महाराष्ट्र एटीएस मुस्लिम युवाओं के बीच कट्टरपंथ रोकने की एक अनोखी मुहिम चला रही है जिसे मुस्लिम समुदाय से भरपूर समर्थन मिल रहा है.
‘जिनकी हत्या की जा रही है वे मासूम हैं. इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए क्योंकि यह गलत है . मुझे नहीं मालूम कि आईएस (इस्लामिक स्टेट) वाले और जो कर रहे हैं वह कितना सही या गलत है लेकिन, मैं जो कर रही थी वह गलत था. बिल्कुल गलत. अब मैं राइट ट्रैक पर आ गई हूं. इसमें मुझे एटीएस ऑफिसर्स से बहुत मदद मिली है.’यह बयान पुणे की सोलह वर्षीय नईमा (बदला हुआ नाम) का है. नईमा आईएस की तरफ आकर्षित थी. वह फेसबुक पर आईएस के लिए युवाओं को भर्ती करने वाले समूह के संपर्क में भी रही है. हालांकि अब उसका आईएस से मोहभंग हो चुका है. इसके लिए वह पुणे की एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ते) यूनिट का एहसान मानती हैं और युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने के लिए चल रही उसकी पहल की भरपूर तारीफ करती है.
नईमा को अल-जजीरा टीवी पर एक डॉक्यूमेंटरी देखते हुए उसे पहली बार आईएस के बारे में पता चला था. फिर आईएस के बारे में और जानने की कोशिश करते हुए वह कुछ फेसबुक ग्रुप्स तक पहुंचीभारत में पुलिस पर यह आरोप लगते रहते हैं कि वह मुसलमान युवाओं को आतंकवाद के आरोप में जबर्दस्ती फंसा देती है. तमाम प्रदेशों में ऐसे कई मुसलमान युवा हैं जिन्हें पुलिस ने आतंकवाद के आरोप में हिरासत में ले लिया था और कुछ साल जेल में रहने के बाद कोर्ट ने उन्हें निर्दोष पाकर बरी करने के आदेश दिए. इन हालात में एटीएस की पुणे यूनिट की यह पहल महाराष्ट्र में पुलिस की एक अलग और उम्मीद जगाने वाली तस्वीर दिखाती है.
खुफिया सूचनाओं के मुताबिक पुणे आईएस समेत देश के दूसरे मुस्लिम कट्टरपंथी समूहों के निशाने पर है. इसको देखते हुए महाराष्ट्र एटीएस ने एक मुहिम शुरू की है. इसके तहत आईएस से प्रभावित या उससे संबंधित समूहों के संपर्क में आए युवाओं को सही रास्ते पर लाने के लिए वह उन्हें गिरफ्तार नहीं करती और न ही दूसरे तरीकों से परेशान करती है. इन युवाओं को एटीएस मौलानाओं और मुफ्तियों के माध्यम से समझाने का काम करती है. इसके साथ ही पिछले पांच महीनों से एटीएस जगह-जगह जाकर मुस्लिम समुदाय के युवाओं से संवाद स्थापित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित कर रही है. यहां मुस्लिम धार्मिक प्रतिनिधियों के माध्यम से युवाओं को आईएस और कट्टरपंथ के खिलाफ जागरूक किया जाता है.
इस दौरान अकेली पुणे एटीएस यूनिट ने शहर में 44 आतंकवाद विरोधी सभाएं की हैं. इनके जरिए तकरीबन 22,000 हजार लोगों से एटीएस संपर्क बना चुकी है. खासबात यह है कि इनमें तकरीबन 15,000 कॉलेज के छात्र हैं. इसके साथ ही तकरीबन 12,000 लोग एटीएस से जुड़कर आईएस के खिलाफ चल रही इस मुहिम में उसकी मदद कर रहे हैं. एटीएस की इस पहल का नतीजा है कि उसके दफ्तर में अब तक 1500 छात्र-छात्राओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया है और ये अब आईएस के खिलाफ स्वयंसेवकों की भूमिका अदा कर रहे हैं.
पुणे एटीएस यूनिट ने शहर में 44 आतंकवाद विरोधी सभाएं की हैं. इनके जरिए तकरीबन 22,000 हजार लोगों से एटीएस संपर्क बना चुकी है. खासबात यह है कि इनमें तकरीबन 15,000 कॉलेज के छात्र हैं
युवाओं में कट्टरपंथ के रोकथाम की मुहिम कैसे शुरू हुई

एटीएस के लिए इस मुहिम की शुरुआत पूरी तरह आसान नहीं थी. जब पहली बार मौलानाओं और मुफ्तियों के साथ एटीएस अधिकारियों की बैठक हुई तो उन लोगों ने पुलिस पर भरोसा न होने की बात जता दी. कुछ लोगों ने आरोप लगाया एटीएस मुसलमानों की आतंकवादी समझती है और बेवजह युवाओं को जेल में डाल देती है. बरगे बताते हैं, ‘पहली बैठक में अविश्वास का माहौल तो था फिर भी इससे एक संवाद कायम हुआ. जब हमने 16 वर्षीय नईमा को आईएस के संपर्क में रहने के बावजूद भी हिरासत में नहीं लिया और मौलानाओं की मदद से उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की तो मुस्लिम समुदाय के लोगों का हमारे ऊपर भरोसा बढ़ गया.’
नईमा 11वीं कक्षा की छात्रा है. अल-जजीरा टीवी पर एक डॉक्यूमेंटरी देखते हुए उसे पहली बार आईएस के बारे में पता चला था. फिर आईएस के बारे में और जानने की कोशिश करते हुए वह कुछ फेसबुक ग्रुप्स तक पहुंची. यहीं उसकी पहचान श्रीलंकाई मूल के एक व्यक्ति से हुई जो आईएस के लिए मुस्लिम युवाओं को भर्ती करता था. नईमा और इस व्यक्ति की अब नियमितरूप से ऑनलाइन बातचीत होने लगीं.
जब पहली बार मौलानाओं और मुफ्तियों के साथ एटीएस अधिकारियों की बैठक हुई तो उन लोगों ने पुलिस पर भरोसा न होने की बात जता दीइस छात्रा के बारे में निश्चिंत होने के बाद उस श्रीलंकाई ने आईएस से जुड़े एक और व्यक्ति से उसका संपर्क करवाया और धीरे-धीरे नईमा इस आतंकवादी संगठन से सहानुभूति रखने वाले या उसके लिए काम करने वाले 18 लोगों के संपर्क में आ गई. इन लोगों में भारतीय नागरिकों के साथ-साथ ब्रिटेन, फिलीपींस, सऊदी अरब और श्रीलंका सहित और भी विदेशी नागरिक थे. पिछले साल दिसंबर में जयपुर से आईएस के रिक्रूटर मोहम्मद सिराजुद्दीन को गिरफ्तार किया गया था. नईमा इसके संपर्क में भी रही है.
एटीएस ने नईमा के अलावा पुणे के 16 वर्षीय नीलेश (बदला हुआ नाम) को भी आईएस के चंगुल में फंसने से बचाया है. एटीएस और मौलवियों की कोशिशों के बाद अब वह कट्टरपंथियों की चालों और मंसूबों को समझने लगा है. नीलेश एक अरसा पहले धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बना है. इसके बाद से वह गुजरात और उत्तर प्रदेश के मदरसों में उर्दू और अरबी की तालीम ले रहा था. यहीं वह वॉट्सएप ग्रुप के जरिए कुछ कट्टरपंथी लोगों के संपर्क में आया और एक दिन एटीएस की नजर में भी.
नीलेश बताता है कि वह जुलाई, 2014 में गणगौर और अहमदाबाद के मदरसों में रह रहा था. इसी दौरान उसने वॉट्सएप पर वाइट मिरेकल नाम का ग्रुप बनाया. इसमें 30-35 लोग तो भारत के ही थे लेकिन, धीरे-धीरे कुछ बाहरी लोग भी जुड़ गए और वे यहां आतंकवाद का समर्थन करने वाली सामग्री शेयर करने लगे. जब हमने नीलेश से उसके प्रति एटीएस के रवैए के बारे में पूछा तो उसका कहना था, ‘एक बार पहचान में आने के बाद वे शुरू-शुरू में मेरे ऊपर नजर रखते थे. लेकिन उन्होंने मुझे परेशान नहीं किया, कोई तकलीफ नहीं दी.’
नीलेश इस समय अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता है साथ ही अरबी-उर्दू में लिखे आतंकवादी साहित्य को पढ़ने में एटीएस की मदद भी करता है.
‘एटीएस ने कई दफे बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों के जेल में बंद किया है और हमारे संगठन ने उसके खिलाफ मुकदमे लड़े हैं. लेकिन इसबार उनका रवैया अच्छा है'
कट्टरपंथ विरोधी मुहिम में क्या होता है और कैसे होता है?
इदरीस जमीयत उलेमा-ए-हिंद के जामियतुस स्वालेहात मदरसे के मौलाना कारी मोहम्मद इदरीस अंसारी एटीएस की इस मुहिम में शामिल हैं. उन्होंने ही नईमा को आईएस की करतूतों और कट्टरपंथ की हकीकत के बारे में समझाया था. अंसारी बताते हैं, ‘एटीएस ने कई दफे बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को जेल में बंद किया है और हमारे संगठन ने उसके खिलाफ मुकदमे लड़े हैं. लेकिन इसबार उनका रवैया अच्छा है. उन्होंने हमारे मन में भरोसा पैदा किया है.’ मौलाना बताते हैं कि नईमा अभी जेल में होती लेकिन, एटीएस वालों ने उसे गिरफ्तार नहीं किया और समझाइश के बूते सही रास्ते पर ले आए और इस नजीर से मुस्लिम समुदाय और पुलिस-प्रशासन के बीच भरोसे का माहौल बन रहा है.आईएस या कट्टरपंथ के खिलाफ चल रही इस मुहिम के तहत मौलाना अब तक कई आम लोगों से मिलकर उन्हें जागरूक कर चुके हैं. मां-बाप को उनकी सलाह होती है, ‘अगर बच्चे के व्यवहार में अचानक बड़ा बदलाव आ जाए. ऐसा लगे कि वो कट्टरपंथ के रास्ते पर जा रहा है तो मां-बाप को उसे समझाने की कोशिश करनी चाहिए. जब उनसे न माने तो रिश्तेदार या मोहल्ले-पड़ोस के बड़े बुजुर्गों की मदद ली जाए. और तब भी कुछ न हो तो पुलिस को इत्तेला करनी चाहिए ताकि वह पता लगा सके कि बच्चा कोई गलत राह पर तो नहीं है.’
पुणे के आम युवा भी इस मुहिम में भरपूर सहयोग दे रहे हैं. 33 वर्षीय यासीन शेख कहते हैं कि आज के माहौल में इस तरह की मुहिम देश के दूसरे हिस्सों में भी शुरू होनी चाहिए. वे बताते हैं, ‘हम मोहल्लों में जाकर युवाओं के समूह बना रहे हैं जो आईएस के खिलाफ प्रचार करते हैं. जब कभी 400-500 की तादाद में लोग इकट्ठे होते हैं तो हम मुफ्तियों और अधिकारियों की मदद से कार्यक्रम आयोजित करते हैं और लोगों को आतंकवाद के खतरे से आगाह करते हैं.’
पुणे के आम युवा भी इस मुहिम में भरपूर सहयोग दे रहे हैं. 33 वर्षीय यासीन शेख कहते हैं कि आज के माहौल में इस तरह की मुहिम देश के दूसरे हिस्सों में भी शुरू होनी चाहिए‘डी-रेडिकलाइजेशन’ मुहिम के दौरान पुलिस अधिकारी मौलवियों के साथ लगातार संपर्क में रहते हैं. वे मिलकर कार्यक्रम तय करते हैं और कॉलेज या सार्वजनिक जगहों पर जाकर आतंकवाद की बुराइयों के बारे में बताते हैं. इनके भाषणों में मुसलमानों के बीच से निकली महान हस्तियों जैसे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, अशफाकउल्ला खान, अब्दुल हमीद, शिवाजी महाराज के मुसलमान सेना नायकों के जीवन से जुड़ी जानकारी होती है और लोगों को प्रेरित करने की बातें होती हैं कि कैसे इन लोगों ने धर्म-जाति से उठकर आम इंसानों की भलाई के लिए काम किया था. ये इकतरफा आयोजन नहीं हैं. स्कूल-कॉलेजों या सार्वजनिक जगहों पर हिंदू या दूसरे धर्म के लोग भी शामिल होते हैं और मंच से भाषणों के जरिए उन्हें बताया जाता है कि मुसलमान भी देश के निर्माण में उतने ही भागीदार हैं जितने वे और इसलिए यह मुल्क जितना दूसरे धर्म वाले का है उतना ही मुसलमानों का भी है.
महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों का मानना है कि आईएस इस समय देश में अपना प्रचार तंत्र खड़ा करके प्रभाव बढ़ाने की जुगत में हैं और उससे लड़ने के लिए सबसे पहले इस मोर्चे पर ही काम करना पड़ेगा. बरगे कहते हैं, ‘दुष्प्रचार को प्रचार से ही खत्म किया जा सकता है.’
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