कोरोना वायरस के प्रकोप ने दुनिया भर में अब तक 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को चपेट में लिया है. 20 लाख से ज्यादा लोग इसके चलते मौत के शिकार हो गए हैं. अमेरिका, भारत और ब्राजील इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से हैं.

कोरोना वायरस फेफड़ों पर धावा बोलता है. इसके सबसे सामान्य लक्षण बुखार, सूखी खांसी और थकान हैं. इस वायरस के संक्रमण के कारण बदन दर्द, गले में खराश, सिर दर्द, डायरिया और शरीर पर चकत्ते जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं. जानकारों के मुताबिक कुछ खाने पर स्वाद महसूस न होना और किसी चीज की गंध का अहसास न होना भी कोरोना वायरस का लक्षण हो सकता है. कई लोग सांस में तकलीफ या सीने में दर्द की शिकायत भी करते हैं. कोरोना वायरस के शरीर में घुसने के बाद संक्रमण के लक्षणों की शुरुआत में औसतन पांच दिन का वक्त लग सकता है. लेकिन कुछ लोगों में यह समय कम भी हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता है.

डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण के शिकार अधिकतर लोग आराम करने और पैरासिटामॉल जैसी दवा लेने से ठीक हो सकते हैं. अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत तब होती है जब किसी शख्स को सांस लेने में दिक्कत आनी शुरू हो जाए. इसके बाद मरीज के फेफड़ों की जांच कर डॉक्टर इस बात का पता लगाते हैं कि संक्रमण कितना बढ़ चुका है और मरीज को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत है या नहीं. गंभीर हालत वाले लोगों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है. यानी उन्हें सीधे फेफड़ों तक ऑक्सीजन की अधिक सप्लाई पहुंचाई जाती है. बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से जूझ रहे लोगों या फिर शुगर और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के लिए कोरोना वायरस ज्यादा घातक हो सकता है, इसलिए उन्हें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

कोरोना वायरस से लड़ने का दूसरा तरीका इसका टीका यानी वैक्सीन है. असल में वैक्सीन में वायरस का ही निष्क्रिय स्वरूप या फिर उसका वह खास प्रोटीन होता है जिसकी मदद से वायरस हमारे शरीर की किसी कोशिका से जुड़कर उसे संक्रमित करता है. इसलिए जब यह वैक्सीन हमें लगाई जाती है तो वायरस या उससे जुड़े प्रोटीन को पहचानते ही शरीर का रोग प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम सचेत हो जाता है और इसकी प्रतिक्रिया में एंटीबॉडीज यानी वायरस से लड़ने वाले खास प्रोटीन बना देता है. नतीजा यह होता है कि जब असल वायरस हम पर हमला करता है तो शरीर में पहले से ही मौजूद ये एंटीबॉडीज उसे घेर कर उसका खात्मा कर देते हैं. भारत में कोरोना वायरस की दो वैक्सीनों - कोवीशील्ड और कोवैक्सिन - को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिल गई है. हालांकि इन पर विवाद भी हो रहे हैं.

इन वैक्सीनों को किन संस्थानों ने बनाया है?

कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया है. भारत में पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) इसका मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर है. इस वैक्सीन को भारत से पहले ब्रिटेन, अर्जेंटीना व अल-सल्वाडोर में आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है. अगर, कोवैक्सिन की बात करें तो यह पूर्ण रूप से स्वदेशी वैक्सीन है. इसे हैदराबाद की फार्मा कंपनी भारत बायोटेक ने सरकारी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के साथ मिलकर बनाया है.

ये कैसे विकसित हुईं?

कोवीशील्ड वैक्सीन एडिनोवायरस की क्षमता को कमजोर कर के बनाई गई है ताकि लोग इससे संक्रमित न हों. एडिनोवायरस जानवरों विशेषकर चिम्पांजी में सर्दी-खांसी जैसे लक्षण पैदा करता है. भारत बायटेक की ‘कोवैक्सिन’ के निर्माण में मृत कोरोना वायरस का इस्तेमाल किया गया है. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि यह लोगों को नुकसान न पहुंचाए. दोनों वैक्सीन शरीर में प्रवेश करने के बाद कोरोना संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडीज़ पैदा करती हैं.

ट्रॉयल और नतीजे

ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजेआई) के मुताबिक ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका ने दुनिया भर में 23,745 लोगों पर कोवीशील्ड का ट्रायल किया है. ट्रायल के नतीजों के अनुसार वैक्सीन को औसतन 70.4 प्रतिशत लोगों पर प्रभावी पाया गया. भारत में तीसरे चरण में इसका ट्रायल 1,600 लोगों पर किया गया है जिसके नतीजे अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं. हालांकि, डीसीजीआई का कहना है कि भारत में हुए ट्रायल के नतीजे अंतरराष्ट्रीय ट्रायल से मिलते-जुलते ही हैं. वहीं स्वदेशी कोवैक्सिन के पहले और दूसरे चरण का ट्रायल 800 लोगों पर किया गया था. इनमें वैक्सीन का इम्यून रिस्पॉन्स अच्छा पाया गया. तीसरे चरण के तहत 25,800 लोगों पर ट्रायल शुरू किया गया है, जिसमें अभी तक 22,500 लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है. तीसरे ट्रायल के नतीजे अभी जारी नहीं हुए हैं. हालांकि, डीसीजीआई के मुताबिक यह वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है. कोवीशील्ड और कोवैक्सिन दोनों ही दो खुराक वाले टीके हैं जिन्हें कुछ हफ्तों के अंतर से दिया जाता है.

टीकों की कीमत

सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला का एक साक्षात्कार में कहना है कि कोवीशील्ड की पहली 100 मिलियन (दस करोड़) खुराकें भारत सरकार को दी जाएंगी. सरकार को कोवीशील्ड वैक्सीन की एक खुराक 200 रुपये में दी जाएगी. इसके बाद जब सरकार वैक्सीन को बाजार में बेचने की इजाजत देगी तो यह आम लोगों के लिए एक हजार रुपये में उपलब्ध होगी. भारत बायोटेक के वैक्सीन की कीमत अभी तक बताई नहीं गई है. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ समय पहले भारत बायोटेक के एमडी डॉक्टर कृष्ण एला ने कहा था कि इस वैक्सीन की कीमत पानी की बोतल से भी कम होगी. तभी से कयास लगाए जा रहे हैं कि कोवैक्सिन की कीमत 100 रुपये से कम हो सकती है.

विवाद की वजह

भारत में बीते रविवार को कोवीशील्ड और कोवैक्सिन को अनुमति दिए जाने के बाद कई जानकारों और नेताओं ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. इनका कहना है कि दोनों वैक्सीनों के तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे जारी किए बिना ही इन्हें अनुमति कैसे दे दी गई. किसी वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा लोग शामिल होते हैं. इसके परिणामों के आधार पर पता लगाया जाता है कि कोई दवा कितने प्रतिशत लोगों पर असर कर रही है. भारत में कोवीशील्ड के तीसरे चरण का ट्रायल 1,600 लोगों पर किया गया है, लेकिन ट्रायल के आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर हुए ट्रायल के नतीजों के चलते इस पर कम सवाल उठाये जा रहे हैं. लेकिन, कोवैक्सिन को लेकर विवाद ज्यादा है क्योंकि इसका पहला और दूसरा ट्रायल महज 800 लोगों पर ही किया गया था. ऐसे में 25 हजार से ज्यादा लोगों पर किये जा रहे तीसरे ट्रायल के नतीजे काफी मायने रखते हैं, जिन्हें अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.