जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29सी के मुताबिक अगर देश की राजनीतिक पार्टियों को खुद को मिले धन पर कर में छूट चाहिए तो उन्हें ऐसी हर मिली राशि के बारे में हर साल चुनाव आयोग को बताना पड़ेगा जो 20 हजार रुपये से ज्यादा हो. इसका तोड़ कुछ पार्टियों ने यह निकाला कि वे खुद को मिले चंदे की एक बड़ी राशि को 20 हजार से कम की राशियों का योग बताकर किसी भी तरह की लिखा-पढ़ी से बच जाती हैं. राष्ट्रीय पार्टियों में बसपा अकेली ऐसी पार्टी है, जो पिछले दस सालों से जो भी चंदा उसे मिला है, 20 हजार से कम था, ऐसा बताती आ रही है.

पिछले साल देश की छह राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग को दी गई चंदे की जानकारियों की बात करें तो उऩ्हें कुल मिलाकर 1695 दानदाताओं से 622 करोड़ की रकम प्राप्त हुई. इसमें पहले नंबर पर सत्ताधारी भाजपा रही जिसे 437 करोड़ रुपये यानी कुल रकम की दो तिहाई से ज्यादा मिली. कुल चंदे में कांग्रेस की हिस्सदारी भाजपा की करीब एक तिहाई - 141 करोड़ रुपये - ही थी. चंदे के मामले में तीसरा नंबर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का था जिसे इस लिखा-पढ़ी वाले चंदे में से करीब 38 करोड़ रुपये मिले.

कारोबारी समूह इन ट्स्टों को खुद से अलग ही दिखाना चाहते हैं और उनके जरिये चंदा इसलिए भी देना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अपने खातों में राजनीतिक दलों का नाम नहीं लिखना पड़ता

चंदे के लेन-देन का यह आकलन असोसियेशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नाम की चुनाव सुधारों के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ने एक दिन पहले जारी किया था. इससे संबंधित ज्यादातर अखबारी रिपोर्टें इस बात पर केद्रित रहीं कि कैसे सत्ता में आने के बाद और इससे पहले ऐसी आशा बंधते ही भाजपा को मिलने वाले चंदे में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. अखबारों ने बताया कि 2012-13 के 83 करोड़ के मुकाबले भाजपा को 2013-14 में 170 करोड़ रुपये चंदे में मिले और इसके मुकाबले 2014-15 में उसे जैसा कि ऊपर लिखा है करीब ढाई गुणा ज्यादा - 470 करोड़ रुपये - मिला.

लेकिन ये जानकारियां तो एडीआर की केवल दो पन्नों की प्रेस रिलीज को सरसरे तौर पर देखने से ही मिल जाती हैं. अगर हम उसकी करीब 22 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट को देखें तो कुछ और भी मजेदार आकलन किये जा सकते हैं. इन्हीं में से एक है दो ऐसे ट्रस्टों की जानकारी जो केवल राजनीतिक पार्टियों को चंदे देने के लिए बनाए गये हैं और जिन्होंने अकेले ही सभी राष्ट्रीय पार्टियों को मिले चंदे का करीब 40 फीसदी तीन राष्ट्रीय पार्टियों को दान में दिया है.

इन दोनों ट्रस्टों के नाम हैं सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट और जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट. इन दोनों ने मिलकर पिछले साल देश की तीन राष्ट्रीय पार्टियों को 250 करोड़ रुपये चंदे में दिये हैं. इसमें से अकेले भाजपा को 170 करोड़ रुपये मिले और कांग्रेस को 73 करोड़ रुपये. अगर इसे और भी टुकड़े करके देखें तो सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को पिछले साल कुल मिलाकर 107 करोड़ रुपये दिये और जनरल ने 63 करोड़. जबकि कांग्रेस को सत्या से जहां केवल 19 करोड़ रुपये ही मिले वहीं जनरल ट्रस्ट से उसे अपने अस्तित्व के सबसे बुरे दौर में भी 54 करोड़ रुपयों का चंदा मिला जो कि भाजपा को उससे मिले 63 करोड़ के मुकाबले ज्यादा कम नहीं है.

अगर इसके द्वारा चंदा देने के पैटर्न को देखें तो इसका रुझान परंपरागत रूप से कांग्रेस की तरफ ज्यादा रहा है. हालांकि इसे स्थापित करने वाले अपने कारोबारी हितों को देखते हुए भाजपा के साथ भी संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे हैं

हालांकि ऐसे चुनावी ट्रस्ट बनाए ही इसलिए जाते हैं ताकि बड़े कारोबारी घराने बिना ज्यादा झंझट के अपने आप को किसी भी राजनीतिक पार्टियों के नजदीक दिखाए बिना उन्हें चंदा दे सकें. लेकिन फिर भी इन ट्रस्टों के बारे में जो भी जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है उसके मुताबिक राष्ट्रीय पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाले सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट को देश की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी चलाने वाले सुनील मित्तल के भारती समूह ने 2013 में गठित किया था. इसका ऑफिस दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हंस भवन में है.

वैसे भारती समूह अकेला नहीं है जिसने सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट को चंदा दिया हो. लेकिन वह इसे सबसे ज्यादा चंदा देने वाला जरूर है. सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट के निदेशक मुकुल गोयल के मुताबिक 2014-15 में इस ट्रस्ट को कुल 17 कॉरपोरेट घरानों ने चंदा दिया था. इन सभी से कुल मिलाकर ट्रस्ट को करीब 141 करोड़ रुपये मिला था जिसमें से 31 करोड़ रुपये अकेले भारती ग्रुप ने दिये थे. सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट को चंदा देने वाले कारोबारी घरानों में भारती समूह के अलावा हीरो मोटोकॉर्प, ज्युबिलेंट फूडवर्क्स (डॉमिनोज पित्जा वाला), डीएलएफ, जेके टायर और इंडिया बुल्स प्रमुख हैं.

इससे पिछले साल यानी 2013-14 में भारती ग्रुप ने सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट को 28 करोड़ रुपये दिये थे जो इसे मिलने वाले कुल चंदे का करीब 33 फीसदी था. सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट ने पिछले साल (2014-15 में) जो चंदा राष्ट्रीय पार्टियों को दिया वह एक बार में नहीं दिया था. ट्रस्ट ने इस वित्तीय वर्ष में भाजपा को 14, कांग्रेस को दो और एनसीपी को भी दो बार में 107, 19, और 2.5 करोड़ रुपयों का चंदा दिया था.

सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट के निदेश मुकुल गोयल के मुताबिक 2014-15 में इस ट्रस्ट को कुल 17 कॉरपोरेट घरानों ने चंदा दिया था. इन सभी से कुल मिलाकर ट्रस्ट को करीब 141 करोड़ रुपये मिला था

अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट भाजपा के प्रति काफी उदार रवैय्या अपनाता रहा है. अगर 2013-14 की बात करें तो भाजपा को मिलने वाले कुल 170 करोड़ के चंदे में सत्या ट्रस्ट की हिस्सेदारी करीब 42 करोड़ रुपये थी. यानी कि पिछले दो सालों में भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा देने वालों में सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट नंबर वन पर (उसके कुल लिखित चंदे का करीब एक चौथाई) रहा है.

जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट की बात करें तो इसका गठन नब्बे के दशक के अंत में आदित्य बिरला समूह ने किया था. यह शुरू से ही देश में राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाले न्यासों में से एक रहा है.

अगर इसके द्वारा चंदा देने के पैटर्न को देखें तो इसका रुझान परंपरागत रूप से कांग्रेस की तरफ ज्यादा रहा है. हालांकि इसे स्थापित करने वाले अपने कारोबारी हितों को देखते हुए भाजपा के साथ भी संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे हैं. अगर 2003-4 से 2010-11 के आंकड़ों को देखें तो इस ट्रस्ट ने कुल 36 करोड़ रुपये कांग्रेस को और 26 करोड़ रुपये भाजपा को चंदे में दिये. जैसाकि हम पहले लिख ही चुके हैं कांग्रेस के अस्तित्व के सबसे बुरे वक्त में भी बिरला समूह के जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने पिछले साल उसे भाजपा के 63 करोड़ रुपयों के मुकाबले 54 करोड़ रुपये दिये थे.

इस तरह के ट्रस्टों में से ज्यादातर उन्हें गठित करने वाले कारोबारी समूहों के नाम से नहीं बनाए गए हैं और उऩका पता भी कारोबारी समूह के दफ्तर के पते से अलग ही होता है. कारोबारी समूह इन ट्स्टों को खुद से अलग ही दिखाना चाहते हैं और उनके जरिये चंदा इसलिए भी देना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अपने खातों में राजनीतिक दलों का नाम नहीं लिखना पड़ता. अंग्रेजी अखबार इकनोमिक टाइम्स के साथ बातचीत में जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट के ट्रस्टी हरिभक्त इसका कारण बताते हुए कहते हैं, 'कोई भी ग्रुप किसी भी पार्टी के साथ खुद को जुड़ा हुआ नहीं दिखाना चाहता क्योंकि उसे लगता है कि अगर उसने गलत पार्टी का समर्थन कर दिया तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है.'

हालांकि सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट से उलट जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट का पता वही है जो आदित्य बिरला समूह का है. यह मुंबई के वर्ली में स्थित आदित्य बिरला सेंटर में ही स्थित है.