तमिलनाडु सरकार ने ऑनलाइन गेम्स खेलने और खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. बीते शुक्रवार को यहां के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इस आशय का एक अध्यादेश जारी किया. राजभवन ने अध्यादेश की जानकारी देते हुए बताया कि ऑनलाइन गेम्स की वजह से खास कर युवाओं के साथ धोखा-धड़ी होती है. कई लोग तो पैसा गंवाने के बाद आत्महत्या तक कर लेते हैं, इसलिए कोई ठोस कदम उठाना जरूरी था. पिछले कुछ महीनों के दौरान दक्षिण भारत में ऑनलाइन गेम्स में पैसे गंवाने के चलते आत्महत्या की कई घटनाएं सामने आई हैं. बीते महीने कोयंबटूर में एक शख्स के आत्महत्या करने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी ने कहा था कि वह इन पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है और इस मामले में जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा.
कानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक बीते हफ्ते तमिलनाडु सरकार ने राज्यपाल को एक प्रस्ताव भेजा था. इसमें कहा गया था कि राज्य सरकार अध्यादेश के जरिये ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े तीन कानूनों में संशोधन करना चाहती है. इसके बाद जारी किये गये अध्यादेश में कहा गया है कि इसका मकसद कंप्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रोनिक डिवाइस के उपयोग से साइबर स्पेस में बेटिंग (सट्टेबाजी) या जुआ खेलने पर प्रतिबंध लगाना है. तमिलनाडु में अब जिन लोगों को इस तरह के गेम खेलते हुए पाया जाएगा, उन्हें पांच हजार रुपये के जुर्माने और छह महीने तक के कारावास की सजा दी जा सकती है. जिन लोगों के पास गेमिंग हाउस हैं या जो इस तरह के गेम्स का आयोजन करते हैं, ऐसे लोगों के लिए दस हजार रुपये के जुर्माने और दो साल तक के कारावास का प्रावधान है. नए कानून में जुआ और सट्टेबाजी से जुड़े ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स के मालिकों को भी दंडित करने का प्रावधान है. यह पैसों के उन सभी इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन पर भी प्रतिबंध लगाता है जो सट्टेबाजी या गेमिंग ऐप्स में प्राइज मनी बांटने के लिए किये जाते हैं.
तमिलनाडु से पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी अपने यहां इस तरह के ऐप्स और वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. बीते हफ्ते कर्नाटक सरकार ने भी युवाओं पर गलत प्रभाव पड़ने और आत्महत्या की घटनाओं के चलते, जल्द ही ऑनलाइन गेम्स के खिलाफ कदम उठाने की बात कही है. कई राज्यों के हाईकोर्ट में भी इस तरह के गेम्स के खिलाफ याचिकाएं दायर की गयी हैं. हाल ही में दिल्ली, तेलंगाना और गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकरों से जुआ और सट्टेबाजी को बढ़ावा देने वाले ऑनलाइन गेम्स के खिलाफ कदम उठाने का आदेश दिया है.
भारत के कई राज्यों में ऑनलाइन गेम्स को बैन करने की मांग तब से उठी है, जब से क्रिकेट से जुड़े कुछ ऑनलाइन गेमिंग टूर्नामेंट ऐप्स प्रचलित हुए हैं. ये ऐप्स लोगों से करोंड़ों रुपए तक जीतने लेने का दावा करते हैं. इस समय पूर्व भारतीय कप्तान और बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली और सचिन तेंदुलकर जैसे चर्चित चेहरे इन ऐप्स के ब्रांड एम्बेस्डर हैं. बीते मार्च में देश भर में लगे लॉकडाउन के दौरान इन ऐप्स के यूजर्स की संख्या भारी बढ़ोत्तरी हुई जिससे इन्हें बड़ा आर्थिक लाभ मिला है. इसमें कितना पैसा है इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन स्पोर्ट्स गेमिंग ऐप ड्रीम11 आईपीएल का मुख्य प्रायोजक है. उसने टाटा और बाइजू जैसी दिग्गज कंपनियों को पछाड़ते हुए 222 करोड़ रुपए में यह अधिकार हासिल किया है. इसी तरह स्पोर्ट्स गेमिंग ऐप ‘मोबाइल प्रीमियर लीग’ (एमपीएल) अरबों रुपए की बोली लगाकर भारतीय क्रिकेट टीम की किट का मुख्य प्रायोजक बन गया गया है. ‘माई इलेवन सर्किल’ नाम का एक अन्य एप श्रीलंका प्रीमियर लीग का मुख्य प्रायोजक है. इस समय महेंद्र सिंह धोनी ड्रीम11, विराट कोहली एमपीएल और सौरव गांगुली ‘माई इलेवन सर्किल’ के ब्रांड एम्बेस्डर हैं.
सेलिब्रिटीज़ के इन चर्चित गेमिंग ऐप्स के एड करने के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं भी दायर की गयी हैं. एक याचिका में कोर्ट से विराट कोहली को तुरंत गिरफ्तार किये जाने तक की मांग की गयी है. इसमें कहा गया है कि कोहली और कई अन्य सेलिब्रिटी युवाओं को ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इन ऐप्स पर बड़ा इनाम और बोनस देने का वादा करके लोगों को सीधे-सीधे जुए की लत लगाई जा रही है, जो गैर कानूनी है क्योंकि देश में जुआ खेलने पर प्रतिबंध है. बीते हफ्ते ऐसी ही एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई बेंच ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, सौरव गांगुली, अभिनेता प्रकाश राज और अभिनेत्री तमन्ना भाटिया सहित कई अन्य सेलिब्रिटी को नोटिस जारी किये हैं. कोर्ट ने इस बारे में कानूनी राय भी मांगी है कि क्या सेलिब्रिटीज़ को ऐसे ब्रांड का समर्थन करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है जिनमें पैसों का ऑनलाइन लेन-देन किया जाता है.
क्या ऑनलाइन गेम्स को बैन करने से बेहतर विकल्प, इन्हें रेगुलेट करना है?
इस समय देश में गेमिंग या गैंबलिंग (जुआ) को रेगुलेट करने यानी नियमन की ताकत राज्यों के हाथ में है, लेकिन एक केंद्रीय कानून (गैंबलिंग एक्ट-1867) भी बनाया गया है, जो इन मामलों में एक मॉडल की तरह काम करता है. लगभग सभी राज्यों ने इसी कानून को पूरी तरह या फिर कुछ संशोधनों के साथ अपना रखा है. उदाहरण के लिए, सिक्किम में लाइसेंस देने की नीति है. इसके तहत राज्य भर में गेमिंग पार्लर की अनुमति दी गयी है. ये सभी पार्लर नेटवर्क के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इनमें उन खेलों की सूची भी दी गई है जिन्हें पार्लर में खेलकर पैसे कमाए जा सकते हैं. ऐसा ही कुछ नागालैंड में भी है, यहां शतरंज, सुडोकू, क्विज़, ब्रिज, पोकर, रम्मी, नीलामी गेम, सॉलिटेयर, वर्चुअल गोल्फ और वर्चुअल रेसिंग गेम्स आदि के लिए ऑनलाइन गेमिंग लाइसेंस प्रदान किए जाते हैं.
इन राज्यों को देखते हुए कई जानकार ऑनलाइन गेमिंग को बैन करने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. इनका कहना है कि ऑनलाइन गेम्स को बैन करने से बेहतर विकल्प, इन्हें रेगुलेट करना हो सकता है है. इनके मुताबिक गैंबलिंग एक सामाजिक वास्तविकता है, ऐसे में पूर्ण बैन लगाना गलत तरह की संस्कृति को बढ़ावा दे सकता है. जो लोग ऐसे गेम्स के आदी हो चुके हैं, वे पैसे कमाने के लिए और ज्यादा गलत तरीके अपना सकते हैं. जानी-मानी लॉ फर्म ट्राई लीगल कानूनी मामलों के विशेषज्ञ निखिल नरेंद्रन ब्लूमबर्ग से बातचीत में कहते हैं, ‘जब आप किसी चीज या सुविधा पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो इसका एक मतलब यह भी होता है कि आप स्वस्थ और नियंत्रित तरीके से उस सुविधा के उपयोग को बंद कर देते हैं. यह उन लोगों के लिए जोखिम भरा हो सकता है, जो उस सुविधा के उपयोग को लेकर बहुत अधिक संवेदनशील या आदी हो चुके हैं, ऐसे में (बैन लगाना) समस्या को बढ़ा सकता है. इसलिए, (ऐसे मामलों का) सही समाधान (रेगुलेट करने) नियमन में निहित है, न कि बैन करने में.’
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