजगार को लेकर बुरे माने जाने वाले मई, जून और जुलाई माह में इस बार सबसे ज्यादा रोजगार की मांग हुई. असल में देखा जाए तो मनरेगा में काम की मांग इससे पहले कभी इतनी नहीं रही, जितनी कोरोना वायरस आपदा के दौरान रही है.
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