कुछ दिन पहले मैंने सत्याग्रह की यह वेबसाइट खोली तो दो लेखों की और मेरा ध्यान गया, लेकिन मैंने लिंक पर क्लिक करके उन्हें पढ़ा नहीं, बस इस समाचार कथा के बारे में सोचा और इस पर काम करने लगा.
लेख कौन से थे, सवाल यह है? “जब 5-जी आएगा तो क्या हो जाएगा?” और “क्या 5-6 साल के बच्चों को कोडिंग सिखाने की बात करना सही है?”
ये हेडलाइंस पढ़ते ही मेरे दिमाग में दो दिन पहले घटी एक घटना घूमने लगी. मैं उस दिन अनंतनाग के लाल चौक इलाक़े में स्थित अपने एक दोस्त बुरहान काज़ी की दुकान में था. उसी दौरान एक व्यक्ति नया मोबाइल फोन लेने बुरहान की दुकान पर आया.
बुरहान काज़ी, ने तपाक से एक नया मोबाइल फोन निकाला और कहा, “ये बिलकुल लेटेस्ट है, 5-जी वाला फोन”. यह सुन कर वह ग्राहक मुस्कुराया और दूसरे सस्ते फोन्स के बारे में पूछताछ करने लगा. बाद में वह फोन लिये बिना ही दुकान से चला गया. इस बात पर न मुझे हैरानी हुई न बुरहान काज़ी को.
अभी तक शायद आपकी समझ में आ गया होगा कि मैं कश्मीर में पिछले एक साल से ज़्यादा चल रहे मोबाइल-इंटरनेट बैन की बात करने वाला हूं. यह भी समझ गए होंगे कि ऊपर के दो लेख देख कर मैंने पढ़े क्यूं नहीं. और यह भी कि वह ग्राहक मुस्कुराया क्यों और बुरहान की दुकान से ऐसे ही चला क्यूं गया.
कश्मीर में 4 अगस्त 2019 को, अनुच्छेद-370 हटाये जाने से एक दिन पहले, हर तरह का संचार बंद कर दिया गया था जो कई महीनों तक बंद ही रहा. फिर धीरे-धीरे संचार के माध्यम खुलते गए और जनवरी 2020 में 2-जी इंटरनेट सेवाएं भी खोल दी गयीं. तब से अभी तक कश्मीर घाटी में सिर्फ 2-जी इंटरनेट ही चल रहा है, तो ज़ाहिर है 5-जी बातें सुन कर कश्मीर के लोगों को थोड़ा सा अजीब ज़रूर लगता है.
हालांकि कश्मीर में इंटरनेट बंद होना कोई नई बात नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि 2012 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में 251 बार इंटरनेट सेवाएं स्थगित हुई हैं. ‘इंटरनेट शटडाउंस’ के मुताबिक पूरे भारत वर्ष में इस बीच कुल मिला कर 465 बार इंटरनेट बंद हुआ है. वेबसाइट के मुताबिक “2020 में 69 बार, 2019 में 55 बार और 2018 में 65 बार जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद हुआ है.”
यहां दो चीज़ें बताना ज़रूरी है. एक यह कि अगर इंटरनेट लगातार महीनों भी बंद रहे, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हो रहा है, यह वेबसाइट उसे बस एक बार गिनती है. और दूसरा यह कि यह वेबसाइट 4-जी की जगह 2-जी दिये जाने को इंटरनेट बंद होना नहीं मानती है. हालांकि कश्मीर के लोग शायद इस बात को न मानें, क्योंकि आज कल के समय में 2-जी इंटरनेट मिलना, इंटरनेट न मिलने के बराबर ही है.
अब ज़ाहिर है कि इतने समय से सिर्फ 2-जी इंटरनेट मिलने की वजह से कश्मीर में लोगों का काफी नुकसान हो रहा है. तो हम यहां पर कोशिश करेंगे कि विस्तार से कुछ ऐसी चीज़ें बताएं जहां नुकसान सबसे ज़्यादा हो रहा है.
और सबसे अहम बात जो जेहन में आती है वह है बच्चों की पढ़ाई.
इंटरनेट आज-कल के समय में पढ़ाई के लिए वैसे ही काफी महत्वपूर्ण हो चुका है. ऊपर से मार्च 2020 से, जब से भारत में कोरोना वाइरस के आगमन के बाद स्कूल पूरी तरह बंद हुए हैं, सारी पढ़ाई ऑनलाइन ही हो रही है.
स्कूल वाले ऑनलाइन क्लास लेते हैं और बच्चे जितना हो सकता है, उसी से पढ़ते-लिखते हैं. लेकिन कश्मीर में यह ऑनलाइन पढ़ाई भी अभिभावकों के लिए सरदर्द बन गई हैं. “2-जी इंटरनेट पर कौन सी ऑनलाइन क्लास हो सकती है, यह बता दें आप मुझे. मैं रोज़ देखता रहता हूं अपने नौ साल के बेटे को जूझते हुए, कभी टीचर की आवाज़ कट जाती है और कभी खुद से ज़ूम एप्लीकेशन बंद हो जाती है,” श्रीनगर के गगरीबल इलाक़े में रहने वाले सज्जाद अहमद भट ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
सत्याग्रह ने जब उनसे पूछा कि वे अपने बच्चों को कोडिंग सिखाते हैं कि नहीं, तो सज्जाद ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. “मैं आपसे यह कह रहा हूं कि इनकी पढ़ाई का कोई ठिकाना नहीं है, और आप कोडिंग की बात कर रहे हैं” वे हंसते हुए कहते हैं.
और यह सिर्फ सज्जाद का हाल नहीं है. कश्मीर घाटी में इस समय हर बच्चे के मां-बाप परेशान हैं.
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में रहने वाले गौहर कहते हैं कि वे अपने बच्चों को कहीं और भेज देते, “लेकिन ये लोग अभी छोटे हैं. मुझे ये बात खाये जाती है इनकी उम्र अभी सीखने की थी और अभी पीछे रह गए तो फिर ज़िंदगी भर पीछे ही रह जाएंगे.”
बच्चों और उनके माता-पिता की यह दुविधा समझते हुए, जम्मू-कश्मीर प्राइवेट स्कूल्स असोशिएशन ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में 4-जी बहाल किए जाने के लिए एक याचिका दर्ज की है.
“जम्मू-कश्मीर के बच्चों के दो साल ज़ाया हो गए हैं, पहले 5 अगस्त 2019 के बाद महीनों स्कूल बंद रहने से और अब कोरोना वाइरस से. और ऐसे में 2-जी मोबाइल इंटरनेट पर ऑनलाइन क्लास लेना असंभव हो गया है,” इस याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के स्टेट बोर्ड ने बच्चों की मुश्किलों को समझते हुए हाल ही में उनकी परीक्षाओं के लिए 40 प्रतिशत सिलैबस कम कर दिया था. “लेकिन जहां पर बात प्रतियोगी परीक्षाओं की आती है तो वहां ऐसी कोई रियायत नहीं दी जाती है.”
अभी सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है लेकिन ऐसा होने पर भी ज्यादा कुछ होने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि पिछले साल सितंबर में केन्द्रीय सरकार ने संसद को यह बताया था कि पढ़ाई के लिए 2-जी सेवाएं काफी हैं.
“भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर की सरकार के ई-लर्निंग ऐप्स इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और 2-जी इंटरनेट पर डाउनलोड किये जा सकते हैं,” गृह मंत्रालय के मिनिस्टर ऑफ स्टेट, जीके रेड्डी, ने संसद को बताया था.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में यह इस तरह की पहली याचिका नहीं है.
खैर पढ़ाई में शायद मां-बाप थोड़ी मेहनत करके भरपाई कर दें.
लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो नुकसान हो रहा है, उसकी शायद ही कोई भरपाई हो सकती हो.
हाल ही में देश भर में कोरोना वाइरस के टीके लगना शुरू हुए हैं. लेकिन कश्मीर पूरे देश में शायद इकलौती ऐसी जगह है जहां इस अभियान में भी इंटरनेट न होने के चलते बड़ी मुश्किलें पैदा हो रही हैं.
सरकारी सूत्रों ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा कि कोविन (CoWIN, कोविड वैक्सीन इंटेलीजेंस वर्क) मोबाइल एप्लीकेशन, जिस पर दिये गए और दिये जाने वाले टीकों की जानकारी दर्ज की जाती है, 2-जी इंटरनेट पर बहुत मुश्किल से चलती है.
“बड़े अस्पतालों में तो फिर भी ब्रॉडबैंड की सुविधा होती है, लेकिन गांव-देहात और छोटे कस्बों में एक टीके का विवरण जमा करने में घंटों लग रहे हैं. और ऐसे में जितने टीके एक दिन में लगने चाहिए थे उसके आधे भी नहीं लग पा रहे हैं,” श्रीनगर में एक स्वास्थ्य अधिकारी ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
डॉ हारून क़ाज़ी जो जम्मू-कश्मीर के इम्यूनाइजेशन ऑफिसर हैं, कहते हैं कि शुरू के दिनों में कोविन में कुछ तकनीकी खराबियाँ थीं जो अब ठीक होने लगी हैं. “बाकी इंटरनेट की गति पर कोई टिप्पणी करना मेरा काम नहीं है” सत्याग्रह से बात करते हुए डॉक्टर काज़ी कहते हैं.
लेकिन सिर्फ वैक्सीन ही एक परेशानी नहीं है. स्वास्थ्य से जुड़ी और कई सारी चीज़ें हैं जो प्रभावित हुई हैं. जैसे कश्मीर के डॉक्टरों का आपस में नेटवर्क.
“हमारे कई सारे व्हाट्सएप ग्रुप हैं जहां हम वो चीज़ें अन्य डॉक्टरों की राय लेने के लिए डालते हैं जहां हमें कोई शंका लगती है. इन ग्रुप्स में दुनिया के अलग-अलग कोनों में रह रहे कश्मीरी डॉक्टर हैं. लेकिन अब जब तक एक ईसीजी की फोटो या किसी और रिपोर्ट की फोटो 2-जी के सहारे भेज पाते हैं तब तक शायद मरीज के लिए काफी देर हो जाती है,” अनंतनाग जिले के दूरदराज़ इलाक़े - सीर हमदान - के एक सरकारी हस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर सत्याग्रह को बताते हैं.
वे कहते हैं कि इन ग्रुप्स में मौजूद विशेषज्ञों की मदद से अभी तक सैंकड़ों लोगों की जानें बची हैं.
“सरकारी हस्पतालों में बैठे हम लोगों के पास न तो उतना अनुभव होता है और न उतनी अच्छी तकनीक कि हम भांप सकें कि मरीज को कहीं हार्ट अटैक तो नहीं आया है, या फिर कोई ऐसी बीमारी जिसका जल्द इलाज होना ज़रूरी होता है. दुनिया भर के डॉक्टरों से जुड़े रहने का फायदा ये होता था कि वो लोग रिपोर्ट देख के डायग्नोस कर लेते थे. 2-जी के चलते वो सुविधा भी हाथ से चली गयी है,” वे डॉक्टर सत्याग्रह से बात करते हुए कहते हैं.
उधर कोरोना वाइरस के चलते जहां दुनिया भर के लोगों ने सक्रिय रहने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया, वहीं कश्मीरी लोग ऐसा नहीं कर पाये क्योंकि 2-जी पर ज़्यादातर वेबसाइट बहुत मुश्किल से ही काम कर पाती हैं.
इधर अगस्त 2019 के बाद महीनों बंद रहने पर कश्मीर के व्यापारियों का भी हजारों करोड़ों का नुकसान हुआ है, और इंटरनेट सही होने की उम्मीद न के बराबर है तो यह नुकसान अभी भी होता दिखाई दे रहा है.
जैसे शुरू में हमने बुरहान काज़ी की बात की थी. उनके जैसे हजारों मोबाइल फोन बेचने वाले लोगों का कारोबार ठप है, क्योंकि आजकल बिना इंटरनेट के मोबाइल फोन एक डब्बे जैसा है जिस पर आप सिर्फ कॉल कर सकते हैं या फोटो खींच और देख सकते हैं.
“यह पहला ग्राहक नहीं है जो हंस के चला गया. ऐसे दिन में 10 आते हैं और हम भी हंस देते हैं बस. हमें भी पता है कि बिना तेज़ इंटरनेट के ये स्मार्ट फोन किसी काम के नहीं हैं,” बुरहान काज़ी ने सत्याग्रह को बताया.
और उस पर दुविधा यह, वे कहते हैं, कि पूरा भारत 5-जी की तैयारी कर रहा है और धीरे-धीरे सारे नए फोन 5-जी होते चले जा रहे हैं, “जो फिलहाल तो कश्मीर में किसी काम के नहीं हैं.”
ऐसे ही और भी कारोबारी हैं जिनका काम सिर्फ इंटरनेट से ही चलता है, जैसे अनंतनाग के रहने वाले आदिल सथू, जो पिछले तीन साल से नुकसान उठा रहे हैं. ट्रिपशॉपी.कॉम के संस्थापक और सीईओ आदिल सथू ने लाखों रुपये खर्च करके एक मोबाइल एप्लिकेशन तैयार कराई है, जो एयर टिकिट बुक करने के काम आती है.
“लेकिन मैं इसको मार्केट में अभी डालना ही नहीं चाहता, क्योंकि 2-3 बार मैंने कोशिश की थी तो लोगों ने कहा कि ये 2-जी पर या तो डाउनलोड नहीं होती या ठीक से नहीं चलती है,” आदिल ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
5 अगस्त 2019 के बाद आदिल ट्रिपशॉपी.कॉम नाम की जो ट्रैवल अजेंसी चलाते हैं, उसके ज्यादातर स्टाफ को लेकर वे दिल्ली चले गए थे. “वहीं से काम किया था, सिर्फ मार्केट में रहने के लिए वरना वहां मैंने कुछ कमाया नहीं, बस अपना नाम बचा रहा था,” आदिल कहते हैं.
दिल्ली से वापस आने के बाद आदिल ने अपने दफ्तर में तो ब्रॉडबैंड लगवा लिया जिससे उनका थोड़ा-बहुत काम चल जाता है, लेकिन उनकी मोबाइल एप्लीकेशन जिस पर उन्होंने अपनी काफी जमा-पूंजी खर्च दी, वह कहीं से कामयाब होती नहीं दिख रही है.
आदिल सथू की ही तरह, कुछ साल पहले फैसल बांडे ने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ कर कश्मीर में एक “डिजिटल एडवर्टाइजिंग” एजेंसी खोल ली थी. शुरू में उनका काम काफी अच्छा चल रहा था. लेकिन अब इंटरनेट स्लो होने की वजह से उनका काम पहले के मुकाबले काफी कम या न के बराबर हो गया है.
“अब कश्मीरी क्लाइंट यह कहता है कि फायदा क्या है फेसबुक या ट्विटर जैसी जगहों पर विज्ञापन डालने का, क्योंकि लोग देखेंगे भी तो ठीक से नहीं देख पाएंगे. अब मुझे लगता है मैंने नौकरी छोड़ कर गलती कर दी,” फैसल बांडे ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा.
फैसल ने धीरे-धीरे करके अपनी एड एजेंसी की एक टीम बनाई थी और अब काम न आने के चलते उन्हें एक-एक करके लोगों को निकालना पड़ रहा है. “दुख इस बात का बहुत है, लेकिन क्या करें काम भी तो नहीं है,” वे उदास स्वर में कहते हैं.
फैसल और आदिल की तरह हजारों लोग जो अपना काम इंटरनेट के सहारे करते थे, अब परेशान हैं. और जिनका इंटरनेट से कोई लेना देना नहीं है, वे जीएसटी भरने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं.
“है तो जीएसटी भरना पांच मिनट का काम लेकिन हमें पूरा दिन निकाल कर कहीं ब्रॉडबैंड देख के वहीं भरना पड़ता है और वहां पैसे दो वो अलग,” श्रीनगर में रेडीमेड कपड़ों का व्यापार करने वाले, मुजफ्फर अहमद सत्याग्रह को बताते हैं.
इतनी परेशानियों के बाद भी कहीं कोई अंत नज़र नहीं आ रहा है
सरकार ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर के दो जिलों में 4-जी इंटरनेट की सुविधा बहाल की है - जम्मू के इलाके में ऊधमपुर और कश्मीर घाटी में गांधरबल. लोगों में इसके बाद उम्मीद तो जगी थी, लेकिन अभी तक बाकी जिलों में यह सेवा बहाल करने के बारे में कोई निर्णय नहीं आया है.
सिर्फ हर महीने एक नोटिस आता है कि जम्मू-कश्मीर में हाई स्पीड इंटरनेट पर रोक एक और महीने तक बढ़ा दी गयी है. सरकार कहती है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर रोक देश की संप्रभुता और अखंडता बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.
“और ऐसी बातों पर हंसी भी आती है और रोना भी. हंसी इसलिए कि जो अखंडता 4-जी इंटरनेट से भंग हो जाये वह कैसी अखंडता है और रोना इसलिए कि भारत के अन्य राज्यों में लोग इस चीज़ पर यकीन करके बैठे हुए हैं,” श्रीनगर में स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार ने सत्याग्रह से बात करते हुए कहा. उन्होंने अपना नाम प्रकाशित करने की अनुमति सत्याग्रह को नहीं दी.
इधर कश्मीर में मुख्य धारा के राजनेता, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला भी शामिल हैं, भारत सरकार से लगातार गुहार लगा रहे हैं कि कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी को हटाया जाये. लेकिन भारत सरकार टस से मस होती नहीं दिख रही है. उसके सामने दुनिया की और तमाम परेशानियां हैं जिनके सामने ऐसा लगता है कि उसे कश्मीर के बारे में फिलहाल सोचने की फुरसत नहीं है.
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