जनवरी के पहले हफ्ते में व्हाट्सएप की नई यूजर पॉलिसी इस शर्त के साथ सामने थी कि अगर आठ फरवरी तक आपने इसे स्वीकार नहीं किया तो आगे आप इस मैसेजिंग एप का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. वैसे तो, यह कोई नई या बड़ी बात नहीं है क्योंकि आम तौर पर आपको किसी भी एप या वेबसाइट का इस्तेमाल करने के लिए उसकी यूजर पॉलिसी को स्वीकार करना ही पड़ता है. लेकिन व्हाट्सएप की इस नई यूजर पॉलिसी में कुछ ऐसी बातें शामिल थीं जो ज्यादा तकनीकी ज्ञान न रखने वाले यूजर को भी चिंता में डाल देने वाली थीं.
नई प़ॉलिसी से जुड़ी शुरूआती चर्चाओं से यह धारणा बनी कि व्हाट्सएप यूजर के डेटा को पूरी तरह एक्सेस करने और थर्ड पार्टी कंपनियों के साथ इसे शेयर करने की अनुमति चाहता है. स्वाभाविक है कि यह बात प्राइवेसी के अधिकार को चोट पहुंचाने वाली थी जिसके बाद हंगामा मचना लाज़िमी था. तब से व्हाट्सएप को लगातार न सिर्फ ब्लॉग और विज्ञापनों के जरिए सफाई देनी पड़ रही है बल्कि नई यूजर पॉलिसी को लागू करने की तारीख को भी आठ फरवरी से बढ़ाकर 15 मई तक के लिए टाल देना पड़ा है. लेकिन इससे पहले ही, प्राइवेसी को लेकर इतना शोर मचा कि लाखों लोग व्हाट्सएप को छोड़ सिग्नल, टेलीग्राम और ऐसे ही अन्य मैसेजिंग एप्स की तरफ बढ़ गए. अगर आप भी इन लाखों लोगों के साथ होने की सोच रहे हैं तो इन पांच बिंदुओं पर व्हाट्सएप के दो सबसे मजबूत विकल्पों - सिग्नल और टेलीग्राम - की स्थिति जान लीजिए:
इन्क्रिप्शन
सिग्नल मैसेजिंग एप पूरी तरह से यूजर की प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. इस पर होने वाला हर तरह का कम्युनिकेशन – चैट, ऑडियो, वीडियो कॉलिंग – पूरी तरह सुरक्षित यानी एंड-टू-एंड इन्क्रिप्टेड होता है. इसे दूसरी तरह से कहें तो सिग्नल पर होने वाले संवाद को खुद सिग्नल भी देख, सुन या पढ़ नहीं सकता है. टेलीग्राम की बात करें तो यहां पर एंड-टू-एंड इन्क्रिप्शन को वैकल्पिक रखा गया है. डिफॉल्ट सेटिंग पर चैट और ऑडियो-वीडियो कॉलिंग, यूजर्स और टेलीग्राम सर्वर के बीच इन्क्रिप्टेड होती हैं. इसका मतलब है कि इस संवाद को यूजर्स के अलावा टेलीग्राम भी देख-पढ़ सकता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस पर कोई बातचीत पूरी तरह गोपनीय नहीं रखी जा सकती है. अगर यूजर एंड-टू-एंड इनक्रिप्शन चाहता है तो वह सीक्रेट चैट का विकल्प चुन सकता है. सिग्नल और टेलीग्राम में होने वाली चैट में एक बड़ा अंतर यह है कि सिग्नल पर निजी चैट के साथ-साथ जहां ग्रुप चैट भी एंड-टू-एंड इन्क्रिप्टेड होती है, वहीं टेलीग्राम के मामले में ऐसा नहीं है. यानी अगर आप कई लोगों के साथ कोई सीक्रेट बातचीत करना चाहते हैं तो टेलीग्राम पर यह संभव नहीं है.
यूजर डेटा
सिग्नल, यूजर के मोबाइल नंबर के अलावा उससे जुड़ी औऱ कोई जानकारी अपने सर्वर पर नहीं सेव करता है. इससे यूजर की प्राइवेसी तो बनी रहती है लेकिन दूसरे मैसेंजर एप्स पर मिलने वाले कुछ बेसिक फीचर्स नहीं मिल पाते हैं. उदाहरण के तौर पर सिग्नल पर आपस में चैट करने वाले यूजर्स को यह तक नहीं पता रहता है कि जिससे वे चैट कर रहे हैं वह ऑनलाइन है भी या नहीं. या फिर वह आखिरी बार कब ऑनलाइन हुआ था. टेलीग्राम पर आएं तो यह यूजर का नाम, फोन नंबर, कॉन्टैक्ट लिस्ट और यूजर आईडी जैसी कुछ और जानकारियां सेव करता है. इस वजह से टेलीग्राम पर ऑनलाइन और लास्ट सीन देखा जा सकता है. इन दोनों से अलग व्हाट्सएप आपकी इससे कई गुना ज्यादा जानकारियां इकट्ठी कर सकता है.
फीचर्स
दोनों ही एप्स में अच्छी और कॉमन बात यह है कि इन पर डिसपीयरिंग मैसेज की सेटिंग दी गई है. यानी भविष्य में अपनी चैट लीक होने से बचाने के लिए यूजर पांच सेकंड से लेकर सात दिन तक का समय निर्धारित कर सकते हैं जिसके बाद चैट अपने-आप गायब हो जाती है. कुछ और फीचर्स की बात करें तो टेलीग्राम के ग्रुप्स पर जहां दो लाख लोगों को जोड़ा जा सकता है, वहीं सिग्नल पर बनने वाले समूहों में अधिकतम एक हजार यूजर्स ही शामिल हो सकते हैं. इसी तरह टेलीग्राम पर दो जीबी तक की बड़ी फाइलें भी ट्रांसफर की जा सकती हैं जबकि सिग्नल में इसे 100 एमबी तक सीमित रखा गया है. चैट बॉक्स की बात करें तो टेलीग्राम का यूजर इंटरफेस काफी रंगीन-चमकदार और इमेज या एनीमेटेड स्टीकर पैक्स से भरा हुआ है. इसके अलावा, इस पर कस्टमाइजेबल बैकग्राउंड की सुविधा भी है. दूसरी तरफ सिग्नल पर केवल रंग बदलने का फीचर और कुछ चुनिंदा स्टीकर्स ही उपलब्ध हैं. हालांकि इस साल के शुरूआती हफ्ते में सिग्नल ने बैकग्राउंड, स्टीकर्स और चैट सेटिंग जैसे कुछ और फीचर्स में बदलाव लाए जाने की बात कही थी जो इस पर जल्दी ही उपलब्ध हो सकते हैं.
बैकअप
सिग्नल एप पर होने वाली सारी बातचीत आपकी डिवाइस पर सेव होती है जहां से आप जब चाहें इसे डिलीट कर सकते हैं. मोबाइल फोन के साथ-साथ सिग्नल को लैपटॉप पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. लैपटॉप पर इसका इस्तेमाल करने के लिए इसके विंडोज या मैक वर्ज़न को इंस्टॉल करने की ज़रूरत होती है. इसके बाद भी यह काम तभी करेगा जब आपके मोबाइल फोन पर सिग्नल एप हो. सिग्नल के साथ एक खास बात यह भी है कि लैपटॉप पर लॉगइन करने के बाद यूजर अपनी पुरानी बातचीत को यहां पर एक्सेस नहीं कर सकता है. लेकिन लॉगइन करने के बाद होने वाली सारी बातचीत मोबाइल और लैपटॉप, दोनों डिवाइसों पर मौजूद होगी. टेलीग्राम के भी डेस्कटॉप एप्स उपलब्ध हैं. लेकिन इसे बिना उनके, ब्राउजर पर ही, ठीक व्हाट्सएप की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है. दोनों ही सूरतों में यूजर के मोबाइल फोन पर टेलीग्राम होना ज़रूरी है. बैकअप पर आएं तो टेलीग्राम मैसेंजर यूजर को क्लाउड बैकअप उपलब्ध करवाता है और वेब टेलीग्राम का इस्तेमाल करते हुए यूजर अपना सारा डेटा लैपटॉप पर भी एक्सेस कर सकता है. इस फीचर का फायदा यह होता है कि अगर कभी आपका फोन खो जाए या खराब हो जाए तो सारा पुराना डेटा एक्सेस किया जा सकता है. लेकिन फिलहाल सिग्नल के साथ ऐसा हो पाना संभव नहीं है, खास कर तब जब उसे एक ही डिवाइस पर इसे इस्तेमाल किया जा रहा हो.
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लगभग दो साल पुराने सिग्नल एप का मालिकाना हक अमेरिका स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था सिग्नल टेक्नॉलजी फाउंडेशन के पास है. इसके संस्थापकों का कहना है कि संस्था का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों की निजता का खयाल रखते हुए उन्हें एक सुरक्षित कम्युनिकेशन मीडियम उपलब्ध करवाना है. बीते दिनों सिग्नल की तरफ से आने वाले बयानों में लगातार कहा गया है कि कंपनी अभी लंबे समय तक विज्ञापन या किसी और तरीके से पैसे कमाने के विकल्पों पर विचार नहीं करने वाली है. फाउंडेशन के मुताबिक सिग्नल पूरी तरह से समाजसेवी संस्थाओं और यूजर्स से मिलने वाली आर्थिक मदद पर ही निर्भर है. उधर, टेलीग्राम इस मामले में ठीक उल्टी दिशा में जाता दिखाई देता है. बीते दिसंबर में अपनी आठवीं वर्षगांठ पर टेलीग्राम के संस्थापकों में से एक पावेल ड्यूरॉफ ने अपने टेलीग्राम चैनल पर यह जानकारी दी थी कि एप पर विज्ञापन दिखाए जाने के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है. इसके अलावा, उनका कहना यह भी था कि इसे सस्टेनेबल बनाए रखने के लिए साल 2021 में टेलीग्राम पर कुछ प्रीमियम स्टीकर और फीचर्स लाए जाने की योजना भी है.
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