क्रिसमस से पहले ब्रिटेन में हालात अचानक बिगड़ गए हैं. यह कोरोना वायरस के एक नए स्वरूप यानी स्ट्रेन की वजह से हुआ है. वीयूआई–202012/01 नाम के इस नए स्ट्रेन के चलते वहां कोविड-19 के साप्ताहिक आंकड़ों में 60 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के मुताबिक यह नया स्ट्रेन ज्यादा तेजी से फैल रहा है. उधर, देश के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैंकॉक ने इस स्ट्रेन को बेकाबू बताया है जो महामारी के स्तर पर संक्रमण फैला रहा है. ब्रिटिश सरकार ने इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन को जानकारी दे दी है. देश में अब तक की सबसे कड़ी पाबंदियां भी लागू कर दी गई हैं.

कोरोना वायरस के प्रकोप ने दुनिया भर में अब तक 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को चपेट में लिया है. 20 लाख से ज्यादा लोग इसके चलते मौत के शिकार हो गए हैं. अमेरिका, भारत, ब्राजील और ब्रिटेन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से हैं. ब्रिटेन में कोरोना वायरस की वजह से एक लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं. कोरोना वायरस के इस नए स्ट्रेन की भयावहता को देखते हुए जर्मनी, इटली, फ्रांस और नीदरलैंड्स सहित यूरोप के कई देशों ने ब्रिटेन से आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया है. यूरोपीय संघ ने भी एक बैठक बुलाकर हालात के मद्देनजर इस वायरस के खिलाफ रणनीति बदलने पर चर्चा की. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी नई दिल्ली में एक आपात बैठक की थी जिसके बाद ब्रिटेन पर यात्रा प्रतिबंध लगाने का फैसला हुआ. इसके साथ ही हाल में ब्रिटेन से आए लोगों की भी जांच की जा रही है.

कोरोना वायरस फेफड़ों पर धावा बोलता है. इसके सबसे सामान्य लक्षण बुखार, सूखी खांसी और थकान हैं. इस वायरस के संक्रमण के कारण बदन दर्द, गले में खराश, सिर दर्द, डायरिया और शरीर पर चकत्ते जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं. जानकारों के मुताबिक कुछ खाने पर स्वाद महसूस न होना और किसी चीज की गंध का अहसास न होना भी कोरोना वायरस का लक्षण हो सकता है. कई लोग सांस में तकलीफ या सीने में दर्द की शिकायत भी करते हैं. कोरोना वायरस के शरीर में घुसने के बाद संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत में औसतन पांच दिन का वक्त लग सकता है. लेकिन कुछ लोगों में यह समय कम भी हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता है.

डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण के शिकार अधिकतर लोग आराम करने और पैरासिटामॉल जैसी दवा लेने से ठीक हो सकते हैं. अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत तब होती है जब किसी शख्स को सांस लेने में दिक्कत आनी शुरू हो जाए. इसके बाद मरीज के फेफड़ों की जांच कर डॉक्टर इस बात का पता लगाते हैं कि संक्रमण कितना बढ़ चुका है और मरीज को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत है या नहीं. गंभीर हालत वाले लोगों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है. यानी उन्हें सीधे फेफड़ों तक ऑक्सीजन की अधिक सप्लाई पहुंचाई जाती है. बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से जूझ रहे लोगों या फिर शुगर और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के लिए कोरोना वायरस ज्यादा घातक हो सकता है, इसलिए उन्हें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

वायरसों और इंसानों का हमेशा से एक-दूसरे से नाता रहा है. वायरसों का रूप बदलना यानी म्यूटेशन भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. यह उनका निरंतर विकसित होती शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम को गच्चा देने का तरीका है. कोरोना वायरस को ही लें तो एक साल पहले चीन के वुहान में पाए जाने के बाद से इसमें हर महीने करीब दो म्यूटेशन हो रहे हैं. लेकिन अक्सर इनसे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ता. ब्रिटेन में मिले नए स्ट्रेन ने वैज्ञानिकों की चिंता इसलिए बढ़ा दी है क्योंकि इसके स्पाइक प्रोटीन में बहुत से बदलाव देखे गए हैं. इस प्रोटीन की मदद से ही कोरोना वायरस शरीर की कोशिकाओं पर हमला करता है. नए म्यूटेशन ने वायरस के लिए शरीर में दाखिल होना ज्यादा आसान बना दिया है. ब्रिटेन में अब जो नए संक्रमण हो रहे हैं उनमें से दो तिहाई कोरोना वायरस के इसी नए स्ट्रेन की वजह से हो रहे हैं.

स्पाइक प्रोटीन में हो रहे इस बदलाव ने इस वायरस के खिलाफ विकसित की गई वैक्सीन को लेकर भी शंकाएं पैदा कर दी हैं. इसकी वजह यह है कि सबसे ज्यादा उम्मीदें फाइजर, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित कई गई वैक्सीनों से हैं और ये सभी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को इन स्पाइक प्रोटीनों पर हमला करने के लिए ही प्रशिक्षित करती हैं. इसलिए ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैंकॉक सहित कई मान रहे हैं कि हो सकता है ये वैक्सीनें इस नए वायरस के खिलाफ प्रभावी न हों.

वैक्सीन कैसे काम करती है?

असल में वैक्सीन में वायरस का ही निष्क्रिय स्वरूप या फिर उसका वह खास प्रोटीन होता है जिसकी मदद से वायरस हमारे शरीर की किसी कोशिका से जुड़कर उसे संक्रमित करता है. इसलिए जब यह वैक्सीन हमें लगाई जाती है तो वायरस या उससे जुड़े प्रोटीन को पहचानते ही शरीर का रोग प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम सचेत हो जाता है और इसकी प्रतिक्रिया में एंटीबॉडीज यानी वायरस से लड़ने वाले खास प्रोटीन बना देता है. नतीजा यह होता है कि जब असल वायरस हम पर हमला करता है तो शरीर में पहले से ही मौजूद ये एंटीबॉडीज उसे घेर कर उसका खात्मा कर देते हैं.

कोरोना वायरस के खिलाफ बनीं एमआरएनए वैक्सीनें अब तक प्रचलित वैक्सीनों से इस मायने में अलग हैं कि इनमें कोरोना वायरस के जेनेटिक मटीरियल (आनुवंशिक सामग्री) का एक खास हिस्सा होता है. इसे मैसेंजर आरएनए या एमआरएनए कहते हैं. शरीर में दाखिल होने पर यह एमआरएनए हमारी ही कोशिकाओं को वायरस वाला वह प्रोटीन बनाने का निर्देश देने लगता है जिसकी मदद से असली कोरोना वायरस हम पर हमला बोलता है. नतीजतन हमारा इम्यून सिस्टम सचेत हो जाता है और एंटीबॉडीज बनाने लगता है.

घबराहट बेबुनियाद

हालांकि एक वर्ग का यह भी मानना है कि कोरोना वायरस के इस नए स्ट्रेन को लेकर अचानक से बहुत घबराना ठीक नहीं है. नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में मॉलिक्यूलर वायरोलॉजी के प्रोफेसर जॉनाथन बॉल कहते हैं, ‘जब तक कि हम वायरस में आए बदलाव और उसके प्रभाव का अध्ययन नहीं कर लेते तब तक कोई भी दावा करना जल्दबाजी होगी.’ कुछ दूसरे जानकार भी मानते हैं कि अभी इसके कोई स्पष्ट सबूत नहीं है कि वैक्सीन इस वायरस पर असरदार साबित नहीं होगी. उनके मुताबिक अगर ऐसा हो भी तो भी चिंता की बात नहीं है क्योंकि इन नई वैक्सीनों की तकनीक इस तरह की है कि इन्हें नए स्ट्रेन के हिसाब से काफी तेज़ी से बदला जा सकता है.