राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किये जाने के बाद यदि रेणुका शिंदे और सीमा गावित को फांसी होती है तो ऐसा आज़ाद भारत में पहली बार होगा
'देश में फांसी की सजा होनी चाहिए या नहीं?' बीते कुछ सालों में एक तरफ यह चर्चा तेज हुई है तो दूसरी तरफ देश में फांसियों का सिलसिला भी बढ़ा है. 2004 में धनंजय चटर्जी को हुई फांसी के बाद जहां लगभग सात साल तक देश में कोई भी फांसी नहीं हुई वहीं पिछले तीन सालों में तीन हो चुकी हैं. इसके अलावा दर्जनों अन्य दया याचिकाओं को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ख़ारिज कर चुके हैं. राष्ट्रपति सचिवालय से मिली जानकारी के अनुसार, प्रणब मुख़र्जी अब तक कुल 26 दया याचिकाओं पर फैसला ले चुके हैं. इनमें से 24 को उन्होंने ख़ारिज किया है जबकि सिर्फ दो दया याचिकाओं को ही स्वीकारते हुए उन्होंने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला है.प्रणब मुखर्जी द्वारा ख़ारिज की गई याचिकाओं में एक याचिका दो बहनों - रेणुका शिंदे और सीमा गावित - की भी थी. इन पर कई बच्चों के अपहरण और हत्या का आरोप साबित हो चुका है. इनकी दया याचिका ख़ारिज होने के साथ ही इन महिलाओं की फांसी माफ़ होने की संभावनाएं भी लगभग समाप्त हो गई हैं. हालांकि रिव्यु पिटीशन और क्यूरेटिव पिटीशन जैसे अंतिम विकल्प इनके पास अभी बचे हैं, लेकिन पारंपरिक तौर से देखें तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी की फांसी पर मोहर लगाने के बाद सिर्फ राष्ट्रपति से ही माफ़ी की उम्मीद बचती है. यह उम्मीद प्रणब मुख़र्जी बीते साल के अंत में ही इन महिलाओं के लिए समाप्त कर चुके हैं. हाल ही में हुई याकूब मेमन की फांसी से यह भी साफ़ ही है कि फिलहाल सरकार भी फांसी की सजा को समाप्त नहीं करना चाहती. ऐसे में इन महिलाओं को फांसी होंने की संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं. यदि ऐसा होता है तो यह पहली बार होगा जब आज़ाद भारत में किसी महिला को फांसी दी जाएगी.
'एक बार इन्होंने एक दो साल के बच्चे को उल्टा लटकाकर पहले उसका सर दीवार से पटका, फिर उसके टुकड़े-टुकड़े करके एक थैले में भर दिया. इसके बाद इन्होने कोल्हापुर के ही एक सिनेमा हॉल में पिक्चर देखी'पुणे की यरवदा जेल में कैद रेणुका शिंदे और सीमा गावित महाराष्ट्र के कोल्हापुर की रहने वाली दो बहनें हैं. 90 के दशक में इन्होने अपनी मां अंजना गावित के साथ मिलकर कई बच्चों का अपहरण और हत्याएं की. 1996 में गिरफ्तार हुई इन बहनों पर कुल 13 बच्चों के अपहरण और दस बच्चों की हत्या का मामला चलाया गया. साल 2001 में कोल्हापुर सत्र न्यायालय ने इन्हें दोषी पाते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन्हें दोषी पाया और इनकी फांसी को बरकरार रखा.
रेणुका और सीमा को उनकी मां अंजना ने अपराध के इस कारोबार में शामिल किया था. इनका मुख्य काम चोरी का था. इस मामले को जानने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता असीम सरोड़े एक साक्षात्कार में बताते हैं, 'ये दोनों बहनें चोरी के दौरान शिशुओं का इस्तेमाल लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया करती थी. जब कभी चोरी करते हुए ये पकड़ी जातीं, तो इनमें से एक अपनी गोद में रखे बच्चे को जमीन पर फेंक देती. इससे लोगों का ध्यान उस बच्चे पर चला जाता और लोगों की दया की आड़ में ये आसानी से बच निकलती थी.'
इस मामले की सुनवाई के दौरान असीम सरोड़े सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की भी सहायता कर चुके हैं. रेणुका और सीमा के अपराधों में से एक का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया था, 'एक बार इन महिलाओं ने एक दो साल के बच्चे को उल्टा लटकाकर पहले उसका सर दीवार से पटका, फिर उसके टुकड़े-टुकड़े करके एक थैले में भर दिया. इसके बाद इन्होने कोल्हापुर के ही एक सिनेमा हॉल में पिक्चर देखी. उस दौरान वह थैला इन्होंने अपने पैरों के पास ही रखा था जिसमें बच्चे के टुकड़े रखे गए थे.' असीम यह भी कहते हैं, 'मैं व्यावसायिक और निजी, दोनों तरीकों से फांसी की सजा के खिलाफ हूं. लेकिन यह मामला निश्चित तौर से 'रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर' की श्रेणी में आता है जहां अपराधियों को फांसी की सजा होनी चाहिए.'
हालांकि रिव्यु पिटीशन और क्यूरेटिव पिटीशन जैसे अंतिम विकल्प इनके पास बचे हैं, लेकिन पारंपरिक तौर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी पर मोहर लगाने के बाद सिर्फ राष्ट्रपति से ही माफ़ी की उम्मीद बचती है.रेणुका शिंदे और सीमा गावित ने 1990 से 1996 के बीच पुणे, थाणे, कोल्हापुर और नासिक जैसे तमाम शहरों से बच्चों का अपहरण किया था. अभियोजन के अनुसार यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब 1990 में रेणुका पुणे के एक मंदिर में चोरी करते हुए पकड़ी गई. उस वक्त उसके साथ उसका बच्चा भी था. इस नवजात बच्चे के होने से रेणुका भीड़ की सहानुभूति हासिल करने में कामयाब हो गई. यहीं से उसे यह ख़याल आया कि बच्चों को वह चोरी के दौरान अपने बचाव में इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिलकर कई बच्चों का अपहरण किया. जब बच्चे कुछ बड़े हो जाते और इनके काम के नहीं रहते तो ये उनकी हत्या कर दिया करतीं. इस मामले की जांच के दौरान यह बात भी सामने आई कि एक बार सीमा ने एक सात महीने के बच्चे को सिर्फ इस वजह से फेंककर मार डाला था क्योंकि उससे बच्चे का लगातार रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
1996 में एक बच्चे के अपहरण के आरोप में पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार किया था. धीरे-धीरे यह बात सामने आई कि इन्होने कई बच्चों का अपहरण और हत्या की थी. इस मामले में रेणुका के पति किरण शिंदे ने भी सरकारी गवाह बनकर पुलिस की काफी मदद की थी. इनके वकील का कहना है कि इन बहनों की मां अंजना, इन अपराधों की मुख्य साजिशकर्ता थी और उसने ही इन दोनों को अपराध में शामिल किया था. अंजना की काफी समय पहले ही मृत्यु हो चुकी है लिहाजा रेणुका और सीमा फांसी की सजा माफ़ कर दी जाए. लेकिन एक तथ्य यह भी है कि अंजना की मृत्यु तो इन बहनों को फांसी की सजा सुनाए जाने से पहले ही हो चुकी थी. यानी निचली अदालत ने अंजना की मौत के बाद भी रेणुका और सीमा को फांसी दी थी और सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह जानते हुए ही इनकी फांसी को सही बताया था. अब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इनकी दया याचिका भी ठुकरा चुके हैं.
हालांकि दया याचिका ख़ारिज होने के बाद इन बहनों ने महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में भी एक याचिका दाखिल की है. इस याचिका की सुनवाई पूरी होने तक न्यायालय ने इनकी फांसी पर रोक लगा दी है. इस याचिका में कहा गया है कि फांसी में हुई देरी को आधार बनाते हुए इनकी फांसी माफ़ कर दी जानी चाहिए. कुछ ही समय पहले सर्वोच्च न्यायालय ने इसी आधार पर 15 लोगों की फांसी माफ़ भी की है. लेकिन ये सभी लोग ऐसे थे जिनकी दया याचिका पर फैसला लेने में राष्ट्रपति ने सात से 11 साल तक का समय लिया था. जबकि रेणुका और सीमा ने 2010 में ही राष्ट्रपति के सामने दया याचिका लगाई थी जिसे 2014 में राष्ट्रपति ने ख़ारिज कर दिया. ऐसे में फिलहाल इन बहनों की फांसी माफ़ होने के उतने ठोस कारण प्रत्यक्ष नज़र नहीं आते. हालांकि कानून के जानकारों का मानना है कि इनका महिला होना, गैर आतंकवादी मामलों में दोषी होना और लगभग बीस साल से जेल में होने जैसे कुछ कारण हैं जो अंततः इन्हें फांसी से बचा सकते हैं. लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो आज़ाद भारत में यह पहला मौका होगा जब किसी महिला को फांसी पर लटकाया जाएगा.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.