1-कोरोना वायरस से उपजी वैश्विक महामारी ने लगभग सभी क्षेत्रों और संस्थाओं को अपनी रीति-नीति को बदलने पर विवश कर दिया है. द प्रिंट हिंदी पर अपने इस लेख में सुमन मिश्रा का मानना है कि भारतीय संसद को भी इससे अछूता नहीं रहना चाहिए और वे सभी जरूरी बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जो किसी भी राष्ट्रीय संकट, आपदा या महामारी की स्थिति में उसे अपने जरूरी दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बना सकें.

कोविड के ‘न्यू नॉर्मल’ में क्या भारतीय संसद को भी वर्चुअल चलाने का समय आ गया है

2-साल 2020 संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के लिए काफी अहम साल साबित हुआ है. इस साल उसने मंगल ग्रह के लिए मिशन की शुरुआत की, इसराइल के साथ ऐतिहासिक शांति वार्ता पर हस्ताक्षर किए, कोविड-19 के संक्रमण के नियंत्रण में भी अहम कामयाबी हासिल की और अपने यहां तैयार जहाज भर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) ब्रिटेन को मुहैया कराए. उसके इस बढ़ते कद के कारणों की पड़ताल करता बीबीसी पर फ्रैंक गार्डनर का लेख.

यूएई खाड़ी देशों के बीच महाशक्ति के तौर पर कैसे उभरा

3-कोरोना संकट के दौरान देश में पहली बार बिहार में अक्टूबर-नवंबर में मतदान होगा. निर्वाचन आयोग ने बीते दिनों वहां मतदान के कार्यक्रम की घोषणा कर दी है. लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि बिहार वोटिंग के लिए कितना तैयार है. डॉयचे वेले हिंदी पर मनीष कुमार की रिपोर्ट.

कोरोना काल में वोटिंग के लिए कितना तैयार है बिहार

4-बीते हफ्ते हिंदी के मशहूर कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्मदिन था. द वायर हिंदी पर अपने इस लेख में अपूर्वानंद बता रहे हैं कि दिनकर एक ऐसे राष्ट्रवादी थे जो अपने राष्ट्र को नित नया हासिल करता था और कृतज्ञ होता था.

दिनकर: कोप से आकुल जनता का कवि

5-कोविड-19 वैश्विक महामारी को अब करीब 10 महीने हो चुके हैं. लेकिन हम अब तक अपने जीवन पर पड़ने वाले इसके तमाम प्रभावों को नहीं समझ पाए हैं. हम केवल स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे इसके तात्कालिक प्रभावों को ही ठीक से जान रहे हैं, क्योंकि हम प्रत्यक्ष रूप से इनसे प्रभावित होते हैं. लेकिन कोरोना वायरस हमारे भविष्य को भी बदलने वाला है. डाउन टू अर्थ पर रिचर्ड महापात्र की टिप्पणी.

वंचितों की पूरी पीढ़ी तैयार कर चुकी है महामारी