2 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से सारे पर्यटकों और यात्रियों को राज्य छोड़ कर चले जाने का आदेश जारी किया था. उस वक्त दक्षिण कश्मीर के सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक पहलगाम के ज्यादातर होटलों में पर्यटक ठहरे हुए थे. यहां पर रियाज़ अहमद का भी 10 कमरों का एक छोटा सा होटल है. इनमें से पांच कमरे उस समय भरे हुए थे. इन सभी में देश के विभिन्न भागों से आए पर्यटक ठहरे हुए थे.

अगले एक-दो दिन में राज्य के बाकी हिस्सों की तरह पहलगाम से भी सारे पर्यटक निकल गए. इसके बाद 5 अगस्त को भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद रियाज़ अहमद ने अपने पास काम करने वाले छह लोगों को भी घर भेज दिया. उनके होटल में तब से ही ताला लगा हुआ है.

अगस्त के बाद से अब तक न तो उनके होटल में कोई पर्यटक आया है और न ही उनके यहां काम करने वाले छह लोग ही आ सके हैं. रियाज़ के होटल की यह कहानी कश्मीर के पर्यटन क्षेत्र का एक छोटा सा नमूना मानी जा सकती है. पिछले 16 महीनों से कमोबेश यही हाल राज्य में पर्यटन से जुड़ी हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी इकाई का है.

रियाज़ अहमद की मानें तो पिछले कई सालों में कश्मीर के पर्यटन की ऐसी हालत कभी नहीं थी. “हालांकि पिछले कुछ सालों में बाढ़, 2016 के विरोध प्रदर्शन और फिर खराब हालात के चलते टूरिज्म काफी प्रभावित होता रहा है, लेकिन हर साल यह उम्मीद रहती थी कि अगला साल अच्छा होगा. अब वो उम्मीद भी खतम हो रही है” रियाज कहते हैं कि उनकी सारी जमा-पूंजी खत्म हो रही है और काम फिर से चालू होने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद भी नहीं है, “और हम सातों के परिवारों का यही हाल है.”

इससे पहले कि इस बात पर आगे बात करें, पहले यह बताना ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर के लिए पर्यटन कितना महत्वपूर्ण है.

दिसम्बर 2016 में “जर्नल ऑफ इकनॉमिक एंड सोशल डेवलपमेंट” में प्रकाशित हुए एक पेपर के मुताबिक 2012-13 के आस-पास जम्मू-कश्मीर की जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा 6.95 प्रतिशत रहा करता था. लेकिन फिर 2018 में “इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस रिसर्च इन साइन्स एंड इंजीनियरिंग” में प्रकाशित हुए एक पेपर ने जम्मू-कश्मीर की जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा 7.37 फीसदी बताया.

“यहां के हॉर्टिकल्चर क्षेत्र के बाद दूसरे नंबर पर पर्यटन का क्षेत्र ही आता है जिसकी जीडीपी में इस स्तर की भागीदारी है,” कश्मीर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ (केसीसीआई) के अध्यक्ष, आशिक़ हुसैन सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.

अब ज़ाहिर है जीडीपी का इतना बड़ा हिस्सा होने के चलते यह क्षेत्र बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार के अवसर भी देता है. वैसे कश्मीर में पर्यटन से जुड़े लोगों का कोई एक आंकड़ा नहीं है लेकिन जानकारों के अनुमान के मुताबिक कम से कम दो से ढाई लाख लोग इस इंडस्ट्री से सिर्फ प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.

“कश्मीर में कुल मिला के सात से आठ हज़ार होटल हैं और अगर हम यह मान के चलें कि एक होटल में 10 लोग काम करते हैं तो सिर्फ यही लोग 80,000 के करीब हैं,” जम्मू-कश्मीर टूरिज्म अलाइंस और केसीसीआई के सदस्य, फैज बख्शी ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

इस आंकड़े में जब पोनी वाले, दुकानदार, हस्तशिल्प से जुड़े लोग, गाड़ी चलाने वाले, टूर ऑपरेटर्स, लॉड्री वाले, प्राइवेट सिक्युरिटी वाले, शिकारा वाले और अन्य लोगों को मिलाते हैं तो यह काफी बड़ा हो जाता है.

“हमारे 950 से ज़्यादा हाउसबोट और सैंकड़ों शिकाराओं के साथ कम से 70,000 लोग जुड़े हुए हैं” हाउसबोट असोशिएशन के अध्यक्ष, हमीद वांगनू ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

तो कुल मिला कर कश्मीर में लाखों घर पर्यटन की आमदनी पर चलते हैं और पहले अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद के हालात और अब कोरोना वाइरस इन सभी परिवारों की रोज़ी-रोटी खतरे में डाल रहे हैं, या यूं कहें कि डाल चुके हैं.

अब सवाल यह पैदा होता है कि ऐसा क्यूं हुआ है और लोगों में इतनी हताशा क्यूं है?

कश्मीर के हालात के चलते यहां के पर्यटन से जुड़े लोगों के लिए खराब दिन कोई नयी बात नहीं है. लेकिन ये लोग पहले जैसे-तैसे गुज़ारा कर ही लेते थे. फिर चाहे वह चरम पर चल रही मिलिटेंसी और उसके चलते होने वाली भीषण हिंसा हो, या समय-समय पर होते रहने वाले विरोध प्रदर्शन, या फिर 2014 में आई बाढ़.

“ये सब चीज़ें हमारे हाथ में बिलकुल नहीं थीं लेकिन फिर भी काम चल जाता था क्यूंकि पर्यटक जैसे तैसे, कम-ज़्यादा आ ही जाते थे. लेकिन पिछला साल और ये जो साल चल रहा है उसने हमारी कमर तोड़ कर रख दी है” पहलगाम में होटेलियर्स असोसिएशन के अध्यक्ष, आसिफ बुर्ज़ा ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा. बुर्ज़ा के खुद भी कश्मीर में कई होटल हैं.

हुआ असल में यह कि दो अगस्त को जब पर्यटकों के लिए फरमान आया था तो उसमें कश्मीर आने के बारे में सोच रहे लोगों के लिए यह संदेश भी था कि वे अब यहां न आयें. पहली बार ऐसा हुआ था कि कश्मीर में अमरनाथ यात्रा बीच में ही स्थगित कर दी गयी थी.

इसके बाद कश्मीर में लॉकडाउन लगा दिया गया, संचार की सारी सेवाएं कई महीनों तक बंद रहीं और लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने की बिलकुल इजाज़त नहीं थी.

भारत सरकार ने यह एडवायजरी हटाने में दो महीने से ज़्यादा का समय लिया और आखिरकार नौ अक्टूबर 2019 को कश्मीर पर्यटकों के लिए फिर से खोल दिया गया. एडवायजरी हटने के लगभग एक महीने बाद भारत सरकार के पर्यटन मंत्री, प्रह्लाद सिंह पटेल, ने संसद को बताया कि कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाये जाने से वहां पर्यटन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.

कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राज्य सभा सदस्य, एलामारम करीम, के एक सवाल के जवाब में सिंह ने लिखित में बताया कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 के महीने में कुल मिला कर 1008730 पर्यटक आए थे.

“सितंबर के महीने में 1123862 और अक्टूबर के महीने में 1277627 पर्यटक जम्मू-कश्मीर आए थे” सिंह के जवाब में लिखा हुआ था.

भारत सरकार के पर्यटन मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल का संसद में कहना था कि कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटाये जाने से वहां के पर्यटन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.

हालांकि, उनकी यह बात इस साल जनवरी में जम्मू-कश्मीर के पर्यटन विभाग में लगाई गई गयी एक आरटीआई ने झूठ साबित कर दी. पर्यटन विभाग ने इस आरटीआई के जवाब में बताया कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 10130, सितंबर के महीने में 4562 और अक्टूबर के महीने में 9372 पर्यटक ही आए थे.

“इन आंकड़ों की तुलना जब 2017 (अगस्त 164410, सितंबर 135670 और अक्टूबर 133220) और 2018 (अगस्त 86134, सितंबर 83724 और अक्टूबर 59048) से होती है तो पता चलता है कि 2019 में पर्यटन न के बराबर था” पर्यटन विभाग के एक सूत्र के सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

इन सूत्र का यह भी कहना था कि अगर अगस्त से दिसम्बर तक के पर्यटन की तुलना करते हैं तो 2017 के मुक़ाबले 2019 में जम्मू-कश्मीर में 90 प्रतिशत से ज़्यादा कम पर्यटक आए और 2018 के मुक़ाबले लगभग 85 प्रतिशत. और जाहिर सी बात है कि इनमें से ज्यादातर पर्यटक जम्मू के इलाके में ही आये होंगे.

“तो यह कहना कि अनुच्छेद-370 हटाये जाने से यहां पर्यटन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है न सिर्फ गैर जिम्मेदाराना है बल्कि आपराधिक भी है” पर्यटन विभाग के ये सूत्र सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.

अनुच्छेद-370 के बाद क्या हुआ कि उस सब को पीछे छोड़ कर कश्मीर में पर्यटन से जुड़े लोग 2020 की तयारी में जुट गए थे. कश्मीर के पर्यटन विभाग ने देश के अलग-अलग राज्यों में यहां के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रोड शोज़ किए, भारत सरकार ने “बैक टु वैली” प्रोग्राम शुरू किया जिसमें फेडरेशन ऑफ इंडियन टुअर एंड ट्रेवल असोसिएशन को भी कश्मीर के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काम करने को कहा गया.

लेकिन इस सबका कोई फायदा होता दिखाई देता उससे पहले ही कोरोना वाइरस की महामारी ने पूरे विश्व के साथ-साथ कश्मीर के पर्यटन की भी कमर तोड़ कर रख दी.

मार्च में कश्मीर में एक बार फिर से लॉकडाउन लगा दिया गया. हालांकि इस बार वह इस मामले में अकेला नहीं था. इसके चलते पहले से ही तरह-तरह की मुसीबतों का मारा कश्मीर का पर्यटन उद्योग एक तरह से आईसीयू में चला गया. कोरोना वायरस के चलते अगर कोई कश्मीर आने के बारे में सोच भी रहा था तो उसकी यह योजना धरी की धरी रह गयी होगी.

जम्मू-कश्मीर टूरिज्म अलाइंस के फैज बख्शी ने सत्याग्रह को बताया कि हाल-फिलहाल में एक आरटीआई के जवाब में पर्यटन विभाग ने बताया है कि इस साल कश्मीर घाटी में अभी तक 17000 पर्यटक ही आए हैं, जबकि हर साल यहां नौ से 10 लाख पर्यटक आया करते थे.

“साल खत्म होने लगा है और सिर्फ 17000 पर्यटक आए हैं और मुझे यह भी नहीं पता कि पर्यटन विभाग किसको पर्यटक कह रहे हैं, क्यूंकि मेरी जानकारी के हिसाब से असली आंकड़ा इससे बहुत बहुत कम है” बख्शी कहते हैं.

कश्मीर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के अध्यक्ष, आशिक हुसैन, की मानें तो कम से कम 1,00,000 से ज़्यादा पर्यटन पर निर्भर लोग बेरोजगार हो गए हैं.

“हम पिछले 15 महीने से लॉकडाउन जैसी स्थिति में हैं और ऐसे में हर क्षेत्र प्रभावित हुआ है और मुझे लगता है इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित पर्यटन हुआ है. इस क्षेत्र को कम से कम तीन से चार हज़ार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है,” हुसैन ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

दुर्भाग्य की बात यह है कि पर्यटन क्षेत्र में हुआ नुकसान नुकसान ही राहता है और इसकी किसी भी तरीके से भरपाई नहीं हो सकती है. “दुकानदार अपनी चीज़ आज नहीं तो एक महीने बाद बेच लेगा, लेकिन अगर होटल का कमरा आज बुक नहीं हुआ तो कल की बुकिंग उसकी भरपाई नहीं कर सकती है” फैज बख्शी कहते हैं.

बख्शी कहते हैं कि आने वाले दिनों में हालात ठीक होने की उम्मीद भी नहीं है क्यूंकि महामारी के चलते उन्हें नहीं लगता है कि पर्यटन क्षेत्र में काफी समय तक कोई हलचल होने वाली है. “अब मैं ही अपने घर से सिर्फ तभी निकलता हूं जब बहुत ज़रूरी हो तो मैं दूसरों से कैसे ये उम्मीद करूं कि कोई और अपनी जान जोखिम में डाल कर कश्मीर आएगा,”

दुर्भाग्य यह है कि सिर्फ पर्यटकों का न आना ही इन लोगों की इकलौती परेशानी नहीं है. होटल, हाउसबोट और अन्य रहने के स्थानों को नियमित रख-रखाव की ज़रूरत भी पड़ती है, और वह खर्चा इन लोगों को अलग से उठाना पड़ रहा है, बिना कुछ कमाए.

“एक हाउसबोट या होटल के रख-रखाव में हर साल लाखों का खर्चा आता है. उधर बिजली का बिल, पानी का बिल और बाक़ी खर्चे भी लगातार चल रहे हैं. यह सब हम लोगों पर कहर ढा रहा है. नौबत यह आ गयी है कि हममें से कई लोगों के घर में खाने को कुछ नहीं है” हाउसबोट असोशिएशन के अध्यक्ष, हमीद वांगनू ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.

इस रिपोर्ट के दौरान सत्याग्रह की मुलाक़ात तनवीर (बदला हुआ नाम) से हुई जो गुलमार्ग के एक होटल में वेटर का काम किया करते थे. वे, अपना नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर, बताते हैं कि उन्हें होटल में महीने के सात हज़ार रुपये वेतन मिला करता था और फिर टिप वगैरह के भी पैसे मिल जाते थे.

“जब मैंने 370 हट जाने के कुछ महीने बाद अपने मालिक की बुरी हालत देखी तो मैंने खुद ही नौकरी छोड़ दी. में उसके बाद मजदूरी करने लग गया था, लेकिन कोरोना के चलते अब वो काम भी बोहत मुश्किल से मिलने लगा है. कुल मिला के हालत यह है कि कभी घर में खाना होता है कभी नहीं” इस व्यक्ति ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.

तनवीर आगे कहते हैं कि शुरू-शुरू में जब लोग उनकी मदद के लिए आगे आए तो उन्होंने किसी के आगे हाथ फैलाना और मदद लेना बिलकुल गवारा नहीं किया. “लेकिन अब मजबूरी है. होटल के मालिक को फोन किया था तो उन्होंने बताया कि वो भी बंद पड़ा हुआ है. अब शरम तो बोहत आती है लेकिन दोस्तों, रिश्तेदारों से मदद लेने के अलावा कोई और चारा भी नहीं बचा है.”

अब कुछ स्थानीय लोग पहलगाम या गुलमार्ग जाने लग गए हैं, लेकिन उनकी संख्या इतनी कम है कि उनके आने न आने से कोई फर्क भी नहीं पड़ता है.

“और ये लोग भी सिर्फ वीकेंड पर ही आते हैं. मेरे पास कभी कोई दोस्त यार आ जाता है रहने, तो मैं उन्हें होटल में बिठा के घर चला जाता हूं, क्यूंकि खाना अब हम लोग साथ लाने लग गए हैं और होटल में किसी की कोई ज़रूरत ही नहीं है” रियाज़ अहमद कहते हैं कि उन्हें बहुत तकलीफ होती है उन लोगों की हालत देख के जो उनके होटल में काम करते थे “लेकिन मेरे पास उन्हें वापिस काम पर रखने का कोई ऑप्शन ही नहीं है और न इसका कोई मतलब बनता है. अब कभी-कभी थोड़े पैसे भिजवा के मदद कर देता हूं, उससे ज़्यादा क्या कर सकता हूं.”

अब सवाल यह पैदा होता है कि जिस गड्ढे में अभी कश्मीर का पर्यटन क्षेत्र है, वह वहां से निकलेगा कैसे?

सत्याग्रह ने इस बारे में जितने लोगों से भी बात की सब निराश ही दिखे और सबका यही मानना था कि पिछले सालों की तरह यह स्थिति खुद से ठीक होने वाली नहीं है. ये लोग कहते हैं कि कश्मीर के पर्यटन क्षेत्र को भारत सरकार की तरफ से एक “सीरियस बेलआउट” की ज़रूरत है.

“सिर्फ उसी सूरत में यहां का पर्यटन क्षेत्र और इससे जुड़े लाखों लोग इस परिस्थिति में से निकल सकते हैं” केसीसीआई के आशिक हुसैन कहते हैं, “ज़रूरत इस बात की है कि हमारा इस समय हाथ थामा जाये और यह भारत सरकार को ही करना होगा.”

हुसैन बताते हैं कि हाल-फिलहाल में ही वित्त मंत्री, निर्मला सीतरमण, से हुई ई-मीटिंग में उन्हें बढ़ती बेरोजगारी के बारे में बताया गया है जिसके बाद एक कमेटी, जम्मू-कश्मीर में ‘बिज़नेस रिवाइवल’, के लिए बनाई गयी है. इसके चेयरमेन लेफ्टिनेंट गवर्नर होंगे.

“हमें उम्मीद है कि कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल आएगा, क्यूंकि अगर नहीं निकला तो हम लोग आर्थिक रूप से पूरे डूब जाएंगे” आशिक़ हुसैन कहते हैं.

हाउसबोट असोशिएशन के अध्यक्ष हमीद वांगनू, हुसैन की तरह आशावादी नहीं हैं. वे कहते हैं कि भारत सरकार को कश्मीर की आर्थिक स्थिति से कोई लेना-देना है ही नहीं. “मुझे लगता है यह सेंट्रल गवर्नमेंट की एक ही पॉलिसी है कि कश्मीरी लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर करके इस जगह को अपने हिसाब से चलाएं” वांगनू कहते हैं.

अब हुसैन ठीक हैं या वांगनू यह तो वक़्त ही बताएगा. लेकिन अभी के जो हालात कश्मीर में पर्यटन से जुड़े लोगों के हैं उनमें कोई भी आशा खोकर पूरी तरह निराश और हताश हो सकता है.