कभी-कभार
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जो लेखक अपने संघर्षों को बहुत गाते हैं वे उन संघर्षों की अवमानना करते हैं
अशोक वाजपेयी
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हिन्दी साहित्य और समाज दोनों में आलोचना-वृत्ति का भयानक क्षरण हुआ है
अशोक वाजपेयी
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हमारे इस समय में उत्कृष्टता, मूर्धन्यता और नवाचार सभी उतार पर हैं
अशोक वाजपेयी
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यह सोचकर दहशत होती है कि इतने भयानक अनुभवों से गुज़रने के बाद भी जो टुच्चे थे वे वैसे ही रहेंगे
अशोक वाजपेयी
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साहित्य हमें आलोचनात्मक ढंग से सोचने के लिए प्रशिक्षित करता है और भीड़ और भेड़ होने से बचाता है
अशोक वाजपेयी
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मान्यता के लिए हर जतन करने वाले आज के युवाओं को उस उजले मुक्तिबोध की याद दिलानी चाहिए
अशोक वाजपेयी
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आज लक्ष्मण स्वयं अपनी रेखा मिटाने को बहुत तत्पर है!
अशोक वाजपेयी
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गद्यकविता पर आलोचना ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया है जिसे समझ पाना कठिन है
अशोक वाजपेयी
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महात्मा गांधी से अधिक पारदर्शी भारतीय पिछले दो सौ बरसों में दूसरा कोई नहीं हुआ
अशोक वाजपेयी
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कविता के सभी सच संशयग्रस्त और अधूरे होते हैं जो मानवीय शिरकत से ही मुक्त और पूरे हो पाते हैं
अशोक वाजपेयी
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अगर पितृसत्तात्मक सोच से लड़ना है तो स्त्री-विमर्श को हिंदुत्व का सामना भी करना ही पड़ेगा
अशोक वाजपेयी
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साहित्य मनुष्य को एक दर्जा कम होने से कैसे बचा सकता है जब लेखक ही मनुष्यता से स्खलित होते हों?
अशोक वाजपेयी
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क्या कविता बिना सुन्दर हुए सार्थक हो सकती है?
अशोक वाजपेयी
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सब बच्चे कवि होते हैं जब तक कि वे तितलियां पकड़ना नहीं छोड़ देते
अशोक वाजपेयी
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इस दौर के ख़त्म होने के बाद सच्चाई कितनी बदल गयी होगी इसका अनुमान तक नहीं लगाया जा सकता
अशोक वाजपेयी
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मानव को ऐसा एकांत नहीं चाहिए जिसमें सामुदायिकता की संभावना न हो
अशोक वाजपेयी
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आज भारत को यह याद नहीं कि उसने अपनी स्वतंत्रता अहिंसा और असहयोग के जरिये हासिल की थी
अशोक वाजपेयी
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अब हर वर्ष अज्ञान रत्न, भय रत्न और घृणा रत्न सम्मान भी दिये जाने चाहिए
अशोक वाजपेयी
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हिंसा, क्रूरता और झूठ इस तेजी से युवाओं में व्याप रहे हैं कि लगता है ये नया रोजगार हो गए हैं
अशोक वाजपेयी
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भारत में जिज्ञासा क्षीण हो रही है, हम बने-बनाये उत्तरों से कुछ अधिक ही संतुष्ट होने लगे हैं
अशोक वाजपेयी