स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों को जब एक दूसरे से आगे निकलने की कोई वजह नहीं मिली तो वे इनका स्क्रीन साइज बढ़ाती गईं, बिना यह सोचे कि वह कितना व्यवहारिक है. लेकिन हाल ही में लॉन्च हुए कुछ स्मार्टफोन देखें तो लगता है कि वे अब समझदार हो रही हैं.
मनुष्यों का निर्माण करने वाली संस्था की विभिन्न इकाइयों के प्रमुख जब दो लाख साल पहले एक बैठक कर रहे थे, एक खास चीज को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित थे. मनुष्यों का चेहरा. पृथ्वी नाम की रियल एस्टेट की संभावनाओं से भरपूर एक खूबसूरत कॉलोनी बसाने को लेकर हुई बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की उस मीटिंग में सबसे ज्यादा चर्चा, वाद-विवाद, कुर्सियों की पटक-पलट मनुष्य के मुखमंडल के सटीक नाप और शरीर से उसके सही अनुपात पर हुई थी, ऐसा सुनने में आया है.किसने सोचा था एक वक्त आएगा जब स्मार्टफोन का चेहरा मनुष्य के चेहरे का आधा चेहरा हो जाएगा? किसने सोचा था कि मोबाइल फोन इस तरह अतिरंजना का शिकार होंगे? इतने कि अब वे गाजर, मूली, लौकी और बड़े पैर की जूती के साइज में आने लगेंगेलेकिन आज उस संस्था के दुख का सागर ओवरफ्लो हो रहा है, ऐसा भी सुनने में ही आया है. उसके बनाए मनुष्य के सुंदर चेहरे के आधे से ज्यादा हिस्से पर ग्रहण लग चुका है. एक चमकीला अंधेरा जो कभी मनुष्य के चेहरे के दाएं हिस्से पर तो कभी बाएं हिस्से पर कान से लेकर ठोड़ी तक नजर आता है. संस्था हताश है कि वो तमाम दिव्यता के बावजूद वह भविष्य नहीं देख पाई जो आज हमारा वर्तमान है. अगर देख पाती तो मनुष्य के चेहरे को थोड़ा और लंबा बनाती. नहीं, काफी ज्यादा लंबा बनाती. वो आखिर करती भी क्या, स्मार्टफोन के अतिरेक और विचित्र साइजों ने मनुष्य के चेहरे को कान के शुरू होने से लेकर ठोड़ी तक जिस अंदाज में ढक लिया है, ऐसे में ऐसा सुंदर चेहरा बनाने वालों या बनाने वालियों का दुखी होना स्वाभाविक ही है.
किसने सोचा था एक वक्त आएगा जब स्मार्टफोन का चेहरा मनुष्य के चेहरे का आधा चेहरा हो जाएगा? किसने सोचा था कि मोबाइल फोन इस तरह अतिरंजना का शिकार होंगे? इतने कि अब वे गाजर, मूली, लौकी और बड़े पैर की जूती के साइज में आने लगेंगे. और जब उन्हें समझ आएगा कि मियां अब कुछ ज्यादा हो गया, तो वे फैबलेट और टैबलेट के नाम से बड़े-बेडौल स्मार्टफोन बेचने की चालाकी बाजार में ले आएंगे.
हर चीज जो बाजार में आई अपने आकार के साथ प्रयोग करती रही. किताबें बड़ी-छोटी होती रहीं, ग्रीटिंग कार्ड्स अजब-अनोखे साइज में आते रहे, कम्प्यूटर बड़े-बड़े कमरों के साइज से शुरू होकर हमारे लैप (गोद) पर आने लगे. कमरे की खिड़कियां दीवार की छत को छूती रहीं कभी ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसी छोटी खुलती रहीं. लेकिन इन प्रयोगों को अच्छी वस्तुओं ने कभी अपने आकार का विकार नहीं बनाया. एक वक्त आया जब बाजार में आई सभी वस्तुओं ने स्थायित्व पाया. सबने कुछ आकार चुने और उन्हीं आकारों में खुद को खूबसूरत बनाया. लेकिन स्मार्टफोन ऐसा क्यों नहीं कर पाया? या सबसे जरूरी सवाल पूछने को अपनी आदत बनाएं तो, कब स्मार्टफोन ऐसा कर पाएगा और एक निश्चित साइज पाकर बरगद के पेड़ की जड़ों सा उसका बढ़ना रुक जाएगा?
एपल शुरुआती घमंड के बाद (कि हम बड़े बेडौल साइज के स्मार्टफोन नहीं बनाएंगे), 4.7 से सीधे 5.5 इंच के आइफोन 6 एस, को बाजार में ले आया तो सभी को आशंका होने लगी कि क्या अब फोन रखने के लिए पीठ पर एक बैग लादकर चलना होगाशायद अभी. पिछले साल तक किसी भी स्मार्टफोन बनाने वाली बड़ी कंपनी, एपल-सैमसंग-मोटोरोला-एचटीसी-गूगल, को नहीं पता था कि स्मार्टफोन का कितना बड़ा साइज अंतिम बड़ा साइज होगा. और जब एपल शुरुआती घमंड के बाद (कि हम बड़े बेडौल साइज के स्मार्टफोन नहीं बनाएंगे), 4.7 से सीधे 5.5 इंच के आइफोन 6 एस, को बाजार में ले आया था, सभी आशंकित थे और सोच में भी कि क्या अब फोन रखने के लिए हमेशा एक बैग पीठ पर लादना ही होगा. क्योंकि अगर एपल 5.5 इंच पहुंचा है तो प्रतिद्वंदी कंपनियां, खासकर सैमसंग, अपने पुराने रिकार्ड के अनुसार और भी बड़े साइज के स्मार्टफोन जल्द ही मार्केट में लाएगी. फिर एचटीसी भी पीछे नहीं रहेगी. क्योंकि वो कभी पीछे नहीं रहती, जब बात स्क्रीन साइज की होती है. और इन सब के पीछे, वे सस्ती लोकल और चायनीज कंपनियां जो सिर्फ विशालतम स्क्रीन साइज से ही लोगों को लुभा रही हैं, चुपचाप आकर खड़ी हो जाएंगी और आखिर में बाजार पर अपना प्रभुत्व सबसे गहरा जमा लेंगी.
लेकिन शायद अब ऐसा न हो. यह खुशी की बात कुछ हफ्ते पहले सैमसंग के नए फ्लैगशिप स्मार्टफोन के लांच होने के बाद की है. अपने नए-महंगे-फ्लैगशिप फोन गैलेक्सी एस 6 और एस 6 ऐज का स्क्रीन साइज सैमसंग ने पिछले फ्लैगशिप गैलेक्सी एस 5 जितना ही रखा है. 5.1 इंच. यह सैमसंग के इतिहास में पहली बार हुआ है कि उसने अपने नए फ्लैगशिप फोन का साइज पिछले फ्लैगशिप फोन जितना ही बनाए रखा है. इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. किसी भी फोन बनाने वाली कंपनी के साथ नहीं हुआ. सभी फोन मेकर्स ने हर साल पिछले साल से बड़ा फोन ही लांच किया. सैमसंग का ओरिजनल गैलेक्सी एस चार इंच का था. एस 2 आया तो वो 4.3 का और एस 3 आया तो वो 4.8 इंच का था. अगला एस 4 अगर 5 इंच का हुआ तो एस 5 शून्य दशमलव एक की बढ़ोतरी के साथ 5.1 इंच का. लेकिन अब पहली बार एस 6 पुराने वाले 5.1 इंच पर ही रुक गया है.
एक वक्त था जब लैपटाप बनाने वाली कंपनियां 20 इंच की स्क्रीन वाले लैपटाप को भविष्य का लैपटाप बता कर बाजार में उतारती थीं. अब उन्हें कोई नहीं खरीदता. ऐसा ही स्मार्टफोन की स्क्रीन के साथ भी हो रहा हैएचटीसी ने भी अपने नए फ्लैगशिप फोन की स्क्रीन में कोई बदलाव नहीं किए हैं. सैमसंग के नए फोन लांच होने वाले दिन ही लांच हुए एचटीसी के नए फ्लैगशिप फोन वन एम9 की स्कीन साइज 5 इंच है. उतनी ही जितनी उसके पिछले वाले मशहूर फ्लैगशिप फोन वन एम8 की थी. ये बड़ा बदलाव है. इससे पहले साइज को लेकर हमेशा अनरियलिस्टिक रहा स्मार्टफोन बाजार अब मोबाइल फोन के सही आकार को पहचानने के साथ-साथ उसे अपना भी रहा है, यह ऐतिहासिक खबर है. कई सारे टेक-विशेषज्ञ सैमसंग और एचटीसी के इस नए कदम को स्मार्टफोन बाजार की दुनिया का नया दौर मान रहे हैं. वे खुश हैं और इस हार्दिक खुशी कि वजह सिर्फ यही है कि उन्हें अब उम्मीद है कि इन मुख्य कंपनियों के बाद लगभग सभी स्मार्टफोन कंपनियां इस बात को मानने के लिए तैयार रहेंगी कि स्मार्टफोन स्क्रीन का अधिकतम साइज, जो व्यावहारिक भी है और परफेक्ट भी, सही डिजाइन अर्गोनामिक्स (विज्ञान की एक शाखा जिसमें इंसान और उसके आसपास की वस्तुओं से उसका संबंध समझा जाता है) के साथ, 5 इंच है. या 5 इंच के आसपास है.
खुशी इस बात की भी है कि एपल और गूगल जैसी कंपनियों को बाजार में उतारे खुद के प्रोडक्ट्स यह सिखा रहे हैं. एपल के अंध भक्तों की वजह से भले ही आईफोन 6 प्लस रिकॉर्ड तोड़ बिका हो, लेकिन 5.5 इंच की स्क्रीन के साथ जरूरत से ज्यादा बड़ा यह फोन बेंड-गेट और सिंगल-हैंड ऑपरेशन जैसी परेशानियों से जूझता हुआ कंज्यूमर्स के दिलों में, और जेबों में भी, जगह कम ही बना पाया है. गूगल का नेक्सस 6 भी अपनी 6 इंच की स्क्रीन के साथ यह दिखा चुका है कि बाजार को 6 इंच के फोन की जरूरत नहीं है, भले ही हार्डवेयर कितना भी तेज भागता घोड़ा क्यों न हो.
एक वक्त था जब लैपटाप बनाने वाली कंपनियां 20 इंच की स्क्रीन वाले लैपटाप को भविष्य का लैपटाप बता कर बाजार में उतारती थीं. अब उन्हें कोई नहीं खरीदता. एपल ने तो पिछले तीन साल से 17 इंच तक का लैपटाप बाजार में नहीं उतारा है. ऐसा ही स्मार्टफोन की स्क्रीन के साथ भी हो रहा है. वो व्यावहारिक होकर परफेक्ट साइज तलाश रही हैं.
स्मार्टफोन के परफेक्ट स्क्रीन साइज को लेकर बहस आगे भी होती रहेगी. साढ़े पांच से लेकर साढ़े छह इंच तक के फोन बनते रहेंगे, किसी को 5.5 भी पसंद आएगा किसी को 6 इंच भी जंचेगा, किसी के लिए 4 इंच ही बहुत रहेगा. लेकिन जब कभी बाजार स्मार्टफोन के परफेक्ट साइज को तलाशेगा, पांच इंच के आसपास ही उसका नाप आएगा.
जब ऐसा होगा, जेब खुश होगी, उसे बनाने वाला दर्जी भी खुश होगा, और मनुष्यों का निर्माण करने वाली संस्था भी कम नाराज होगी. स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां बैटरी लाइफ को सही में बढ़ाएंगी, जब ऐसा होगा, मनुष्य सिर्फ तभी खुश होगा.
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