1-अकाली दल की नेता और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने यह कदम किसानों से जुड़े तीन अध्यादेशों के विरोध में उठाया है. लेकिन कुछ दिन पहले तक इन विधेयकों के समर्थन में रहे अकाली दल का रुख अचानक पलट कैसे गया? बीबीसी हिंदी पर सरोज सिंह की रिपोर्ट.

अकाली दल-बीजेपी की दोस्ती से दरार तक की पूरी दास्तान

2-मोदी सरकार पर आलोचना को पसंद न करने और उन पर शक करने आरोप लगते रहे हैं. लेकिन द प्रिंट हिंदी पर अपनी इस टिप्पणी में इसके संपादक शेखर गुप्ता का कहना है कि केवल मोदी सरकार और भाजपा ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों से लेकर अदालतें तक सब शक की मानसिकता के शिकार हो गए दिख रहे हैं.

सब पर शक करो, सबको रास्ते पर लाओ! क्या यही हमारे नये ‘राष्ट्रीय शक्की देश’ का सिद्धांत बन गया है

3-यह खबरों की असाधारण पहुंच का दौर है. लेकिन पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, सूचना के अधिकार, मनरेगा और गवर्नेंस से जुड़ी वे तमाम खबरें जिनका वास्ता समाज से है, वे खबरिया चैनलों पर क्यों दिखाई नहीं देती? क्यों सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों ने मुख्यधारा में घुसपैठ सी कर ली है? डॉयचे वेले हिंदी पर हृदयेश जोशी की रिपोर्ट.

मुख्यधारा से क्यों गायब हैं सरोकारी खबरें?

4-बीते दिनों खबर आई कि उत्तर प्रदेश का कार्मिक विभाग समूह ख व ग की भर्ती के लिए एक प्रस्ताव लाने की तैयारी में है जिसके हिसाब से भर्ती अब पांच साल के लिए संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर होगी. पांच साल के दौरान जो छंटनी से बच जाएंगे उन्हें स्थायी किया जाएगा. इस दौरान संविदा के कर्मचारियों को स्थायी सेवा वालों का लाभ नहीं मिलेगा. इस मुद्दे को लेकर एनडीटीवी खबर पर रवीश कुमार की टिप्पणी.

यूपी में 5 साल तक संविदा नौकरी के प्रस्ताव से घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है सरकार

5-उत्तर प्रदेश के बड़े गन्ना उत्पादक ज़िलों में से एक कुशीनगर और इसके आसपास के क्षेत्रों में भारी बारिश से हुए जलजमाव के चलते गन्ने की फसल सूखने की ख़बरें आ रही हैं. सरकारी सर्वेक्षण भी बड़े पैमाने पर फसल के नुक़सान की तस्दीक कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अब तक किसानों को किसी तरह की मदद देने की बात नहीं कही है. द वायर हिंदी पर मनोज सिंह की रिपोर्ट.

उत्तर प्रदेश: क्यों परेशान हैं पूर्वांचल के गन्ना किसान