अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में दिग्गज चीन के इस रुतबे में कबाड़ का महत्वपूर्ण योगदान है और इस मामले में भारत भी उससे अहम सबक सीख सकता है
पिछले साल जब ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत हुई तो इसके साथ एक विचित्र विवाद भी जुड़ गया था. अभियान की औपचारिक शुरुआत के उपलक्ष्य में दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जब यह कार्यक्रम समाप्त हुआ तो सभी आमंत्रितों को तोहफे में एक-एक पेन ड्राइव दी गई. इस पर बड़े-बड़े अक्षरों में मेक इन इंडिया लिखा था, लेकिन जब लोगों ने ध्यान से देखा तो भीतर की तरफ ‘मेड इन चाइना’ की इबारत दर्ज थी. यानी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तोहफे के लिए भी सरकार को चीन का मुंह ताकना पड़ा. सरकार की इस मामले पर बड़ी किरकिरी हुई लेकिन अब सही अर्थों में सरकार यदि अपने इस पड़ोसी देश की तरफ देखे तो उसे अपने इन दो महत्वाकांक्षी अभियानों – मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत, के लिए एक महत्वपूर्ण सबक यहां से मिल सकता है.
चीन इस समय खुद को ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’ वाले देश में तब्दील कर रहा है. इसके तहत निर्माताओं को उत्पाद बनाने के उन तरीकों के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जहां उत्पादों का कबाड़ दोबारा से इस्तेमाल किया जा सकने लायक हो. इन तरीकों से अतिरिक्त लागत को बचती ही है साथ ही संसाधनों पूरा उपयोग होता है. चीन ने हाल के दिनों कबाड़ से निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है.
चीन इस समय विश्व का सबसे बड़ा कबाड़ आयातक देश है. इस कबाड़ में कागजी रद्दी से लेकर प्लास्टिक, स्टील और तमाम दूसरी धातुएं शामिल होती हैं
दुनियाभर में चीन की चर्चा एक विश्व फैक्टरी और सबसे बड़े निर्यातक के रूप में होती है. लेकिन वह दूसरे देशों से सबसे ज्यादा क्या आयात करता है? यह जानकर आपको हैरानी होगी, लेकिन चीन विश्व में कबाड़ का सबसे बड़ा आयातक है. इस कबाड़ में कागजी रद्दी से लेकर प्लास्टिक, स्टील और तमाम दूसरी धातुएं शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के सांख्यिकीय विभाग के मुताबिक 2012 में अमेरिका का चीन को सबसे ज्यादा निर्यात कबाड़ का था. आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन अपने घरेलू प्लास्टिक कबाड़ का 70 फीसदी हिस्सा निर्यात करता है और इसका 90 फीसदी हिस्सा चीन में आता है.
चीन के लिए यह बेहद मुनाफे वाला कारोबार है. देश में कबाड़ के कारोबार के पक्ष माहौल बनाकर चीन ने सुनिश्चित किया है कि उसका विशाल निर्माण क्षेत्र काम करता रहे और उसमें वृद्धि भी होती रहे. चीन में लंबे समय तक सभी उद्योग-धंधे सरकारी क्षेत्र के अंतर्गत काम करते रहे हैं लेकिन अब वो धीरे-धीरे उनका चक्रीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विकास कर रहा है.
कबाड़ के इस कारोबार में चीन सभी देशों पर भारी है
चीन कबाड़ से कच्चा माल प्राप्त कर रहा है इसलिए उसे कारोबार में बाकी देशों पर बढ़ता हासिल है. इसके अलावा विकसित देश काफी हद तक कचरा प्रबंधन और कबाड़ की रीसाइकलिंग के लिए चीन पर निर्भर हैं. भारत में मध्यवर्ग के विस्तार के साथ ही अब कच्चे माल की मांग चीन की तर्ज पर ही तेजी से बढ़ रही है. हमारे यहां बीते दो दशकों के दौरान निर्माण क्षेत्र की वृद्धिदर अपेक्षाकृत सुस्त रही है. इसमें तेजी लाना मेक इन इंडिया अभियान का अहम लक्ष्य है. लेकिन चीन के निर्माण क्षेत्र का इस समय विश्व बाजार पर कब्जा है इसके चलते नए उत्पादों और कच्चे माल की आपूर्ति में हम उससे पीछे हैं.
चीन के मालवाहक जहाज दुनिया के तमाम बंदरगाहों का चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन ये कभी अपने देश खाली नहीं आते. जब ये लौटते हैं तो इनमें आयातित कबाड़ भरा होता है
कबाड़ आयात की वजह से चीन की माल ढुलाई का खर्चा काफी हद तक कम हो जाता है. चीन दुनिया के तमाम देशों को औद्योगिक उत्पाद निर्यात करता है. उसके मालवाहक जहाज दुनिया के तमाम बंदरगाहों का चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन ये कभी अपने देश खाली नहीं आते. जब ये लौटते हैं तो इनमें आयातित कबाड़ भरा होता है. इस वजह से चीन की निर्यात पर ढुलाई लागत कम हो जाती है और भारत जैसों देशों के मुकाबले उसका निर्यात और सस्ता हो जाता है. फिर इसके चलते रीसाइकल होने लायक कबाड़ के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी चीन इसे खरीदते समय भारत की अपेक्षा फायदे में रहता है.
भारत में जब भी विदेशों से कबाड़ आयात की चर्चा चलती है तो ज्यादातर विवाद इस बात पर रहता है कि विकसित देश पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला कबाड़ ही यहां भेजते हैं. 1980 के दशक में चीन के साथ भी यही हुआ था लेकिन बाद में वहां की सरकार को समझ में आ गया कि हानिरहित कबाड़ के आयात और उससे दोबारा निर्माण और निर्यात से उसे कई मोर्चों पर फायदा हो सकता है. इससे उसे कच्चा माल भी मिलता रहेगा और बाकी देशों के मुकाबले उसे अतर्राष्ट्रीय व्यापार में बढ़त भी हासिल होगी. तब से वह इसी नीति पर चल रहा है.
भारत इस समय चीन से ठीक यही सबक सीख सकता है जो उसके मेक इन इंडिया अभियान के लिए बेहद साबित होगा. चीन में औद्योगिक क्षेत्र टिकाऊ बनने के लिए संघर्ष कर रहा है और इसलिए उसकी औद्योगिक नीति में चक्रीय अर्थव्यवस्था की नीतियां शामिल की गई हैं. जबकि हमारे यहां चक्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियां हैं तो जरूर लेकिन वे ढंग से लागू नहीं की जा रही हैं.
भारत में शुरुआत घरेलू कबाड़ से हो सकती है
देश के लिए अभी आयातित कबाड़ के पहले घरेलू कबाड़ के इस्तेमाल पर जोर देने की जरूरत है. इससे दो मोर्चों पर फायदा मिलेगा. पहला तो यही है कि हमारे कच्चे माल का एक हिस्सा हमें कबाड़ से मिलने लगेगा. इसके अलावा सालभर पहले शुरु हुए स्वच्छता अभियान की वजह से अब कचरा और कबाड़ से निपटने का मुद्दा स्थानीय प्रशासन और सरकारों से लेकर आम लोगों तक के जेहन में है. यह एक बड़ा मौका है जब कबाड़ और कचरा निपटान के लिए एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने की दिशा में काम किया जा सकता है जो हमारे यहां भी टिकाऊ औद्योगिक विकास में योगदान दे सके.
(यह स्क्रोलडॉटइन पर प्रकाशित आलेख का संपादित स्वरूप है)