आलोचना
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हिन्दी साहित्य और समाज दोनों में आलोचना-वृत्ति का भयानक क्षरण हुआ है
अशोक वाजपेयी
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यह सोचकर दहशत होती है कि इतने भयानक अनुभवों से गुज़रने के बाद भी जो टुच्चे थे वे वैसे ही रहेंगे
अशोक वाजपेयी
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साहित्य हमें आलोचनात्मक ढंग से सोचने के लिए प्रशिक्षित करता है और भीड़ और भेड़ होने से बचाता है
अशोक वाजपेयी
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नामवर सिंह नब्बे साल के हो गए हैं और थोड़े से कुछ ज्यादा अकेले भी
अपूर्वानंद