हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) ने राज्यों की सेहत से जुड़े आंकड़े जारी किये. इन आंकड़ों में गुजरात और पश्चिम बंगाल की स्थिति ने लोगों को थोड़ा हैरान किया है. गुजरात बंगाल से काफी ज्यादा अमीर राज्य है, आरबीआई के आंकड़ों मुताबिक यहां की प्रति व्यक्ति शुद्ध आय पश्चिम बंगाल की तुलना में तकरीबन दोगुनी है. लेकिन, एनएफएचएस के सर्वेक्षण के मुताबिक पश्चिम बंगाल के बच्चे, अमीर राज्य गुजरात से कहीं ज्यादा स्वस्थ और सुरक्षित हैं. इस सर्वेक्षण में देश के सभी राज्यों के चार लाख परिवारों को शामिल किया गया था.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने प्रति एक हजार बच्चों पर मृत्यु दर के आंकड़े जारी किये हैं. इनके मुताबिक गुजरात में नवजात बच्चों की मृत्यु दर 21.8 और बंगाल में 15.5 है. शिशु मृत्यु दर यानी जन्म के एक साल के भीतर मरने वाले बच्चों के मामले में यह अंतर और भी बड़ा हो जाता है. गुजरात में शिशु मृत्यु दर 31.2 और बंगाल में 22 है. इसी तरह जन्म के पांच साल के भीतर मरने वाले बच्चों के मामले में भी गुजरात आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम बंगाल से काफी आगे है. गुजरात में यह आंकड़ा 37.6 जबकि बंगाल में 25.4 है. इकोनॉमिक और पॉलिटिकल वीकली की एक रिपोर्ट के मुताबिक दो दशक पहले यानी 1994-96 के दौरान दोनों राज्यों की शिशु मृत्यु दर में महज पांच का ही अंतर था (जो अब नौ है). उस दौरान बंगाल में शिशु मृत्यु दर 58 और गुजरात में 63 थी. आंकड़ों को देखें तो पिछले दो दशक के दौरान ही गुजरात और बंगाल के बीच अमीरी और गरीबी का अंतर भी बढ़ा है.

एनएफएचएस के हालिया सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पोषण के मामले में भी गुजरात के बच्चे पश्चिम बंगाल के बच्चों से काफी पीछे हैं. पांच साल तक के बच्चों पर किये गए सर्वेक्षण के मुताबिक गुजरात में 39 फीसदी बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से कम है, पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा 33.8 है. इसके अलावा गुजरात में 25.1 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 20.3 फीसदी बच्चे ऐसे मिले जिनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से जितना होना चाहिए उतना नहीं है. एनएफएचएस के सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 10.6 फीसदी बच्चे गुजरात में ऐसे भी हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से बहुत ही ज्यादा कम है, जबकि बंगाल में इस तरह के बच्चे सात फीसदी ही हैं.

गुजरात और बंगाल के बच्चों की सेहत में इतने बड़े अंतर के पीछे कई वजहे हैं. पहला कारण दोनों राज्यों की स्वास्थ्य सेवाएं हैं. बंगाल के सरकारी अस्पतालों में देश के किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले ज्यादा बेड हैं. यहां प्रति एक हजार लोगों पर 2.25 सरकारी बेड हैं. पूर्वोत्तर का बहुत छोटा सा राज्य सिक्किम ही इस मामले में बंगाल से आगे हैं जहां यह आंकड़ा 2.34 है. अगर गुजरात से तुलना करें तो बंगाल में प्रति हजार लोगों पर सरकारी बेड की उपलब्धता का यह आंकड़ा उससे आठ गुना ज्यादा है. सरकारी आईसीयू बेड की संख्या भी पश्चिम बंगाल में गुजरात से चार गुना अधिक है.
जानकार पोषण के मामले में बंगाल के बच्चों की अच्छी स्थिति के पीछे की वजह यहां की मजबूत पंचायत प्रणाली को मानते हैं. पश्चिम बंगाल में प्रमुख पार्टियां ही पंचायत चुनाव लड़ती हैं, इस वजह से राज्य सरकार और अन्य पार्टियां भी पंचायत प्रणाली पर विशेष ध्यान देती हैं. इसके चलते यहां पंचायतों को अच्छा खासा फंड दिया जाता है. बंगाल के ग्रामीण इलाकों में कार्यरत डॉक्टर प्रबीर चटर्जी स्क्रॉल डॉट इन से बातचीत में मजबूत पंचायत प्रणाली, महिला सशक्तिकरण और बेहतर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को राज्य में बच्चों की बेहतर स्थिति के प्रमुख कारण बताते हैं. वे कहते हैं, ‘बंगाल में पीडीएस की उपलब्ध्ता बहुत अच्छी है, इसी तरह प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति भी… पंचायत प्रणाली के रूप में स्थानीय सरकार भी बहुत मजबूत है.’ दूसरी तरफ जानकार गुजरात में पीडीएस सिस्टम में कमियां बताते हैं जिसकी वजह इसका निजी क्षेत्र पर निर्भर होना भी है. जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज कहते हैं, ‘एक समय गुजरात में पीडीएस प्रणाली और स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत थीं, लेकिन सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसी चीजों पर जोर देने के कारण यह मजबूती बरकरार नहीं रह पायी.’ उनके मुताबिक जब ऐसा होता है तो अक्सर योजनाओं के पीछे का उद्देश्य कल्याणकारी होने के बजाय आर्थिक लाभ कमाना हो जाता है.
पश्चिम बंगाल में गरीबी ज्यादा है लेकिन इसके बावजूद वहां गरीब बच्चों को खाना उपलब्ध हो जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यहां अनाज की बंपर पैदावार होती है, और अधिकांश ग्रामीण अपने खाने भर को अनाज बड़े आसानी से पैदा कर लेते हैं. इसकी वजह पश्चिम बंगाल का उर्वर ज़मीन के मामले में बहुत भाग्यशाली होना है. यहां पर खेती के लिए पानी भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है क्योंकि ये राज्य गंगा के मैदानी इलाक़ों में पड़ता है. भारत के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक पश्चिम बंगाल देश के सबसे ज़्यादा अनाज उत्पादक राज्यों में से एक है. वो रबी और ख़रीफ़ दोनों ही फ़सलों के उत्पादन में बहुत आगे है. 2016-17 में पश्चिम बंगाल देश का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य था. पश्चिम बंगाल में उस वित्तीय वर्ष में 1.59 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था. इसी तरह वित्तीय वर्ष 2017-18 में 1.69 करोड़ टन अनाज के उत्पादन के साथ पश्चिम बंगाल अनाज उत्पादन के मामले में कई दक्षिण, पश्चिम और उत्तरी पूर्वी भारत के राज्यों से आगे था. जानकारों की मानें तो ऐसे में राज्य के हर व्यक्ति तक अनाज पहुंचना आसान हो जाता है.
वहीं अगर गुजरात की बात करें तो वह अनाज की खेती के मामले में बहुत पीछे नजर आता है. इसका कारण राज्य की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि का मरुस्थलीकरण अथवा क्षरण का शिकार होना है. गुजरात राजस्थान के बाद एक ऐसा राज्य है जिसकी जमीन तेजी से बंजर होती जा रही है. इस समय गुजरात में 196 लाख हेक्टेअर ज़मीन में से सिर्फ 98 लाख हेक्टेअर ज़मीन पर ही खेती की जाती है. इसी हफ्ते एक कृषि योजना के शुभारंभ के मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कहा कि राज्य में शुष्क, अर्ध शुष्क क्षेत्र और तटीय खारे क्षेत्र अधिक होने के कारण कृषि विकास एक चुनौती के बड़ी समान है और राज्य सरकार इस चुनौती से निपटने के हर सम्भव प्रयास कर रही है. राज्य में बंजर ज़मीन, बारिश कम होने और सिंचाई के लिए पानी की कमी होने चलते यहां के किसान फल, सब्जियां और मेडिसिनल प्लांट जैसी फसलें उगाने लगे हैं. राज्य के तकरीबन 4.46 लाख हेक्टेअर क्षेत्र में फलों की खेती की जाती है. राज्य सरकार किसानों को संकट से बचाने के मकसद से मेडिसिनल प्लांट की खेती को बढ़ावा दे रही है इसके लिए कई तरह की योजनाओं की शुरुआत भी हुई है. बहरहाल, कुछ जानकारों का मानना है कि गुजरात में अनाज की पैदावार बेहद कम होने के चलते वहां के ग्रामीण इलाकों के गरीब बच्चों को पश्चिम बंगाल की तुलना में अनाज की उपलब्धता कम हो पाती है. और इस वजह से भी उनका शारीरिक विकास सही तरह से नहीं हो पाता है.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.