कभी-कभार
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जो लेखक अपने संघर्षों को बहुत गाते हैं वे उन संघर्षों की अवमानना करते हैं
लेखक अपने संघर्षों को लेकर न तो किसी आत्मरति को पोस सकता है और न ही उनके आधार पर किसी रियायत, सुविधा या मान्यता की मांग कर सकता है
अशोक वाजपेयी
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हिन्दी साहित्य और समाज दोनों में आलोचना-वृत्ति का भयानक क्षरण हुआ है
समाज की स्थिति तो यह है कि राज से पहले अब वही आलोचना को द्रोह मानकर उसे दण्डित करने के लिए सक्रिय हो जाता है
अशोक वाजपेयी
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अच्छी और सच्ची कला उत्तर देने की कोशिश नहीं करती, प्रश्न पूछने की ओर ले जाती है
मनीष पुष्कले के चित्र, अपनी गहरी शान्ति, धूसर और फीके रंगों की भाषा में जो कहते-अनकहते हैं, दिखाते-छिपाते हैं वह सचाई का विस्थापन भी है और अतिक्रमण भी
अशोक वाजपेयी
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कोई भी, चाहे वह कितना ही नाम-कीर्ति-हीन क्यों न हो, साधारण नहीं होता
लेकिन अजित कुमार एक ऐसे लेखक थे जिनका अपने साधारण होने पर, बिना किसी नाटकीयता के, इसरार सा था. वह भी तब जब ज़्यादातर लेखक अपनी असाधारणता का ढोल बजाते थे
अशोक वाजपेयी
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रज़ा जब कला नहीं रचते थे तब उसे रचने के लिए खुद को तैयार कर रहे होते थे
एसएच रज़ा अक्सर अपनी कला को लेकर संशयग्रस्त रहते थे, लेकिन उन्हें यह आत्मविश्वास भी था कि उनकी नियति कलाकार होने की ही है
अशोक वाजपेयी
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हमारे इस समय में उत्कृष्टता, मूर्धन्यता और नवाचार सभी उतार पर हैं
जैसे-जैसे हमारे लोकतंत्र का दायरा सिकुड़ रहा है वैसे-वैसे इसी लोकतंत्र में सम्भव हुए आधुनिकता के भारतीय स्वर्ण-युग का अवसान भी हो रहा है
अशोक वाजपेयी
क्विज
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क्विज़: आप इरफान खान के कितने बड़े फैन हैं?
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क्विज: क्या आप एसपी बालासुब्रमण्यम को चाहने वालों में से एक हैं?
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क्विज़: अदालत की अवमानना के तहत आप पर कब कार्रवाई हो सकती है?
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इस साल हज यात्रा पर रोक लगााए जाने के अलावा आप इसके बारे में क्या जानते हैं?
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क्विज: भारत-चीन सीमा विवाद के बारे में आप कितना जानते हैं?
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सत्ता, राजनीति, मीडिया और बाज़ार नहीं, साधारण जन ही लोकतंत्र को बचाते हैं
यह समय दूसरों से ज्यादा खुद पर निगरानी का है कि किसी भी लोभ या बहकावे में आकर हम लोकतंत्र की अपनी पक्षधरता और उसके लिए मुखरता में कोई शिथिलता न आने दें
अशोक वाजपेयी
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यह सोचकर दहशत होती है कि इतने भयानक अनुभवों से गुज़रने के बाद भी जो टुच्चे थे वे वैसे ही रहेंगे
यह विडम्बना ही है कि प्रकोप के कारण घिर आयी काल छाया मानवीयता को स्थगित करने वाले तत्वों और शक्तियों की रोक-थाम नहीं कर पायी है
अशोक वाजपेयी
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साहित्य हमें आलोचनात्मक ढंग से सोचने के लिए प्रशिक्षित करता है और भीड़ और भेड़ होने से बचाता है
आलोचनात्मक ढंग से सोचना अन्ततः जीवन में भी अन्तरित होता है और हमारे चारों ओर प्रचारित-प्रसारित झूठों को पकड़ने और समझने में हमारी मदद करता है
अशोक वाजपेयी
समाज और संस्कृति
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जिंदगी का शायद ही कोई रंग या फलसफा होगा जो शैलेंद्र के गीतों में न मिलता हो
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रानी लक्ष्मीबाई : झांसी की वह तलवार जिसके अंग्रेज भी उतने ही मुरीद थे जितने हम हैं
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किस्से जो बताते हैं कि आम से भी भारत खास बनता है
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क्यों तरुण तेजपाल को सज़ा होना उनके साथ अन्याय होता, दूसरे पक्ष के साथ न्याय नहीं
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कार्ल मार्क्स : जिनके सबसे बड़े अनुयायियों ने उनके स्वप्न को एक गैर मामूली यातना में बदल दिया
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बिना समकालीन हुए, शाश्वत तक पहुंचना संभव नहीं है
साहित्य तभी मुक्तिदायी हो सकता है जब वह हमें नितान्त समसामयिकता के कंटीले बाड़े से मुक्त करे और शाश्वत के एकतान आधिपत्य से भी
अशोक वाजपेयी
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हमारे लोकतंत्र के इतिहास में किसान आंदोलन जितना निडर, अडिग और अटल विरोध शायद ही पहले हुआ हो
किसानों का यह आंदोलन नागरिक सजगता का उदाहरण है जो मध्यवर्ग की सचाई की अनदेखी और झूठों-झांसों के लिए उसकी ललक पर एक धिक्कार-टिप्पणी है
अशोक वाजपेयी
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हमारे इस कुसमय में सब कुछ आकस्मिकता की ज़द में आ गया है
पिछले कुछ समय से हम तर्क, बुद्धि, ज्ञान और विज्ञान के सीमान्त पर पहुंच गये हैं: जो हो रहा है वह अप्रत्याशित है, जो होगा वह भी उतना ही अप्रत्याशित है
अशोक वाजपेयी
विशेष रिपोर्ट
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सर्दी हो या गर्मी, उत्तर प्रदेश में किसानों की एक बड़ी संख्या अब खेतों में ही रात बिताती है
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कैसे किसान आंदोलन इसमें शामिल महिलाओं को जीवन के सबसे जरूरी पाठ भी पढ़ा रहा है
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हमारे पास एक ही रेगिस्तान है, हम उसे सहेज लें या बर्बाद कर दें
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क्या आढ़तिये उतने ही बड़े खलनायक हैं जितना उन्हें बताया जा रहा है?
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक गांव जो पानी और सांप्रदायिकता जैसी मुश्किलों का हल सुझाता है