साहित्य
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जो लेखक अपने संघर्षों को बहुत गाते हैं वे उन संघर्षों की अवमानना करते हैं
अशोक वाजपेयी
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वन अरेंज्ड मर्डर: ‘जब प्यार में आप किसी को गुझिया बुलाने लगें तो ज़रा रुककर सोचना चाहिए’
सत्याग्रह ब्यूरो
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हिन्दी साहित्य और समाज दोनों में आलोचना-वृत्ति का भयानक क्षरण हुआ है
अशोक वाजपेयी
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कृश्न चंदर : जिन्होंने लूट लिए गए अपने सफ़ेद हत्थी वाले चाकू को वापस पाने के लिए लिखा
अनुराग भारद्वाज
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अच्छी और सच्ची कला उत्तर देने की कोशिश नहीं करती, प्रश्न पूछने की ओर ले जाती है
अशोक वाजपेयी
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन के लिए ‘अज्ञेय’ उपनाम नहीं बल्कि एक मकसद था
कविता
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फणीश्वर नाथ रेणु : जो न होते तो अपने देश की आत्मा से हम कुछ और कम जुड़े होते
कविता
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कोई भी, चाहे वह कितना ही नाम-कीर्ति-हीन क्यों न हो, साधारण नहीं होता
अशोक वाजपेयी
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रज़ा जब कला नहीं रचते थे तब उसे रचने के लिए खुद को तैयार कर रहे होते थे
अशोक वाजपेयी
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सुदर्शन फाकिर: एक ऐसा शायर जिसका न कोई उस्ताद था और न कोई शागिर्द
अमरीक सिंह
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वेद अगर आसमान से उतर जमीन पर आया है तो ग़ालिब का दीवान जमीन से उठकर आसमान तक पहुंचा है
सत्याग्रह ब्यूरो
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ग़ालिब अगर शायर न होते तो उनके ख़त ही उन्हें अपने दौर का सबसे ज़हीन इंसान बना देते
अनुराग भारद्वाज
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हमारे इस समय में उत्कृष्टता, मूर्धन्यता और नवाचार सभी उतार पर हैं
अशोक वाजपेयी
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फ़ैज़ को सर्वहारा का दर्द तो दिखता है पर उसके हुक्मरान के ज़ुल्मो-सितम क्यों नजर नहीं आते?
अनुराग भारद्वाज
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पटकथा : धूमिल की यह कविता अभी ठीक से पढ़ी जानी बाकी है
प्रियदर्शन
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काला जल : जिसमें शानी, बस्तर और मुस्लिम आबादी का यथार्थ एक साथ मिलते हैं
कविता
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‘संघ की आत्मनिर्भरता उसे किसी भी दूसरे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठन से अलग बनाती है’
सत्याग्रह ब्यूरो
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यह सोचकर दहशत होती है कि इतने भयानक अनुभवों से गुज़रने के बाद भी जो टुच्चे थे वे वैसे ही रहेंगे
अशोक वाजपेयी
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जयशंकर प्रसाद साहित्य जगत के बुद्ध थे
कविता
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‘सत्यमेव जयते हमारा मोटो है मगर गणतंत्र दिवस की झांकियां झूठ बोलती हैं!’
सत्याग्रह ब्यूरो