महीनों तक अपनी हेरोइन की लत से जूझने, और खून की उल्टियां करने, के बाद 23 साल के आमिर ने आखिरकार अपने घरवालों से बात करने की हिम्मत जुटा ली. इसके बाद उनके घरवाले तुरंत उसे लेकर श्रीनगर के इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हैल्थ एंड न्यूरोसाइन्सेज़ (इमहंस) में पहुंचे जहां अब उनका इलाज जारी है.
खुद तो अामिर अपनी इस लत को छोड़ने पर काफी डटे हुए हैं लेकिन डॉ ओबेद अहमद, जो अस्पताल के ड्रग डि-एडिक्शन वार्ड के इंचार्ज हैं, हमें बताते हैं कि हेरोइन की लत को छोड़ पाना आसान काम नहीं है.
“सालों बाद भी कुछ लोग फिर से नशा करने लग जाते हैं. उम्मीद हम यही करते हैं कि उनसे यह आदत छुड़ा दी जाये और कोशिश भी हम पूरी करते हैं, लेकिन ये नशा कुछ समय बाद नशा न रह कर बीमारी बन जाता है” डॉ ओबेद अहमद ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
खुशी की बात यह है कि कश्मीर में अब आमिर जैसे कई लोग इस नशे से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टरों के पास जा रहे हैं, लेकिन अफसोस यह है कि ये लोग इस प्रदेश में नशे के दलदल में फंसे हुए लोगों का सिर्फ एक ज़रा सा हिस्सा भर हैं.
“सिर्फ दस प्रतिशत लोग ही हमारे पास इलाज़ के लिए आते हैं, बाकी 90 प्रतिशत या तो शरम के मारे आ नहीं पाते या उन्हें इस बात की खबर ही नहीं है कि इस बीमारी का कोई इलाज भी हो सकता है” डॉ ओबेद, सत्याग्रह से हुई लंबी बातचीत में बताते हैं, “हेरोइन की लत हमारी अगली पीढ़ी को लेकर डूब रही है.”
कश्मीर घाटी में हेरोइन की लत के बारे में काफी कुछ लिखने को है और इस कड़ी में सबसे पहले यह बताना ज़रूरी है कि कश्मीर में ड्रग एडिक्शन की स्थिति आज किस स्तर पर है.
कश्मीर और ड्रग एडिक्शन
हमारे देश के किसी भी हिस्से में यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि कितने लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं. कोई भी इसके बारे में खुल कर बात नहीं करता है और कश्मीर घाटी भी इस मामले में अपवाद नहीं है. हालांकि आए दिन यहां इस बारे में अध्ययन होते रहते हैं जो कश्मीर में नशा करने वालों के अलग-अलग आंकड़े देते हैं.
1993 में हुए ऐसे ही एक अध्ययन में कश्मीर के एक जाने-माने मनोचिकित्सक, मुश्ताक़ मरग़ूब ने उस समय कश्मीर में नशा करने वालों की संख्या दो लाख से ज़्यादा बताई थी. तब उन्होने यह भी लिखा था कि इनमें से ज़्यादातर लोग चरस का नशा करते हैं और नशा करने वाले ज़्यादातर लोग पुरुष होते हैं.
2019 में फिर एक अध्ययन हुआ जो भारत सरकार की मिनिस्टरी ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज (एम्स) के नेशनल ड्रग डिपेडेन्स ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) ने पूरे देश में किया था.
इस अध्ययन के मुताबिक जम्मू-कश्मीर पूरे देश में नशा करने वालों की संख्या के हिसाब से पांचवे नंबर पर है. “कुल मिला कर जम्मू-कश्मीर में छह लाख से ज़्यादा लोग नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, जो यहां की आबादी का लगभग पांच प्रतिशत बैठता है” इस अध्ययन में लिखा गया है.
लेकिन जानकार कहते हैं कि सिर्फ कश्मीर घाटी में नशा करने वाले लोगों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है और इनका मानना यह है कि “एनडीडीटीसी” का यह सर्वे सिर्फ इस समस्या की ऊपरी सतह को ही छूता है.
“कश्मीर जैसी जगह पर जब आप किसी से उसके गांव वालों के सामने पूछें कि वो शराब पीता है या नहीं, या कोई और नशा करता है या नहीं, तो सौ प्रतिशत मामलों में जवाब न ही होना है. और ऐसा ही कुछ एनडीडीटीसी वालों ने किया था” डॉ मुजफ्फर ए खान, जो एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट होने के साथ-साथ कश्मीर में पुलिस द्वारा चलाये जाने वाले यूथ डेवलपमेंट एड रिहैबिलिटेशन सेंटर के डाइरेक्टर भी हैं, सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.
खान का मानना है कि सिर्फ कश्मीर घाटी में नशा करने वालों की संख्या एनडीडीटीसी के द्वारा दिये गए पूरे राज्य के आंकड़ों से कहीं ज़्यादा हैं. लेकिन आंकड़े परेशानी की बात नहीं हैं. परेशान करने वाली बात है, कश्मीर में हेरोइन का नशा करने वालों की बढ़ती संख्या.
डॉ मुजफ्फर ए खान की ही मानें तो कुछ साल पहले तक अगर उनके सेंटर पर नशा करने वाले 10 लोग इलाज के लिए आते थे तो उनमें ज़्यादा से ज़्यादा एक ही ऐसा व्यक्ति होता था जो हेरोइन का नशा करता था. “लेकिन अब हालत ये है कि दस में से नौ और कभी कभी पूरे 10 लोग हेरोइन लेने वाले आते हैं” खान का कहना है.
यही बात इमहंस के डॉ ओबेद अहमद ने भी सत्याग्रह से बात करते हुए कही. “आप देख सकते हैं, अभी हमारे यहां करीब 10 लोग भर्ती हैं और इनमें से सिर्फ एक शराब का आदी है, वो कश्मीरी नहीं है. बाकी सारे यहीं के हैं और हेरोइन का सेवन करते हैं” डॉ ओबेद कहते हैं.
और यह काफी परेशानी की बात है, क्यूंकि हेरोइन बाकी नशे जैसा नहीं है.
डॉक्टर खान कहते हैं कि पहले लोग चरस, गांजा, शराब, फुक्की, बूट पॉलिश या ऐसी ही अन्य चीजों का नशा करते थे जो जानलेवा भी नहीं होता था और उसको छुड़ाना भी काफी आसान होता था. “वहीं हेरोइन जानलेवा है, इससे सेहत पर काफी गहरा असर पड़ता है, ये बहुत महंगा है और इसको छुड़ा पामा लगभग नामुमकिन है.”
हेरोइन जानलेवा है और कश्मीर घाटी में लगातार जानें ले रहा है
पिछले साल दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में तीन युवक घर से रात भर गायब रहे. अगली सुबह किसी ने पुलिस को बताया कि वे एक पास के कब्रिस्तान में मरे पड़े हैं. लाशें उठाई गयीं और कुछ समय बाद पता चला कि वे तीनों हेरोइन के ओवरडोज़ की वजह से मर गए थे.
हालांकि कश्मीर में हेरोइन ओवरडोज़ से होने वाली मौतों का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है लेकिन ऊपरी सतह से भी इंसान चीजों का जायज़ा ले तो हालात काफी खराब दिखते हैं.
अनंतनाग जिले में पुलिस द्वारा चलाये जाने वाले ड्रग डि-एडिक्शन सेंटर की प्रमुख, डॉ मुदस्सिर अज़ीज़, ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा कि उनके सेंटर पर इलाज करने के लिए आने वाले लोगों में से पिछले तीन साल में करीब एक दर्जन लोगों की मौत हुई है.
“हम इन लोगों के घर वालों के संपर्क में रहते हैं तो हमें पता चल जाता है. नहीं तो ये लोग आम लोगों और रिश्तेदारों को यही बताते हैं कि मौत हार्ट अटैक से हुई है. लोगों को भी अंदाज़ा होता है लेकिन फिर परिवार की इज्ज़त बचाने के लिए कोई इस बारे में बात नहीं करता है” अज़ीज़ सत्याग्रह से बात करते हुए कहती हैं कि अक्सर मौत की वजह ओवरडोज़ ही होती है. और अगर ओवरडोज़ की वजह से मौत न भी हो तो स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी समस्याएं सामने आती हैं. जैसे आमिर की खून की उल्टियां या उनके बेड के बगल वाले बेड पर बैठे 17 साल के साकिब का बेजान पड़ा दाहिना हाथ.
“ये हाल ही में हुआ है. ओवरडोज़ की वजह से मेरा ये हाथ बेकार हो गया है. डॉक्टर कहते हैं ठीक हो जाएगा लेकिन मुझे नहीं लगता कुछ हो पाएगा” मायबस आवाज़ में साकिब ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.
हालांकि यह स्वास्थ संबन्धित परेशानियों का अंत नहीं है, क्यूंकि समस्या जितनी दिखती है उससे कहीं ज़्यादा गंभीर है.
डॉ मुजफ्फर ए खान कहते हैं कि पहले कुछ दिन इस पदार्थ को सिर्फ सूंघने के बाद ऐसा करने वाले लोग हेरोइन को इंजेक्शन के द्वारा लेना शुरू कर देते हैं “जो और भी खतरनाक है”.
कितना खतरनाक यह इमहंस के ही डॉ यासिर राथर सत्याग्रह को बताते हैं.
“हमने हाल ही में श्रीनगर और अनंतनाग ज़िले में एक सर्वे किया था जिसमें हमें पता चला कि हेरोइन का सेवन करने वालों में से 50 प्रतिशत लोग इसको इंजेक्ट करते हैं. इनमें से करीब 71 प्रतिशत लोग नीडल को एक दूसरे के साथ शेयर करते हैं और 69 प्रतिशत एक ही नीडल को बार-बार इस्तेमाल करते हैं” डॉ यासिर कहते हैं.
यह इन लोगों के हेपेटाइटिस-सी और एड्स जैसी बीमारियों की चपेट में आने की वजह बनता है.
“मैं कम से कम तीन ऐसे लोगों से मिला जो एचआईवी पॉज़िटिव हो गए हैं सिर्फ नीडल शेयर करने से और कई ऐसे लोगों से जिन्हें हेपेटाइटिस-सी हुआ है. मुझे लगता है कि कश्मीर एचआईवी और हेपेटाइटिस-सी के टाइम बॉम्ब पर बैठा हुआ है जो कभी भी फट सकता है” डॉ यासिर कहते हैं.
डॉक्टर राथर यह भी बताते हैं कि जिन हेरोइन का नशा करने वाले लोगों से वे मिले हैं उनमें से कम से कम 37 फीसदी ने कम से कम एक बार हेरोइन का ओवरडोज़ लिया है. इसका मतलब यह है कि वे मरते-मरते बचे हैं.
लेकिन हेरोइन के नशे का एक पहलू और है
इसका एक और पहलू है, पैसा. ढेर सारा पैसा. डॉ यासिर ने अपने एक सर्वे में बताया है कि सिर्फ श्रीनगर और अनंतनाग जिलों में ही एक दिन में करीब तीन करोड़ रूपये की हेरोइन खरीदी और ली जाती है.
“और ज़ाहिर है ये सारा पैसा हमारी पहले से खराब आर्थिक स्थिति को और नकारा बना रहा है. साथ ही साथ ये इन नशा करने वालों के परिवारों को भी सड़क पर ले आता है” डॉ यासिर कहते हैं.
उनकी बात का एक सीधा सा नमूना अंदर वार्ड में इलाज करा रहे, ज़ाहिद हैं जिनकी मां भी उनके साथ ही अस्पताल में उनके साथ हैं. ज़ाहिद के पिता जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुलाजिम थे और और अपनी ड्यूटी करते हुए मारे गए थे.
“उनकी मौत पर हमें कुछ पैसा मिला था जिससे मैं इसको पढ़ा रही थी. लेकिन इसने एक-एक पैसा हेरोइन में उड़ा दिया. मेरे पास और कोई सहारा नहीं है, एक ही औलाद है और वो यहां पड़ी हुई है” ज़ाहिद की मां हमें बताती हैं.
ज़ाहिद हालांकि अब पूरी तरह से यह निश्चय कर चुके हैं कि वे अब कोई नशा नहीं करेंगे. लेकिन जो लाखों रुपये उन्होंने इस लत के हवाले कर दिये उसकी वजह से उनका और उनकी मां का भविष्य बेहद मुश्किल में आ गया है. “मैं बहुत शर्मिंदा हूं, लेकिन मेरे हाथ में भी कुछ नहीं था. कुछ दो-तीन बार इसे लेने के बाद मैं इसका आदी हो चुका था और मुझे हेरोइन नहीं मिलती थी तो मैं पागल हो जाता था” ज़ाहिद रोते हुए सत्याग्रह को बताते हैं.
सिर्फ एक ग्राम हेरोइन 3000 से 5000 रूपये के बीच में बिकता है, और कभी कभार इससे भी महंगा.
“मैंने हाल-फिलहाल में, जब लॉकडाउन चल रहा था, एक ग्राम हेरोइन 12000 रूपये का खरीदा था” आमिर सत्याग्रह को बताते हैं, “मैं गाड़ियों का कारोबार करता हूं और मैंने अपना कमाया हुआ सारा पैसा हेरोइन में बर्बाद दिया.”
दक्षिण कश्मीर में एक एडिक्ट से जब सत्याग्रह ने बात की तो उन्होने बताया कि एक साल में उन्होने एक करोड़ से ऊपर की रकम हेरोइन पर फूंक दी है. “और ये सारा पैसा मैंने अपनी मेहनत से कमाया था.”
हेरोइन से जुड़े इस आर्थिक पहलू से जुड़ा एक और पहलू है - जिन लोगों के पास पैसा नहीं होता वे लोग अपराध का रुख करते हैं.
“ये लोग चोरी-चकारी करते हैं या फिर खुद भी यही जहर बेचने लग जाते हैं. उसी से पैसे कमाते हैं और उसी से अपनी लत पूरी करते हैं” कश्मीर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.
और यह इस जहर का एक और पहलू है
ये लोग पहले अपना पैसा बर्बाद करते हैं, पैसा न मिलने की सूरत में अपराध करते हैं लेकिन इसके साथ-साथ अपने घरों को कई तरीकों से तबाह करते हैं.
इमहंस के डि-एडिक्शन वार्ड में ही सत्याग्रह की मुलाक़ात श्रीनगर के रहने वाले, फारूक अहमद, से हुई. फारूक 36 साल के हैं और दो बेटियों के पिता भी. “मैंने अपने नशे की लत पूरी करने में अपने घर के बर्तन तक बेच डाले” उन्होने सत्याग्रह को बताया, “चलें बर्तन तो फिर भी मिल जाते लेकिन मैं अपनी बीवी को मारने लग गया था और अपने बच्चों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी पूरी नहीं कर रहा था. कल को मेरी बेटी कोई गलत काम करेगी तो मैं उसको रोक भी नहीं पाऊंगा” फ़रूक ने कहा.
उनकी बात सुनते ही ज़ाहिद की माता जी भी हमें बताती हैं कि कैसे उनका बेटा पैसा न मिलने की सूरत में उन्हें मारता-पीटता था और घर के सामान तोड़ा करता था.
लेकिन इस सबके के लिए डॉक्टर इन लोगों को जिम्मेदार नहीं ठहराते. “मैंने पहले भी कहा था कि ये बीमारी है. पहले शायद एक दो-बार इनको इस नशे से मज़ा आता हो लेकिन उसके बाद इसे करना इनकी मजबूरी बन जाती है. इनके बदन में ऐसा दर्द होता है, नशा न मिलने पर, कि इनके बस में कुछ नहीं रहता है,” डॉक्टर ओबेद कहते हैं.
आमिर से इसके बारे में पूछने पर वे हमें बताते हैं कि इतना दर्द होता है कि आत्महत्या करने का मन करता है, “ऐसे में कहां होश रहेगा कि हम अपराध कर रहे हैं या अपने घर वालों के साथ गलत कर रहे हैं.”
अब सवाल यह पैदा होता है की हेरोइन क्यूं और आ कहां से रही है और पुलिस क्या कर रही है?
क्यूं का जवाब मुदस्सिर अज़ीज़ देती हैं. वे कहती हैं कि हेरोइन से इंसान कुछ देर के लिए ही सही अपने सारे दुख-दर्द भूल जाता है. “और आजकल की पीढ़ी की परेशानियां बहुत हैं, खास तौर पर कश्मीर में जहां यहां का माहौल इस पीढ़ी की पहले से ही बढ़ी हुई मुश्किलों को ओर बढ़ा देता है.”
दूसरी ओर, मुदस्सिर बताती हैं कि यह जहर बेचने वाले कोई कसर नहीं छोड़ते. “पहले दो-तीन बार ये लोग इस जहर को मुफ्त में देते हैं और फिर लोग इसके आदी हो जाते हैं. उधर दोस्तों की संगत, पढ़ाई का दबाव, परिवारों में तनाव भी अपना काम कर रहे होते हैं.”
मुदस्सिर अज़ीज़ कहती हैं कि कश्मीर में हेरोइन लगभग खुलेआम बिक रहा है. “मुझे तो समझ में नहीं आता इतना आता कहां से है.”
पुलिस सूत्रों की मानें तो कश्मीर में सारी हेरोइन बाहर से आती है. “पिछले साल ही अमृतसर के अटारी बार्डर पर 500 किलो से ज़्यादा हेरोइन पकड़ी गयी थी जो लाहौर से आई थी. उसके बाद कश्मीर और पंजाब में कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन कोई नतीजा शायद अभी तक नहीं निकला है. और फिर जो पंजाब का मुख्य आरोपी था वो पुलिस कस्टडी में रहस्यमय तरीके से मर भी गया था” पुलिस के एक सूत्र सत्याग्रह को बताते हैं.
लेकिन वे यह नहीं बता पाते हैं कि इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच यह ज़हर कश्मीर कैसे पहुंच जाता है?
सत्याग्रह ने जितने भी लोगों, खास तौर पर नशा करने वालों से बात की उनमें से ज्यादातर ने इस मामले में पुलिस की तरफ उंगली उठाई. “मैं एक पुलिस अधिकारी के पास गया था और उनको मैंने सारे नाम दिये थे जो जो हमारे यहां हेरोइन बेचते थे. उन्होंने आश्वासन तो दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई” आमिर ने सत्याग्रह को बताया.
ज़ाहिद, जो खुद एक पुलिसकर्मी के बेटे हैं, ने भी यही बात बताई और कहा कि बिना पुलिस के सपोर्ट के यह काम कश्मीर में कोई भी नहीं कर सकता है.
लेकिन दक्षिण कश्मीर, जो हेरोइन के नशे से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाका है, के डेप्युटी इंस्पेक्टर जनरल (डीआईजी) अतुल गोयल, इस बात को नकारते हुए कहते हैं कि पुलिस अपना काम बखूबी कर रही है.
“हम आए दिन इस जहर को बेचने वालों को पकड़ लेते हैं और उनके खिलाफ केस भी दर्ज करते हैं” गोयल सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि जितना आप बता रहे हैं उतनी खराब हालत है लेकिन पुलिस अपना काम कर रही है.”
अब सवाल यह है कि क्या यह जहर बेचने वालों को पकड़ के उनके खिलाफ सिर्फ मुक़दमे चलाना, जिनमें वे आसानी से जमानत पर छूट भी जाते हैं, कश्मीर में हेरोइन रोकने के लिए काफी होगा?
जानकारों की सुनें तो यह एक तरह की आपात स्थिति है जिसमें इससे बहुत ज्यादा करने की जरूरत है. “इसीलिए पिछली साल सरकार ने एक ड्रग पॉलिसी बनाई थी और इस साल एंटी-नारकोटिक्स टास्क फोर्स भी. लेकिन ज़मीन पर कुछ होता दिखाई दे नहीं रहा है. हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं” हमारे एक पुलिस सूत्र सत्याग्रह को बताते हैं.
देखना यह बाकी रह गया है कि सरकार की आंख खुलने से पहले यह नशा पहले से ही मुश्किलों में डूबे कश्मीर के कितने और लोगों को बिलकुल ही ले डूबता है.
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