पत्रकारिता
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अर्णब गोस्वामी: एक फनकार, जो कभी पत्रकार था
क्या अर्णब गोस्वामी के बचाव में उस पत्रकारिता से जुड़े अधिकारों की बात करना ठीक लगता है जिसे खुद उन्होंने ही मरणासन्न अवस्था में पहुंचा दिया है?
विकास बहुगुणा
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एक संपादक के रूप में महात्मा गांधी प्रेस और सरकार की निरंकुशता को किस तरह देखते थे?
आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है. महात्मा गांधी का मानना था कि कलम की निरंकुशता खतरनाक हो सकती है, लेकिन उस पर व्यवस्था का अंकुश ज्यादा खतरनाक है
अव्यक्त
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क्यों अर्णब गोस्वामी का मुक़दमा उससे कम दिलचस्प नहीं है जितनी विवादित उनकी टीवी डिबेट थी
अर्णब गोस्वामी के मामले में दोनों पक्षों की ओर से जो वकील सामने आए हैं वे भी इस पर काफी कुछ कह देते हैं
पुलकित भारद्वाज
लोकप्रिय
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मुंह से खून आना सिर्फ टीबी का लक्षण नहीं है, तो फिर इसका मतलब और क्या-क्या हो सकता है?
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चुंबक : थोड़ा संभलकर देखिएगा, यह लघु फिल्म नश्तर चुभाते वक्त आगाह नहीं करती
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दुनिया को सबसे ज़्यादा आकर्षित करने वाला इस्लाम सबसे ज्यादा डराने वाला धर्म भी कैसे बन गया?
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जिंदगी का शायद ही कोई रंग या फलसफा होगा जो शैलेंद्र के गीतों में न मिलता हो
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काकोरी कांड : जिसने देश में क्रांतिकारियों के प्रति जनता का नजरिया बदल दिया था
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उत्तर प्रदेश में पत्रकार बनना बहुत आसान है, पत्रकारिता करना बेहद मुश्किल
उत्तर प्रदेश में इस समय करीब 1200 मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं जबकि कुछ साल पहले तक इस सूची में केवल 150-200 नाम ही हुआ करते थे
गोविंद पंत राजू
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आदरणीय अकबर जी, मैं ऐसा क्या करूं कि लोग मुझे दलाल और मेरी मां को वेश्या न कहें : रवीश कुमार
रवीश कुमार का पत्र जिसमें वे एमजे अकबर से वह नुस्खा जानना चाहते हैं जिसके चलते हर तरह की राजनीति के साथ पत्रकारिता करने पर भी उन्हें कभी गाली नहीं खानी पड़ी
सत्याग्रह ब्यूरो