
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जर्सी गाय को भारतीय गायों की तरह पवित्र नहीं मानता. इसी तर्क के आधार पर गोमांस के कारोबारी इस नस्ल की गाय का मांस बेचने की अनुमति मांग रहे हैं.
देश में गोवध पर प्रतिबंध की बहस अब एक नए मोड़ पर आ गई है. बहस अब इस बात पर भी है कि जर्सी गाय को पवित्र मानकर उसे भारतीय गायों के स्तर पर रखा जाए या नहीं. बहस के इस पक्ष का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इसकी शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) संघ ने की और अब इसे गोमांस के कारोबारी आगे बढ़ा रहे हैं.पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने घोषणा की थी कि वह देशभर में 100 से ज्यादा कामधेनु नगर बनाएगा. ये गोशालाएं हैं जिन्हें संघ आवासीय कॉलोनियों के नजदीक बनाने की योजना पर काम कर रहा है. हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान इस योजना पर बात करते हुए संघ से जुड़े अखिल भारतीय गो सेवा संगठन के अध्यक्ष शंकर लाल का कहना था कि कामधेनु नगरों में विशुद्ध भारतीय नस्लों की गायें रखी जाएंगी. उनका तर्क है कि ये सात्विक होती हैं. उन्होंने अपने इसी बयान में आगे जोड़ा कि जर्सी गायों और भैंसों का दूध पीने से दिमाग में बुरे विचार आते हैं और लोगों का अपराध की तरफ झुकाव होने लगता है.
अखिल भारतीय गो सेवा संगठन के अध्यक्ष शंकर लाल का कहना है कि जर्सी गायों व भैंसों का दूध पीने से दिमाग में बुरे विचार आते हैं और लोगों का अपराध की तरफ झुकाव होने लगता हैजर्सी गाय मूल रूप से पश्चिमी यूरोप और ब्रिटेन की नस्ल है. गर्म मौसम में खुद को आसानी से ढाल लेने की खूबी के चलते अंग्रेजी राज में इन्हें भारत लाया गया था. बीते सालों में यदि भारत का डेरी उद्योग इतनी तेजी से आगे बढ़ा तो उसमें गाय की इस नस्ल का सबसे अधिक योगदान माना जाता है.
फिलहाल संघ के इस आनुषांगिक संघठन की मानें तो जर्सी गाय भारतीय गायों की तरह पवित्र नहीं हैं. अब इसी तर्क को आधार बनाकर महाराष्ट्र के गोमांस कारोबारी जर्सी गायों के मांस की बिक्री की अनुमति मांग रहे हैं. इस साल फरवरी में महाराष्ट्र सरकार ने गोवंश हत्या बंदी कानून लागू किया था. महाराष्ट्र गोमांस के कारोबार में देश में सबसे आगे है. मुंबई का देवनार भारत में सबसे बड़ा कसाईखाना माना जाता है. प्रतिबंध लागू होने के पहले तक यहां हर रोज तकरीबन छह हजार पशु कटते थे. लेकिन इस समय इनकी संख्या 200 से 250 के बीच सिमट गई है. अब यहां ज्यादातर भैसें ही कटती हैं. यह कारोबार मूल रूप से मुस्लिम समुदाय के हाथ में है और प्रतिबंध के कारण इन लोगों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है.
मुसलमानों के एक संगठन ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल ने हाल ही मांग की है कि गोमांस के कारोबारियों को जर्सी गाय के कत्ल और मांस बिक्री की इजाजत दी जाए. काउंसिल की महाराष्ट्र इकाई के महासचिव एमए खालिद का कहना है, ‘जर्सी गायें विदेशी नस्ल की हैं. इनसे धार्मिक भावनाएं नहीं जुड़ीं इसलिए हमें इनका मांस बेचने की अनुमति मिलनी चाहिए.’ मिल्ली काउंसिल का यह भी कहना है कि वह भारतीय गायों के कत्ल पर प्रतिबंध का समर्थन करता है लेकिन सरकार को कारोबारियों के लिए विकल्पों पर सोचना चाहिए.
महाराष्ट्र सरकार ने फिलहाल जर्सी गाय को इस कानून से बाहर करने से मना कर दिया है. कल ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस का बयान आया है कि इस गोवंश हत्या बंदी कानून में किसी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी. उन्होंने साथ में यह जरूर कहा कि सरकार प्रतिबंध से सबसे बुरी तरह प्रभावित कुरैशी मुसलमानों के पुनर्वास के लिए एक योजना पर विचार कर रही है. उधर विश्व हिंदू परिषद ने भी राज्य सरकार का समर्थन किया है. परिषद के सचिव वैंकटेश अबदेव का कहना है कि गाय की हर नस्ल का संरक्षण किया जाएगा. वे कहते हैं कि नस्ल कोई भी हो हिंदुओं के लिए हर गाय पवित्र है.
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