जनवरी के अंत में शुरू होने वाले संसद सत्र से संसद की कैंटीन को कोई खाद्य सब्सिडी नहीं मिलेगी. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बीते हफ्ते नए कदम की घोषणा करते हुए कहा, ‘संसद कैंटीन में खाद्य सब्सिडी पूरी तरह से हटा दी गई है.’ बिरला ने 29 जनवरी से शुरू होने वाले संसद के आगामी बजट सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए यह घोषणा की. साल 2019 के शीतकालीन सत्र के दौरान बिड़ला ने इसके लिए सुझाव दिया था जिसके बाद सांसदों ने सर्वसम्मति से संसद की कैंटीन को किसी भी तरह की सब्सिडी का लाभ नहीं दिये जाने का फैसला किया था.

इससे सरकारी खजाने को कितना फायदा होगा?

लोकसभा स्पीकर ने सब्सिडी हटाने की घोषणा करते यह नहीं बताया कि सब्सिडी हटने से सरकार को कितना फायदा होगा. हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने पीटीआई के हवाले से लिखा है कि लोकसभा सचिवालय को कैंटीन से सब्सिडी हटने से तकरीबन आठ करोड़ रुपए का फायदा हो सकता है. इस साल से संसद की कैंटीन की जिम्मेदारी दिल्ली का अशोका होटल चलाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडिया टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईटीडीसी) संभालेगी. इससे पहले बीते 52 सालों से उत्तरी रेलवे यह जिम्मेदारी संभाल रही थी. रेलवे के अधिकारियों ने बीते साल जानकारी देते हुए बताया था कि संसद के खानपान से उसे सालाना 15 से 18 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है. अधिकारियों ने यह भी बताया कि उत्तर रेलवे को संसद की कैंटीन चलाने में जो भी अतिरिक्त खर्च आता है उसका भुगतान वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है.

आरटीआई से कीमतों का खुलासा हुआ

साल 2015 में आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल के एक आवेदन से संसद की कैंटीन में खाने की कीमतों का पता चला था. इस आवेदन के जवाब में बताया गया कि कैंटीन को उस समय हर साल करीब 14 करोड़ रुपए की सब्सिडी मिला करती थी. इस जवाब से यह भी पता लगा कि कैंटीन में करीब 120 तरह के आइटम बिकते हैं जिनमें से फिश करी 25, मटन कटलेट 18, उबली सब्जियां पांच, मटन करी विद बोन 20, चिकन करी 29, मसाला डोसा छह, चिकन बिरयानी 50, शाकाहारी थाली 18, मांसाहारी थाली 33, थ्री कोर्स मील 61 और चाय दो रुपए में मिलती है. आरटीआई के जरिये यह भी पता लगा कि सरकार खाने की इन चीजों पर 60 से 80 फीसदी तक की सब्सिडी देती है.

सब्सिडी के खिलाफ आवाज क्यों उठी?

जिस समय संसद की कैंटीन में दी जाने वाली सब्सिडी की खबर सामने आयी, उसी समय मोदी सरकार देश के लोगों से एलपीजी गैस सिलिंडर पर मिल रही सब्सिडी छोड़ने की अपील कर रही थी. इसी वजह से 2015-16 में इस मामले ने तूल पकड़ लिया. संसद में विपक्षी पार्टियों ने भी इस सब्सिडी पर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई. डेक्कन क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त कांग्रेस नेता पीसी चाको का कहना था कि सांसद संसाधन संपन्न होते हैं और उनके लिए खाना इतना सस्ता नहीं होना चाहिए. लोकसभा में बीजू जनता दल के सदस्य वैजयंत जय पांडा ने इस मुद्दे पर लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उन्होंने कहा था, ‘जब सरकार आर्थिक रूप से मजबूत लोगों से एलपीजी सब्सिडी वापस करने के लिए कह रही है तो ऐसे में सांसदों से भी कैंटीन में सब्सिडी की वजह से मिल रही सस्ते खाने की सुविधा वापस ले लेनी चाहिए. इस तरह के कदम से लोगों के बीच अच्छा संदेश जाएगा और सांसदों पर उनका भरोसा भी बढ़ेगा.’

संसद की कैंटीन से जुड़े फैसले संसद की खाद्य प्रबंधन समिति लेती है. इस संयुक्त समिति में कुल 15 सदस्य होते हैं, 10 लोकसभा से और 5 राज्यसभा से. कैंटीन चलाने वाली एजेंसी को ​दी जाने वाली सब्सिडी पर विचार करना, खाने की दरों में संशोधन, उत्कृष्ट कैंटीन सेवाओं के प्रावधान और अन्य मुद्दों पर फैसला ​लेने की जिम्मेदारी इस समिति की ही होती है. उस समय उठे इस विवाद को रोकने के लिए 2016 से कैंटीन के खाने की कीमतें बढ़ाने का फैसला लिया गया. तब संसद की खाद्य प्रबंधन संबंधी समिति का कहना था कि कैंटीन को घाटा हो रहा था और इसलिए अब कैंटीन को ‘नो प्रॉफ़िट, नो लॉस’ पर चलाने का फैसला किया गया है. इस फैसले से सरकार से कैंटीन को मिलने वाली सब्सिडी कम जरूर हुई लेकिन खत्म नहीं हुई. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस फैसले के बाद संसद की कैंटीन में चिकन बिरयानी 80, चिकन करी 40, शाकाहारी थाली 30, मांसाहारी थाली 60, थ्री कोर्स मील 90 और चाय 10 रुपए में मिलने लगी.

क्या कैंटीन को मिलने वाली पूरी सब्सिडी सांसदों के खाने पर ही खर्च की जाती है?

सरकार से मिलने वाली पूरी सब्सिडी का पैसा केवल सांसदों को कम रेट पर खाना देने पर ही खर्च नहीं होता है. 2015 में आरटीई के जरिये मिली जानकारी के मुताबिक सब्सिडी का लगभग 80 फीसदी हिस्सा कैंटीन के स्टाफ के वेतन पर खर्च होता है. यानी कि उस समय दी जाने वाली कुल 14 करोड़ रुपए की सब्सिडी में से करीब 11-12 करोड़ रुपए स्टाफ की सैलरी पर ही खर्च हो जाता था. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक आरटीआई से यह भी पता लगा कि संसद सत्र के दौरान और सत्र न होने पर कैंटीन में होने वाली खाने की बिक्री लगभग बराबर ही होती है. 2015 में जिन दिनों संसद का सत्र नहीं चल रहा था, तब हर दिन तकरीबन दो लाख दस हजार रुपए का खाना ऑर्डर होता था. जबकि संसद सत्र के दौरान यह आंकड़ा तकरीबन दो लाख आठ हजार रुपए था. इसका मतलब साफ़ है कि सांसदों से ज्यादा सब्सिडी का लाभ संसद का स्टाफ, याहां आने वालेे लोगों और पत्रकारों को मिलता है. यहीं से यह भी साफ़ हो जाता है कि संसद की कैंटीन से सब्सिडी के पूरी तरह हटने का नुकसान अच्छी आर्थिक स्थिति वाले सांसदों से ज्यादा संसद के स्टाफ और यहां आने पत्रकारों आदि को होने वाला है.

खाने के नए रेट

लोकसभा सचिवालय ने खाने की नई रेट लिस्ट भी जारी की है जिसमें 3 रुपये से लेकर 700 रुपये तक का खाने का सामान शामिल है. संसदीय कैंटीन की नई रेट लिस्ट 29 जनवरी से चलने वाले बजट सत्र से पहले लागू होगी. यानी इस सत्र में सांसदों को नई रेट लिस्ट के आधार पर खाना मिलेगा. संसद भवन की कैंटीन में नई रेट लिस्ट के मुताबिक सबसे सस्ती रोटी होगी जिसकी कीमत 3 रुपये होगी. वहीं, सबसे महंगी चीज नॉनवेज बफे लंच होगा जिसकी कीमत 700 रुपये होगी. इसके अलावा वेज बफे लंच की कीमत 500 रखी गई है, जो वेज खाने में सबसे महंगी है. नई रेट लिस्ट के मुताबिक चिकन बिरयानी, चिकन कटलेट, चिकन फ्राई और वेज थाली का रेट 100 रुपये निर्धारित किया गया है. वहीं, चिकन करी के लिए 75 रुपये चुकाने होंगे. इसके अलावा मटन बिरयानी और मटन कटलेट के लिए 150 रुपये और मटन करी के लिए 125 रुपये का भुगतान करना होगा. नई रेट लिस्ट में आलू बोंडा, ब्रेड पकौड़ा, दही और समोसे का रेट 10 रुपये रखा गया है.